उदयपुर। प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण के संरक्षण के लिए कार्यरत ‘सेंटर फ़ॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज एनवायरमेंट प्रोटक्शन एंड क्लाइमेट चेंज’ (CCONREPCC), और डॉ. बी. लाल जैव प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा बुधवार को जेएलएन मार्ग स्थित राजस्थान वानिकी एवं वन्यजीव प्रशिक्षण संस्थान (आरएफडब्ल्यूटीआई) में आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन आयोजन किया गया.
कांफ्रेंस के मुख्य अतिथि पद्मश्री श्री सुंडा राम वर्मा ने कहा की स्वच्छ जल मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, एवं कम जल का उपयोग करके वृक्षारोपण किया जा सकता है. उनके द्वारा विकसित तकनीक एवं देशज बीजो से कई फसले उगाई जा रही है जो पूर्णतया जैविक क़ृषि का उदाहरण है।
इस कॉन्फ्रेंस मे कई पर्यावरणविदों ने भाग लिया एवं जल के प्रबंधन एवं सतत उपयोग पर ज्ञान साझा किया।
कार्यशाला को पदम् श्री पुरस्कार विजेता श्री सुण्डाराम वर्मा, के अतिरिक्त डॉ. बी. लाल इंस्टिट्यूट ऑफ बायो टेक्नोलॉजी की सहायक निदेशक डॉ. सुदीप्ति अरोरा, MNIT के प्रोफेसर श्री ए बी गुप्ता, श्री एन के लोहिया, प्रोफेसर ओ पी गोयल, प्रोफेसर रितिका महाजन, डॉ. आदिति, श्री वैभव अग्रवाल, यूनिसेफ अधिकारी श्री नानक संतदासनी, आरएसपीसीबी के रिटायर्ड चीफ इंजीनियर डॉ. विजय सिंघल एवं पूर्व सरपंच श्रीमती छवि राजावत सहित अन्य विषय विशेषज्ञों ने संबोधित किया।
पर्यावरणविदो ने कहा कि जल का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए, जिससे उसकी गुणवत्ता तथा उपलब्धता बनी रहे तथा विकास कार्य भी न रुके और पर्यावरण भी संतुलित बना रहे। उन्होंने कहा कि पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों तथा पारिस्थितिक तंत्रों के विभिन्न अवयवों के बीच का संतुलन स्थापित करने में मनुष्य की भूमिका इस युग की सबसे बड़ी चुनौती है।
CCONREPCC की एग्जीक्यूटिव चेयरमैन एवं राजस्थान वानिकी प्रशिक्षण संस्थान (RFWTI) की निदेशक श्रीमती शैलजा देवल ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करके ही हम भावी पीढ़ी के लिए स्वच्छ एवं स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित कर पाएंगे। एवं इसके लिए UN द्वारा निर्धारित 17 Sustainable Development goals पर मिशन मोड मे कार्य करना होगा.
सम्मेलन मे RFWTI जयपुर के DCF श्री रमेश मालपानी ने राजस्थान राज्य मे जल संरक्षण एवं जल संचायन की पूर्व से प्रचलित पारिपाटी को बढ़ावा देने पर बल दिया.
इस अवसर पर ACF खुशबू मीणा, ACF कीर्ति राठौर, एवं बी लाल बायो टेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट की श्रीमती सोनिका सक्सेना सहित अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।
सम्मेलन मे लगभग 100 से अधिक पर्यावरण विशेषज्ञ, प्रोफेसर, टीचर्स, कॉलेज विद्यार्थीयों एवं NGO संचालको ने भाग लिया.
एक लीटर पानी से विकसित कर सकते हैं पौधा
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए पदम् श्री पुरस्कार विजेता श्री सुण्डाराम वर्मा ने एक लीटर पानी से पौधा लगाने को तकनीक की जानकारी देते हुए बताया कि जमीन में बरसात के पानी की नमी को रोककर प्लांट लगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इस तकनीक का मूल सिद्धांत ये है कि जमीन के नीचे से बरसात का पानी दो तरीकों से बाहर आता है। पहला खरपतवारों की जड़ों से होकर और दूसरा जमीन में छोटी-छोटी नलिकाएं या कैपिलरी के सहारे। इन छोटी नलिकाओं से ही बहुत ज्यादा मात्रा में पानी बाहर निकल कर भाप में बदल जाता है। श्री सुण्डाराम ने बताया कि खेत में नमी बनाए रखने के लिए इन नलिकाओं को तोड़ना सबसे अच्छा उपाय है। खेत में गहरी जुताई कर दी जाए तो ये नलिकाएं टूट जाएंगी और खेत का पानी खेत में संरक्षित रहेगा। उन्होंने बताया कि इस तकनीक से वे इस वर्ष 30 हजार पौधे लगा रहे है।
केंचुए भी गंदे पानी को साफ करने में मददगार
डॉ. बी. लाल इंस्टिट्यूट ऑफ बायो टेक्नोलॉजी की सहायक निदेशक डॉ. सुदीप्ति अरोरा ने कार्यशाला में संबोधित करते हुए वाटर और सैनिटेशन हाइजीन के लिए आगंतुकों को जागरूक किया। साथ ही, उन्होंने वर्मी फिल्ट्रेशन टेक्नोलॉजी के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने इस टेक्नोलॉजी के माध्यम से केचुओं द्वारा गंदे पानी को साफ करने की तकनीक की बारीकी से आगंतुकों को अवगत करवाया।
विशेषज्ञों ने भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने पर दिया जोर
कार्यशाला में तीन सत्र आयोजित किए गए, जिसमें प्रथम सत्र में विषय विशेषज्ञों एवं पर्यावरणविदों ने स्वास्थ्य, जलवायु और सतत विकास के लिए पानी की उपयोगिता के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि बरसात के पानी को जमीन में एकत्रित करके वर्षा के जल का संरक्षण करना चाहिए जिससे भूमिगत जल के गिरते हुए स्तर को बढ़ाया जा सके। साथ ही, कृषि के क्षेत्र में जल का अधिकतम् उपयोग करने के लिए किसानों को नवीनतम तकनीकों को अपनाकर जल का न्यूनतम दोहन करना चाहिए। उन्होंने नदियों के पानी को स्वच्छ रखने के लिए मानसून के महीनों में भूमिगत नालियों के गंदे पानी को नदियों में जाने से रोकने पर जोर दिया।
देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घटी
विशेषज्ञों ने बताया कि आजादी के समय 2400 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष पीने योग्य पानी था जो अब घटकर एक हजार क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष रह गया है। इसके लिए हमें मिलकर जल के संरक्षण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से करें ग्राउंड वाटर रिचार्ज
द्वितीय व तृतीय सत्र में विशेषज्ञों एवं शिक्षाविदों ने प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण के संरक्षण के बारे में जागरूक किया। उन्होंने प्रदूषित जल से होने वाली बीमारियों के बारे में भी अवगत करवाया। विशेषज्ञों ने बताया कि घरों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया जाना चाहिए, जिससे घरों की छतों से बरसात के पानी को जमीन तक पहुंचाया जा सके। साथ ही विशेषज्ञों ने आगंतुकों द्वारा पर्यावरण संरक्षण से संबंधित पूछे गए सवालों के सटीक जवाब देकर उनकी जिज्ञासाएं शांत की। इस दौरान सैकड़ों विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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