नारायण सेवा संस्थान, मानवता का महोत्सव : जब 51 जोड़े थामेंगे जीवनभर का साथ

उदयपुर। किसी का हाथ थाम कर हर परिस्थिति में उसका सहारा बनने का वादा ही जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है। और यही सौभाग्य जब उन लोगों तक पहुँचे, जो गरीबी या दिव्यांगता की वजह से शादी जैसे पावन संस्कार से वंचित रह जाते हैं—तो यह केवल विवाह नहीं, बल्कि ईश्वर की करुणा का प्रत्यक्ष स्वरूप बन जाता है।
नारायण सेवा संस्थान एक बार फिर इस करुणा को आकार देने जा रहा है। आगामी 30 व 31 अगस्त को लियों का गुड़ा स्थित सेवा महातीर्थ परिसर में 44वाँ नि:शुल्क दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह आयोजित होगा, जहाँ 51 जोड़े सात फेरे लेकर जीवन के नए सफर पर निकलेंगे।

जब प्यार सीमाओं को तोड़ देता है


इनमें कोई है जिसकी आँखें रोशनी से खाली हैं, कोई जिसके पैर बचपन में पोलियो ने छीन लिए। कोई घिसटकर चलता है, कोई शब्दों से वंचित होकर इशारों में सपने बुनता है। कुछ जोड़े ऐसे भी होंगे जहाँ एक साथी दिव्यांग है और दूसरा सकलांग—लेकिन दिल से दिल जुड़ते हैं तो शरीर की सीमाएँ महत्वहीन हो जाती हैं।
ये सभी जोड़े दुनिया को यह सिखाएँगे कि—“सच्चा साथ आत्मा और मन का होता है, शरीर का नहीं।”


आशीर्वादों से सजेगा मंडप
30 अगस्त को सुबह 10:15 बजे संस्थान के संस्थापक पद्मश्री कैलाश ‘मानव’, सहसंस्थापिका कमला देवी और अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल गणपति स्थापना के साथ इस महोत्सव का शुभारंभ करेंगे।


मेहंदी, संगीत और बिंदोली जहाँ हंसी-खुशी के रंग भरेंगी, वहीं 31 अगस्त को वैदिक मंत्रों की पावन ध्वनि और पवित्र अग्नि के सात फेरे इन युगलों को जीवनभर के लिए एक-दूसरे का हमसफ़र बना देंगे।


 डोली की विदाई—आंखें नम करने वाला क्षण
समारोह का सबसे भावुक पल तब होगा, जब बेटियाँ प्रतीकात्मक डोली में बैठकर अपने जीवनसाथी संग विदा होंगी।
उस क्षण बहते आँसू केवल पिता के न होंगे, वहाँ खड़े हर व्यक्ति की पलकों से नमी टपकेगी। क्योंकि यह सिर्फ विदाई नहीं होगी—यह समाज को दिया गया संदेश होगा कि—“हर बेटी, चाहे निर्धन हो या दिव्यांग, वह भी गरिमा और सम्मान से अपने घर की लक्ष्मी बनकर विदा होती है।”

कहानियाँ जो दिल छू लेंगी

निकिता और देवेंद्र—तीन साल की उम्र में पोलियो से दोनों पैर खोने वाली निकिता ने संस्थान में ऑपरेशन, विशेष कैलिपर्स और सिलाई प्रशिक्षण से नया जीवन पाया। आज वही निकिता, दिव्यांग देवेंद्र का हाथ थामने जा रही है।
आरती और गजेंद्र—दोनों जन्म से मूक-बधिर। न बोल सकते हैं, न सुन सकते हैं, पर एक-दूसरे की भावनाएँ आँखों और इशारों से समझते हैं। उनकी जोड़ी बताती है—प्यार भाषा का नहीं, आत्मा का रिश्ता है।
नीला और नरेंद्र—नीला के घुटनों की दिव्यांगता देखकर लोग रिश्ता करने से पीछे हट जाते थे। लेकिन नरेंद्र ने सहज कहा—“कोई बात नहीं।” यही स्वीकृति अब जीवनभर का साथ बन गई।
बखतराम और सविता—दोनों अलग-अलग दिव्यांगताओं से जूझते रहे, पर हिम्मत और दोस्ती ने उन्हें जीवनसाथी बना दिया।
शकुंतला और गणेश—शकुंतला घिसटकर चलती हैं, गणेश पीठ में कूबड़ के साथ जीवन जीते हैं। लेकिन जब दोनों मुस्कुराए, तो उनमें एक-दूसरे का सुकून मिल गया।

नवजीवन का उपहार
संस्थान हर जोड़े को गृहस्थी की जरूरी सामग्री देगा—पलंग, अलमारी, बर्तन, सिलाई मशीन, बिस्तर, चूल्हा, पंखा और श्रृंगार सामग्री तक। यह उपहार सामान नहीं, बल्कि आशीर्वाद का प्रतीक होगा—ताकि उनकी नई जिंदगी खुशियों से भर जाए।

यह विवाह नहीं—मानवता का उत्सव है
अब तक 43 सामूहिक विवाहों में 2459 जोड़े अपने-अपने सपनों का घर बसा चुके हैं। इस बार भी पूरा देश ऑनलाइन प्रसारण से इन अनोखे मिलनों का गवाह बनेगा।


51 जोड़े जब सात फेरे लेंगे, तो वह सिर्फ एक वैवाहिक रस्म नहीं होगी… वह होगी समर्पण, करुणा और सामाजिक समरसता की सबसे सुंदर तस्वीर।

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