नई दिल्ली। वेदांता लिमिटेड को लेकर अमेरिकी शॉर्ट-सेलिंग फर्म वायसरॉय रिसर्च की हालिया रिपोर्ट पर विवाद तेज़ हो गया है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी. वाय. चंद्रचूड़ ने इस रिपोर्ट को “मानहानिकारक, अविश्वसनीय और कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं” करार देते हुए उसकी कड़ी आलोचना की है। वेदांता लिमिटेड ने चंद्रचूड़ की यह 20 पृष्ठों की विस्तृत कानूनी राय स्टॉक एक्सचेंजों में भी दर्ज कराई है।
वेदांता समूह ने सार्वजनिक रूप से बताया कि रिपोर्ट में लगाए गए आरोप निराधार हैं और कंपनी की साख को नुकसान पहुंचाने की मंशा से तैयार किए गए हैं। चंद्रचूड़ की कानूनी सलाह में रिपोर्ट की विश्वसनीयता, समय-चयन और लेखकों की साख को कठघरे में खड़ा किया गया है।
वायसरॉय रिपोर्ट पर पूर्व CJI की तीखी टिप्पणी
डॉ. चंद्रचूड़ ने वायसरॉय की रिपोर्ट को “कानूनी जांच में टिकाऊ नहीं” बताते हुए कहा कि इसका मकसद बाजार में डर और अनिश्चितता फैलाकर वित्तीय लाभ कमाना है। उनके अनुसार, यह रिपोर्ट “जानबूझकर उस समय प्रकाशित की गई जब वेदांता समूह अपनी क्रेडिट स्थिति और रिफाइनैंसिंग प्रक्रिया में सुधार कर रहा था।”
उन्होंने इस पर भी सवाल उठाया कि रिपोर्ट का प्रकाशन ऐसे समय हुआ, जब वेदांता ग्रुप अपनी कुछ इकाइयों का डीमर्जर (विभाजन) करने की प्रक्रिया में है। उन्होंने आशंका जताई कि यह कदम निवेशकों को भ्रमित करने और डीमर्जर प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए उठाया गया।
तीन आधारों पर उठाए गए सवाल
पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने रिपोर्ट की अविश्वसनीयता के तीन आधार बताए:
शॉर्ट-सेलिंग से लाभ कमाने का रिकॉर्ड – वायसरॉय का इतिहास बताता है कि वह नकारात्मक रिपोर्टों से शेयरों में गिरावट लाकर लाभ कमाता रहा है।
रिपोर्ट तैयार करने वालों की साख संदिग्ध – रिपोर्ट में जिन “शोधकर्ताओं” के नाम हैं, उनकी निष्पक्षता पर सवाल हैं।
रिपोर्ट का समय संदिग्ध – डीमर्जर प्रक्रिया के दौरान रिपोर्ट जारी कर निवेशकों में संदेह पैदा करने की कोशिश की गई।
भड़काऊ भाषा और तथ्यहीनता पर भी सवाल
डॉ. चंद्रचूड़ ने रिपोर्ट में इस्तेमाल की गई भाषा को “भड़काऊ और अपमानजनक” बताया। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट निष्पक्ष और संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करने में विफल रही है और इसका मकसद सनसनी फैलाना है, न कि तथ्यों पर आधारित विश्लेषण देना।
उन्होंने वायसरॉय की रणनीति (मॉडस ऑपरेंडी) का ज़िक्र करते हुए कहा कि पहले लक्षित कंपनी में शॉर्ट पोजीशन ली जाती है, फिर तथाकथित “शोध रिपोर्ट” प्रकाशित कर शेयरों की कीमत गिराई जाती है। इसके बाद कंपनी मुनाफा कमाती है।
जनहित की बात खोखली : पूर्व CJI
रिपोर्ट के ‘जनहित’ में होने के दावे को भी पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि “ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि रिपोर्ट जनहित में तैयार की गई। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य बाजार में हेरफेर कर आर्थिक लाभ उठाना है।”
डॉ. चंद्रचूड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि वेदांता को इस रिपोर्ट और उसके लेखकों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का पूरा अधिकार है।
नियामक ढांचे पर उठाया गया खतरा
पूर्व CJI ने यह चिंता भी जाहिर की कि ऐसी रिपोर्टें केवल व्यक्तिगत कंपनियों की छवि को नुकसान नहीं पहुंचातीं, बल्कि भारत के कॉर्पोरेट प्रशासन और नियामक संस्थानों की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगाती हैं।
उन्होंने लिखा : “भारतीय कंपनियाँ, विशेषकर सूचीबद्ध कंपनियाँ, एक कड़े और बहुस्तरीय विनियामक ढांचे में काम करती हैं। इस व्यवस्था का उद्देश्य न केवल कदाचार को रोकना है, बल्कि नैतिक और जिम्मेदार कॉर्पोरेट गवर्नेंस को बढ़ावा देना भी है। वायसरॉय जैसी रिपोर्टें इस प्रणाली में जनमानस का विश्वास डगमगाने का काम करती हैं।”
रेटिंग एजेंसियों और ब्रोकरेज फर्मों का समर्थन वेदांता को
वायसरॉय की रिपोर्ट के बावजूद, वेदांता को कई वैश्विक ब्रोकरेज फर्मों और रेटिंग एजेंसियों का समर्थन मिला है। जेपी मॉर्गन, बैंक ऑफ अमेरिका और बार्कलेज ने वेदांता की बेहतर क्रेडिट प्रोफाइल और आकर्षक वैल्यूएशन का हवाला देते हुए सकारात्मक रुख बनाए रखा है।
क्रिसिल और ICRA जैसी घरेलू रेटिंग एजेंसियों ने भी वेदांता की AA रेटिंग बरकरार रखी है, जबकि हिंदुस्तान ज़िंक लिमिटेड को AAA रेटिंग दी गई है।
कानूनी रास्ता खुलेगा?
पूर्व CJI की इस मजबूत कानूनी सलाह से स्पष्ट है कि वेदांता अब वायसरॉय रिसर्च और उससे जुड़े शोधकर्ताओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की दिशा में आगे बढ़ सकती है। यह विवाद अब केवल कॉर्पोरेट रिपोर्टिंग या शेयर मार्केट का मामला नहीं रहा, बल्कि भारतीय न्याय, नियामक पारदर्शिता और कॉर्पोरेट साख की भी परीक्षा बन चुका है।
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