उदयपुर बालिका गृह में रेप का आरोप : डॉक्टर की मौजूदगी संदिग्ध, बाल आयोग और प्रशासन ने शुरू की जांच

 

उदयपुर | राजस्थान के उदयपुर स्थित एक बालिका गृह (नारी निकेतन) में रह चुकी किशोरी द्वारा एक डॉक्टर पर लगाए गए बलात्कार के आरोपों ने प्रशासन और बाल कल्याण तंत्र को झकझोर कर रख दिया है। इस मामले में कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं — खासकर तब, जब शुरुआती जांच में सामने आया है कि जिस डॉक्टर पर आरोप लगाए गए हैं, उसकी पिछले पांच महीनों से सेंटर में कोई उपस्थिति दर्ज नहीं है।

आरोपों की शुरुआत : महाराष्ट्र में दर्ज हुई जीरो एफआईआर

इस मामले की शुरुआत तब हुई जब पीड़िता ने महाराष्ट्र के एक थाने में जीरो एफआईआर दर्ज कराई। युवती का आरोप है कि जब वह उदयपुर नारी निकेतन में निवासरत थी, तब डॉ. अरविंद नामक एक चिकित्सक ने उसे डराया-धमकाया और कई बार बलात्कार किया। लड़की के मुताबिक, यह घटना तब शुरू हुई जब उसे पुलिस द्वारा नाबालिग होने के कारण बालिका गृह भेजा गया था।

वर्तमान में युवती बालिग हो चुकी है और महाराष्ट्र में अपने पति के साथ रह रही है। वहीं उसे कुछ दिन पहले ही यह पता चला कि वह गर्भवती है, जिसके बाद उसने आरोपों की जानकारी महाराष्ट्र पुलिस को दी। जीरो एफआईआर को अब उदयपुर के सुखेर थाना क्षेत्र में ट्रांसफर कर दिया गया है।

एफआईआर में घटनास्थल और विवरण का अभाव

FIR में यह स्पष्ट नहीं है कि कथित दुष्कर्म नारी निकेतन परिसर में कहां और किस परिस्थिति में हुआ। यह सवाल भी उठ रहा है कि जिस व्यक्ति पर आरोप है, वह वास्तव में बालिका गृह में पहुंचा भी था या नहीं। एफआईआर में आरोपी की नियमित उपस्थिति या सेंटर में उसकी ड्यूटी से संबंधित कोई ठोस जानकारी नहीं दी गई है।

जिला कलेक्टर का निरीक्षण, विभागीय जांच के आदेश

मामला सामने आने के बाद उदयपुर जिला कलेक्टर नमित मेहता ने रविवार को नारी निकेतन का औचक निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने वहां रह रही किशोरियों और स्टाफ से संवाद किया और सभी व्यवस्थाओं की समीक्षा की।

कलेक्टर ने किशोरियों से आत्मीयता से संवाद करते हुए पूछा कि क्या उन्हें किसी तरह की परेशानी है। अधिकांश बालिकाओं ने व्यवस्थाओं पर संतोष व्यक्त किया, लेकिन कलक्टर ने फिर भी विभागीय स्तर पर अलग से जांच के निर्देश दिए हैं।

इस निरीक्षण में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के संयुक्त निदेशक गिरीश भटनागर और बाल अधिकारिता विभाग के सहायक निदेशक के. के. चंद्रवंशी भी शामिल रहे।

राज्य बाल आयोग की जांच में बड़ा खुलासा

सोमवार सुबह राज्य बाल अधिकार आयोग के सदस्य ध्रुव कविया ने नारी निकेतन का निरीक्षण किया। इस दौरान सबसे बड़ा सवाल यह उठा कि एफआईआर में जिस डॉ. अरविंद का नाम है, वह पिछले पांच महीनों में एक बार भी सेंटर में विजिट पर नहीं आया था।

कविया ने बताया कि बालिका गृह में किसी भी पुरुष को — चाहे वह डॉक्टर ही क्यों न हो — सीधे बालिकाओं के निवास तक जाने की अनुमति नहीं होती। एक सरकारी मेडिकल पैनल गठित होता है, जिसमें महिला चिकित्सक भी शामिल रहती हैं।

बाल आयोग की टीम ने मामले को गंभीर मानते हुए तह तक जांच करने की बात कही है। आयोग ने यह भी कहा कि यदि कोई दोषी पाया गया, तो उसे बख्शा नहीं जाएगा।

गंभीर आरोप : गर्भपात तक कराया गया?

