151 यूनिट रक्तदान, 501 पौधारोपण : प्रो. विजय श्रीमाली की पुण्यतिथि पर सजीव हुई सेवा की विरासत

उदयपुर। सात वर्ष पहले दिवंगत हुए प्रो. विजय श्रीमाली भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी सेवा भावना, सादगी और शैक्षिक प्रतिबद्धता आज भी जीवित है — और यह बात उनकी सातवीं पुण्यतिथि पर हुए आयोजनों ने एक बार फिर प्रमाणित कर दी।

यह महज एक स्मृति दिवस नहीं था, बल्कि एक विचारधारा के पुनर्पाठ का अवसर था — जिसमें सेवा, पर्यावरण संरक्षण और शिक्षा के लिए समर्पण को केंद्र में रखा गया। 151 यूनिट रक्तदान, 501 पौधारोपण, और अस्पताल में परिजनों को भोजन सेवा जैसे विविध कार्यक्रमों ने यह स्पष्ट कर दिया कि प्रो. श्रीमाली की विरासत सिर्फ भाषणों या शोकांजलियों तक सीमित नहीं, बल्कि क्रियात्मक श्रद्धांजलि के रूप में समाज में फलित हो रही है।

रक्तदान शिविर : जीवनदायिनी सेवा को समर्पित आयोजन

प्रो. विजय श्रीमाली फाउंडेशन द्वारा आयोजित रक्तदान शिविर में एकत्र 151 यूनिट रक्त न केवल आंकड़ों में उल्लेखनीय है, बल्कि यह समर्पण और मानवीयता की जीवंत मिसाल भी है। यह आयोजन केवल एक ‘पुण्यतिथि कार्यक्रम’ नहीं, बल्कि उस विचार का विस्तार है जिसे प्रो. श्रीमाली ने जीवन भर जिया — “जीवन दूसरों के लिए जियो।”

यह उल्लेखनीय है कि रक्तदान में भाग लेने वाले अधिकांश लोग उनके पूर्व विद्यार्थी, अनुयायी और युवा स्वयंसेवक थे — जो बताता है कि प्रो. श्रीमाली की विचारधारा ने पीढ़ियों को जोड़ा है।

पौधारोपण और पर्यावरण संरक्षण : जीवन से परे जीवंत योगदान

उसी भावना के विस्तार के रूप में 501 पौधों का पौधारोपण और वितरण कार्य संपन्न हुआ। नटराज किड्स प्लेनेट स्कूल, संस्कार भवन और अन्य संगठनों ने इसे नेतृत्व प्रदान किया। छायादार, औषधीय और फलदार पौधों की योजना इस बात की ओर संकेत करती है कि यह कार्य मात्र प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि स्थायी पर्यावरणीय दृष्टि से प्रेरित था। डॉ. श्रीकांत शर्मा और श्वेता श्रीमाली के निर्देशन में हुए इस आयोजन ने शिक्षा जगत और पर्यावरण के बीच सार्थक सेतु निर्मित किया।

भोजन सेवा : अस्पताल के बाहर भी संवेदनशीलता की मिसाल

महाराणा भूपाल हॉस्पिटल परिसर में मरीजों के परिजनों के लिए निःशुल्क भोजन वितरण कार्यक्रम न केवल सामाजिक सेवा का उदाहरण है, बल्कि भावनात्मक सहानुभूति का मूर्त रूप भी है। बीमार परिजन के साथ आए परिवारों के लिए यह भोजन सेवा जहां आर्थिक राहत बनी, वहीं दूसरी ओर यह समाज को यह संदेश देती रही कि सेवा केवल शब्दों में नहीं, कार्यों में होनी चाहिए।

प्रो. श्रीमाली का जीवन दर्शन : शिक्षा में सेवा का समावेश
प्रो. विजय श्रीमाली का जीवन केवल शिक्षक का नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, संरक्षक और मसीहा का रहा। उदयपुर के सुखाड़िया विश्वविद्यालय में उन्होंने अनेक वर्षों तक अध्यापन करते हुए शिक्षा को केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसमें सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्यों का समावेश किया। कई जरूरतमंद विद्यार्थियों की फीस उन्होंने स्वयं भरी। विवाह के समय विद्यार्थियों को आर्थिक मदद देना उनकी आदत थी, औपचारिकता नहीं। एम.डी.एस. विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में उन्होंने संस्थान में पारदर्शिता, नवाचार और विस्तारवादिता की नींव रखी।

समाज और राजनीति से मिला समर्थन : श्रद्धा से सराबोर उपस्थिति

कार्यक्रम में समाज के विभिन्न तबकों से प्रतिनिधियों की उपस्थिति यह बताती है कि प्रो. श्रीमाली का प्रभाव केवल शिक्षा जगत तक सीमित नहीं था। विधायक ताराचंद जैन ने उन्हें “शिक्षा व सामाजिक क्षेत्र का अविस्मरणीय योगदानकर्ता” बताया।

विधायक दीप्ति माहेश्वरी ने कहा कि वे “राजसमंद के छात्रों के लिए हमेशा खड़े रहने वाले शिक्षक” थे। रविन्द्र श्रीमाली ने उन्हें “सिद्धांतों से कभी समझौता न करने वाला, सेवा भावना से ओतप्रोत व्यक्तित्व” कहा।

इन वक्तव्यों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि प्रो. श्रीमाली का प्रभाव राजनीति, समाज और शिक्षा — तीनों क्षेत्रों में समान रूप से गूंजता रहा है।

फाउंडेशन की भूमिका : एक विरासत को संस्था में बदलने का प्रयास

फाउंडेशन के प्रतिनिधि जतिन श्रीमाली ने इस बात को स्पष्ट किया कि यह आयोजन केवल ‘श्रद्धांजलि’ नहीं, बल्कि ‘श्रीमाली दर्शन’ के प्रचार-प्रसार का माध्यम है। यह एक पहल है जो यह दिखाती है कि जब कोई व्यक्ति समाज में मूल्य आधारित जीवन जीता है, तो उसकी स्मृति भी सृजनात्मक क्रिया बन जाती है, रस्म नहीं।

स्मृति से संकल्प तक की यात्रा : प्रो. विजय श्रीमाली की सातवीं पुण्यतिथि का यह आयोजन परंपरा से हटकर एक विचार आंदोलन बनकर सामने आया है। जहाँ आमतौर पर पुण्यतिथि केवल माल्यार्पण, वक्तव्य और श्रद्धांजलि तक सिमट जाती है, वहीं यहां यह दिन सेवा, संरक्षण और समाजोपयोगिता की प्रत्यक्ष क्रियाओं के माध्यम से मनाया गया।

यह न केवल प्रो. श्रीमाली की विचारधारा की शक्ति को दिखाता है, बल्कि एक आदर्श सामाजिक मॉडल भी प्रस्तुत करता है — कि कैसे किसी शिक्षाविद की स्मृति भी समाज को शिक्षा दे सकती है।

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