“कुछ लोग जाते नहीं… ठहर जाते हैं हमारे ज़ेहन में। जैसे रफ़ी साहब, किशाेर दा व लता दीदी की आवाज़, जैसे हसरत के बोल, जैसे राजकपूर और दिलीप कुमार का अभिनय, जैसे शंकर-जयकिशन की धुन… या जैसे उदयपुर में प्रोफेसर विजय श्रीमाली।”
सिनेमा की तरह ज़िंदगी भी एक स्क्रीन है, जिस पर कुछ किरदार अपने छोटे-से सीन में अमिट छाप छोड़ जाते हैं। प्रो. विजय श्रीमाली भी कुछ ऐसे ही किरदार थे — एक दृढ़ संवाद, एक पैना संपादन, एक भावपूर्ण दृश्य, जो आज भी हमारी स्मृति के रील में घूमता रहता है।
जब मोहम्मद रफ़ी साहब गाते हैं — “तुम हमें यूं भुला न पाओगे…”, तो लगता है जैसे यह गीत किसी अधूरी प्रेम कहानी का नहीं, बल्कि एक मुकम्मल इंसान की यादों का कोरस है। वह इंसान जो अपने रिश्तों को अभिनय नहीं, आत्मा से निभाता था। जिसकी स्क्रिप्ट में झूठ और दिखावे के लिए कोई जगह नहीं थी।
वो किरदार, जो ज़िंदगी की क्लोज़-अप में भी ईमानदारी से मुस्कुराता था — प्रो. विजय श्रीमाली।
यादों की पुनःप्रस्तुति — एक रक्तिम श्रद्धांजलि
21 जुलाई यानी सोमवार को जब उनकी पुण्यतिथि आएगी, तो शहर के एक कोने में कोई विद्यार्थी उनकी दी गई फीस को याद करेगा, किसी पिता को बेटी की शादी का वह मजबूत कंधा याद आएगा, और सूरजपोल चौराहे पर खामोशी से बहता वक्त उनसे हुई एक राजनीतिक बहस को पुनः जी लेगा।
लेकिन इस बार यादें केवल निजी नहीं रहेंगी — इस बार उनकी पुण्यतिथि पर रक्तदान शिविर आयोजित किया जा रहा है। कहते हैं, कोई अपनी सबसे अमूल्य चीज़ ही छोड़ जाता है — और श्रीमाली जी ने तो जीवन भर अपने लोगों के लिए “खून-पसीना” एक किया। तो भला उनकी स्मृति में रक्त से बेहतर और क्या श्रद्धांजलि होगी?
सूरजपोल से यूनिवर्सिटी तक — दो मुकाम, एक ज़िंदगी
उनका दिन सूरजपोल की चाय से शुरू होता था और यूनिवर्सिटी की बहसों में ढलता। सूरजपोल पर उनके बैठने से वहां केवल धूप नहीं उतरती थी, विचारों की तपिश भी फैलती थी। वहां के किस्से अब गुज़रे ज़माने की तरह सुनाए जाते हैं — जैसे पुराने रेडियो पर बजता कोई गीत, जिसमें आवाज़ की दरारों के बीच भी भावनाओं की नमी रहती है।
यूनिवर्सिटी में उन्होंने केवल पढ़ाया नहीं — जीवन दिया। सिर्फ़ कुलपति बनकर नहीं — “कुल” को “पति” की तरह संभाल कर दिखाया। तीन महीने की कार्यावधि में उन्होंने जो असर छोड़ा, वह वर्षों की कुर्सी पर बैठे रहकर भी नहीं छोड़ा जा सकता।
विरोधियों की भी स्मृति में दर्ज एक व्यक्तित्व
श्रीमाली जी को जितना चाहा गया, उतना ही ज़ोर से विरोध भी मिला। लेकिन ये विरोध उस मंच की तरह था, जिस पर उनका किरदार और निखरता था। वह सिर्फ़ मदद करने वाले नहीं थे, ज़िम्मेदारी उठाने वाले इंसान थे — और ज़िम्मेदारी का मतलब केवल प्रशंसा नहीं, आलोचना भी होता है। उनके विरोधियों को भी यह मानना पड़ा कि “कम से कम वो थे तो सच्चे।”
कर्ज़ की तरह ज़िंदा एहसान
राजनीति में पद न होना श्रीमाली जी के लिए कमजोरी नहीं, आज़ादी थी।
उनके दोस्त—युधिष्ठिर कुमावत, अनिल सिंघल, कमर इक़बाल—आज भी उनकी विरासत को जीवित रखते हैं। वे लोग, जिनके चेहरे आज भी राह में दिख जाएं, तो एक एहसास जाग जाए कि “अभी भी श्रीमाली जी का दौर पूरी तरह गया नहीं है।”
एक दृश्य जो कट नहीं हुआ…
उनके जाने के बाद भी ऐसा नहीं हुआ कि उनके बारे में बातें होनी बंद हो गईं।
वो अब भी किसी छात्र के संघर्ष की कहानी में, किसी पिता की राहत की सांस में, किसी बहन की शादी की तस्वीर में जीवित हैं।
उनकी यादें कोई भारी भरकम प्रतिमा नहीं हैं जो सार्वजनिक स्थान पर रखी गई हो — वो वो चुपचाप लिखी गई पंक्तियां हैं जो अंदर तक असर करती हैं।
फिल्म समीक्षक, लेखक जयप्रकाश चौकसे लिखा करते थे : “हर कहानी का अंत जरूरी नहीं कि सुखांत हो, लेकिन अगर पात्र सच्चा हो, तो कहानी अमर हो जाती है।”
प्रो. विजय श्रीमाली की कहानी का अंत भले ही जल्दी आ गया, लेकिन उनका किरदार आज भी हमारे अंदर चलता है — दृश्यों के उस कोलाज की तरह जो फिल्म खत्म होने के बाद भी हमारी आंखों के पर्दे पर चलता रहता है।
इस बार उनकी पुण्यतिथि पर जो रक्तदान होगा —
वह केवल देह की नसों में बहने वाला रक्त नहीं होगा,
बल्कि उन रिश्तों की नब्ज़ को ज़िंदा रखने की कोशिश होगी,
जिन्हें प्रो. विजय श्रीमाली ने अपने जीवन में न केवल निभाया,
बल्कि आत्मा की तरह जिया।
तुम हमें यूं भुला न पाओगे…
हम सच में नहीं भूले,
और अब ये यादें हमारा संकल्प बन गई हैं।
About Author
You may also like
-
राजस्थान में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल: भजन लाल सरकार ने 12 IAS अधिकारियों को दी नई जिम्मेदारियां
-
राजस्थान में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल, 91 आईपीएस अफसरों के तबादले, मुख्यमंत्री की सुरक्षा में लगे गौरव श्रीवास्तव को उदयपुर आईजी लगाया
-
उदयपुर शहर में यातायात सुधार की पहल : ट्राईडेंट-समोर बाग रोड विकास, ठोकर चौराहा चौड़ीकरण व यातायात पुलिस को वाहन देने जैसे कई निर्णय लिए गए
-
ब्लास्टिंग सुरक्षा पर फोकस : हिन्दुस्तान ज़िंक की कार्यशाला से माइनिंग सेक्टर में बढ़ेगी सुरक्षा चेतना
-
स्वच्छता सर्वेक्षण 2024 : कागज़ी रैंकिंग और ज़मीनी गंदगी के बीच झूलता उदयपुर…”खुश हो लीजिए… ये रैंकिंग हकीकत से काफी दूर है!”