एफआईआर में पीड़िता ने यह भी आरोप लगाया कि जब उसने बालिका गृह में अपनी आपबीती वहां की नर्स किरण, शिक्षिका पुष्पा और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) की सदस्य यशोदा को बताई, तो किसी ने मदद नहीं की।

बल्कि, जब उसे गर्भ ठहर गया, तो बिना उसकी सहमति के गर्भपात करा दिया गया। इस आरोप ने पूरे मामले को और गंभीर बना दिया है।

यह आरोप यदि सत्य पाया गया, तो यह ना केवल यौन शोषण, बल्कि कानून और नैतिकता दोनों की घोर अवहेलना होगी।

पुलिस जांच शुरू, एएसपी को सौंपी गई जिम्मेदारी

उदयपुर एसपी योगेश गोयल ने मीडिया को बताया कि महाराष्ट्र से प्राप्त जीरो एफआईआर के आधार पर उदयपुर के सुखेर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है।

मामले की जांच एएसपी रामेश्वरलाल को सौंपी गई है। पुलिस ने कहा है कि पीड़िता के बयान लिए जाएंगे और हर तथ्यों की गहनता से जांच की जाएगी।

एसपी ने यह भी संकेत दिए कि जांच के दौरान बालिका गृह के स्टाफ, चिकित्सकीय पैनल, सीडब्ल्यूसी सदस्यों और अन्य संबंधित व्यक्तियों से भी पूछताछ की जाएगी।

कानून, प्रणाली और नैतिकता पर सवाल

इस पूरे मामले ने बाल संरक्षण प्रणाली पर कई गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं:

यदि आरोपी डॉक्टर सेंटर में नहीं आया, तो वह लड़की तक कैसे पहुंचा?

क्या बालिका गृह में सुरक्षा मानकों का पालन हो रहा है?

आरोपों के बावजूद बालिका गृह का स्टाफ निष्क्रिय क्यों रहा?

अगर गर्भपात कराया गया, तो उसकी कानूनी प्रक्रिया कहाँ है?

इन सवालों के उत्तर सिर्फ पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए नहीं, बल्कि राज्य के बाल संरक्षण तंत्र में आवश्यक सुधारों की नींव डालने के लिए ज़रूरी हैं।

जांच से आगे बढ़कर चाहिए जवाबदेही

उदयपुर नारी निकेतन प्रकरण को सिर्फ जांच या मेडिकल रिपोर्ट के हवाले छोड़ देना समाज और तंत्र दोनों के लिए आत्मघाती होगा।

यह केस बताता है कि बालिकाओं की सुरक्षा और गरिमा की रक्षा केवल चारदीवारी या नियमावली से नहीं, बल्कि जवाबदेही, पारदर्शिता और मानवीय संवेदना से होती है।

अब ज़रूरत है कि इस मामले की पूरी पारदर्शिता से जांच हो, दोषियों को सख्त सज़ा मिले, और राजस्थान सरकार राज्यभर के बालिका गृहों की स्वतंत्र और त्वरित ऑडिट कराए।

अगर आपके पास भी किसी बालिका गृह या सुधार गृह में बच्चों के साथ होने वाले शोषण से जुड़ी कोई जानकारी है, तो कृपया चाइल्डलाइन नंबर 1098 या निकटतम थाने में तुरंत सूचित करें। आपकी जागरूकता किसी मासूम की ज़िंदगी बचा सकती है।

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