उपराष्ट्रपति धनखड़ का इस्तीफा : क्या सिर्फ स्वास्थ्य कारण, या कुछ और भी है संकेतों में?

जयपुर। 14वें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा भारतीय राजनीति के लिए न केवल औपचारिक शोक की घड़ी है, बल्कि विश्लेषण का विषय भी बन चुका है। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों और चिकित्सकीय सलाह का हवाला देते हुए अपने पद से तुरंत प्रभाव से इस्तीफा दिया। परंतु सवाल यह है कि क्या यह त्यागपत्र सिर्फ स्वास्थ्य कारणों तक सीमित है, या इसके पीछे कुछ और भी राजनीतिक समीकरण हैं?

इस समाचार विश्लेषण में हम इस इस्तीफे के संवैधानिक पहलू, राजनीतिक पृष्ठभूमि, कार्यशैली, और संकेतों के तह तक जाने की कोशिश करेंगे।

संवैधानिक परिप्रेक्ष्य : अनुच्छेद 67(ए) का प्रयोग

धनखड़ ने अपने पत्र में संविधान के अनुच्छेद 67(ए) का हवाला दिया है, जिसके तहत उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को लिखित पत्र के माध्यम से त्यागपत्र दे सकते हैं। यह प्रक्रिया औपचारिक है, लेकिन इसकी आवृत्ति अत्यंत दुर्लभ रही है। इससे पहले किसी उपराष्ट्रपति ने स्वास्थ्य का हवाला देकर अचानक पद छोड़ा हो, ऐसी घटनाएं स्वतंत्र भारत के इतिहास में गिनी-चुनी ही रही हैं।

स्वास्थ्य का हवाला—पर सवाल भी

धनखड़ के इस्तीफे का प्रमुख कारण “स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता देना” बताया गया है। हालांकि उनकी कोई बड़ी बीमारी या लंबी अनुपस्थिति सार्वजनिक तौर पर दर्ज नहीं रही। संसद के गत सत्रों में वे सक्रिय रहे, और कुछ संवेदनशील मुद्दों पर उन्होंने सख्त टिप्पणियाँ भी की थीं। इसलिए कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे केवल “स्वास्थ्य कारणों” की संज्ञा देने को बहुत सरल व्याख्या मान रहे हैं।

राजनीतिक समीकरण : क्या कोई आंतरिक असहमति थी?

धनखड़ प्रधानमंत्री मोदी के विश्वासपात्र माने जाते थे। राजस्थान के एक किसान परिवार से आने वाले धनखड़ को 2022 में उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाना भाजपा के सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन साधने का भी संकेत था।

हालांकि हाल के महीनों में यह देखा गया कि उनकी टिप्पणियां कई बार विपक्ष और सत्तारूढ़ गठबंधन दोनों को असहज कर जाती थीं। संसदीय प्रक्रियाओं में नियमों के सख्त पालन और राज्यसभा की कार्यवाही में दृढ़ता उनकी पहचान बनी।
कुछ मौकों पर उन्होंने विपक्षी दलों को तो निशाना बनाया ही, साथ ही सरकार समर्थक सांसदों को भी मर्यादा में रहने की नसीहत दी थी, जिससे सत्ता पक्ष के भीतर कुछ हलचलें पैदा हुई थीं। वे बीच-बीच में राजनीतिक बयान भी देते रहे।

शब्दों में भावुकता, पर संकेतों में संकेत- धनखड़ द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए त्यागपत्र में भाषा अत्यंत भावुक, सम्मानजनक और संतुलित है।
उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और संसद सदस्यों के लिए गहन कृतज्ञता व्यक्त की। लेकिन पत्र के अंत में यह वाक्य विशेष ध्यान आकर्षित करता है-“इस परिवर्तनकारी युग में सेवा करना मेरे लिए एक सच्चा सम्मान रहा है। भारत के वैश्विक उत्थान और उपलब्धियों पर गर्व है और इसके उज्ज्वल भविष्य में अटूट विश्वास है।”

यह बयान “व्यक्तिगत संतोष” और “संस्थागत दूरी” दोनों का मिश्रण प्रतीत होता है—जैसे वे कहना चाहते हों कि अब योगदान का अवसर समाप्त हो गया है।

क्या यह इस्तीफा सत्ता के भीतर बदलाव का संकेत है?

राजनीतिक हलकों में इस इस्तीफे को 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद सत्ता समीकरणों में बदलाव की एक संभावित शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी की तीसरी पारी के लगभग एक साल बाद उपराष्ट्रपति का इस्तीफा इस ओर इशारा कर सकता है कि अब नई टीम, नई प्राथमिकताएँ और संभवतः नई संस्थागत शैली अपनाई जा रही है।

कुछ विश्लेषक यह भी मानते हैं कि धनखड़ को भविष्य में किसी और भूमिका में देखा जा सकता है—शायद राज्यपाल, संवैधानिक सलाहकार या यहां तक कि एक अंतरराष्ट्रीय भूमिका में।

धनखड़ की कार्यशैली : क्या यह टकराव की वजह बनी?

राज्यसभा के सभापति के रूप में धनखड़ की पहचान रही कि उन्होंने नियमों का कड़ाई से पालन कराया, सांसदों की अनुशासनहीनता पर चेतावनी दी, और कई बार सदन स्थगित करने में भी संकोच नहीं किया। लेकिन इसी के साथ वे एक सक्रिय वक्ता भी बने, जो राजनीतिक बहसों पर विचार व्यक्त करने से नहीं चूके।

कुछ सांसदों को लगता था कि वे “सभापति” से ज्यादा “वक्ता” के रूप में व्यवहार करते हैं, जो भूमिका की सीमाओं का अतिक्रमण है। यह आलोचना यद्यपि प्रत्यक्ष नहीं थी, लेकिन सत्तापक्ष के भीतर भी कुछ असहजता पैदा कर सकती थी।

इस्तीफा सिर्फ पत्र नहीं, एक संकेत है

धनखड़ का इस्तीफा एक संवैधानिक प्रक्रिया भर नहीं, बल्कि भविष्य के राजनीतिक संकेतों से जुड़ा घटनाक्रम है। स्वास्थ्य कारणों का हवाला भले ही औपचारिक हो, लेकिन इसके पीछे छिपे राजनीतिक संदेश, संस्थागत समीकरण, और शासन तंत्र में बदलाव की बयार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

अब जब भारत ‘नए युग’ की शुरुआत कर चुका है, तो शायद यह इस्तीफा भी उसी प्रक्रिया का हिस्सा है — जिसमें पुराने स्तंभ विदा लेते हैं और नए चेहरे उभरते हैं।

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