उदयपुर। अंग-विहीन लोगों के लिए कृत्रिम अंग केवल एक उपकरण भर नहीं होता—यह चलने का सामर्थ्य, काम करने की स्वतंत्रता और जीवन को नए सिरे से जीने का साहस प्रदान करने वाला सहारा है। हर वर्ष 5 नवंबर को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय प्रोस्थेटिक्स और ऑर्थोटिक्स दिवस इसी मानवता, तकनीक और पुनर्वास के संगम को श्रद्धांजलि देने का अवसर है।
इस विशेष दिवस पर देशभर में उन संस्थाओं को याद किया जाता है, जो दिव्यांग व्यक्तियों को न केवल कृत्रिम अंग प्रदान कर रहे हैं, बल्कि जीवन में आत्मसम्मान, गति और नई उम्मीदें भी लौटा रहे हैं। उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान (एनएसएस) ऐसा ही एक नाम है, जिसने पिछले दो दशकों में हजारों लोगों के चेहरे पर मुस्कान और जीवन में गति लौटाई है।
देश की अग्रणी पुनर्वास संस्था—दिव्यांगजन के लिए उम्मीद का केंद्र
नारायण सेवा संस्थान आज दिव्यांग पुनर्वास के क्षेत्र में एक सशक्त, व्यवस्थित और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संस्था बन चुकी है। राजस्थान के उदयपुर में स्थित यह संगठन वर्षों से उन लोगों के लिए सहारा साबित हुआ है, जिन्हें दुर्घटनाओं, बीमारियों या जन्मजात कारणों से हाथ-पैर खोने पड़े हैं।
संस्थान का मूल सिद्धांत है—“दया नहीं, अवसर दीजिए। सहायता नहीं, आत्मनिर्भरता दीजिए।”
इसी सोच के साथ संस्थान ने देशभर में सैकड़ों पुनर्वास शिविर आयोजित किए, जहाँ निःशुल्क जांच से लेकर माप, फिटिंग, प्रशिक्षण और फॉलो-अप तक हर चरण सुव्यवस्थित तरीके से किया जाता है।
40,000 से अधिक कृत्रिम अंग—एक विशाल सेवा यात्रा
संस्थान द्वारा अब तक 40,000 से अधिक कृत्रिम हाथ-पैर लगाए जा चुके हैं। यह संख्या केवल औपचारिक उपलब्धि नहीं बल्कि उन अनगिनत कहानियों की गवाही देती है, जिनमें किसी का जीवन अंधकार से उजाले की ओर मुड़ा, किसी को नई नौकरी की राह मिली और किसी के मन में खोया हुआ आत्मविश्वास लौट आया।
यह सेवा केवल भारत तक सीमित नहीं है। संस्थान ने अपनी सीमाओं को पार करते हुए केन्या और साउथ अफ्रीका में भी कई बड़े शिविर आयोजित किए हैं। इन शिविरों में अब तक 3,000 से अधिक लोगों को कृत्रिम अंग प्रदान किए जा चुके हैं। विदेशों में आयोजित ये शिविर दर्शाते हैं कि भारतीय सामाजिक संस्थाएं वैश्विक स्तर पर भी मानवीय सेवा में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
अत्याधुनिक कार्यशाला—40 विशेषज्ञों की संवेदनशील टीम
नारायण सेवा संस्थान की सबसे बड़ी ताकत है—इसकी आधुनिक कृत्रिम अंग निर्माण इकाई, जहाँ नवीन तकनीक, वैज्ञानिक समझ और मानवीय संवेदना का समन्वय देखने को मिलता है।
यहां 40 प्रशिक्षित तकनीकी विशेषज्ञों की टीम है, जो रोजमर्रा के कार्यों में अत्याधुनिक मशीनों की सहायता से कृत्रिम हाथ-पैर तैयार करती है।
इस कार्यशाला की उत्पादन क्षमता प्रति माह 1500 से 1800 कृत्रिम अंग है—यह देश में किसी भी निजी या सामाजिक संस्था के लिए एक उल्लेखनीय क्षमता है। यह बड़े पैमाने पर जरूरतमंदों को समयबद्ध सेवा उपलब्ध कराने का प्रमाण भी है।
तकनीक के विकास के साथ संस्था लगातार नए मॉडल, हल्के वजन की सामग्री और उपयोगकर्ता-हितैषी डिजाइन पर काम कर रही है। उद्देश्य है—लाभार्थियों को ऐसी सुविधा मिले, जिससे वे बिना किसी असहजता के सामान्य जीवन जी सकें।
“यह केवल कृत्रिम अंग लगाना नहीं, संपूर्ण पुनर्वास है” — प्रशांत अग्रवाल
संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल बताते हैं कि उनका उद्देश्य केवल कृत्रिम अंग बांटना नहीं है, बल्कि लाभार्थियों को संपूर्ण पुनर्वास देना है।
उनके शब्दों में— “किसी व्यक्ति को नया हाथ-पैर देना तभी सार्थक है, जब वह उसे आत्मनिर्भर बनाता हो। हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि लाभार्थी रोजमर्रा की गतिविधियाँ सहजता से कर सके, आत्मविश्वास से खड़ा हो सके और समाज में बराबरी के साथ जीवन जी सके।”
इसी सोच के कारण संस्थान लाभार्थियों को न केवल अंग प्रदान करता है, बल्कि—
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चलने-फिरने का अभ्यास
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सीढ़ियाँ चढ़ने-उतारने का प्रशिक्षण
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संतुलन बनाए रखने की तकनीक
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रोजमर्रा के कार्य करने के निर्देश
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और समय-समय पर फॉलो-अप
भी प्रदान करता है।
अग्रवाल बताते हैं कि आने वाले वर्षों में संस्था 15,000 नए कृत्रिम अंग लगाने के लक्ष्य पर काम कर रही है। उनके अनुसार यह लक्ष्य केवल सेवा भावना से नहीं बल्कि तकनीकी क्षमता और मानव संसाधनों के बड़े विस्तार के साथ संभव होगा।
देशभर में शिविर—बिना किसी शुल्क के जीवन को नई शुरुआत
नारायण सेवा संस्थान का एक बड़ा पहलू है—निःशुल्क सेवा।
संस्थान के शिविरों में लाभार्थियों से न तो जांच का शुल्क लिया जाता है और न ही कृत्रिम अंग फिटिंग का। जिन लाभार्थियों के लिए उदयपुर आना आवश्यक होता है, उनकी रहने-खाने की व्यवस्था भी संस्था करती है।
इसी कारण राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत से सैकड़ों लोग उदयपुर पहुंचते हैं। कई लोग कहते हैं कि यदि संस्थान की यह सेवा न होती तो वे कभी कृत्रिम अंग का खर्च वहन नहीं कर पाते और जीवनभर दूसरों पर निर्भर रहते।
बदलती तकनीक—बदलते जीवन
दुनिया भर में कृत्रिम अंगों की तकनीक तेजी से विकसित हो रही है। पहले जहां भारी और असुविधाजनक मॉडल उपयोग में आते थे, वहीं अब हल्की सामग्री, बेहतर पकड़, सुगमता और अधिक टिकाऊ उत्पाद उपलब्ध हैं।
नारायण सेवा संस्थान भी इस बदलाव के साथ कदम मिला कर चल रहा है।
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3D माप
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लाइटवेट मॉडेल
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फ्लेक्स फुट तकनीक
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कस्टम फिटिंग
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और सुधार-उन्मुख फॉलो-अप
ने सेवा को और प्रभावी बनाया है।
लाभार्थी बताते हैं कि हल्के वजन के नए मॉडल उन्हें अधिक स्वाभाविक चलने में मदद करते हैं और लंबे समय तक उपयोग में भी थकान नहीं होती।
दिव्यांगजन के जीवन में आत्मसम्मान लौटाने का मिशन
संस्थान का लक्ष्य किसी को दया का पात्र बनाना नहीं बल्कि उन्हें सक्षम बनाना है। वह मानता है कि आत्मसम्मान हर मानव का अधिकार है।
दिव्यांगता से जूझ रहे कई लोग समाजिक असहजता, उपेक्षा और रोजगार की कमी के बीच खुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। कृत्रिम अंग लगते ही उनकी गतिशीलता बढ़ती है और इसी के साथ उनके भीतर आत्मविश्वास भी लौटता है।
कई लाभार्थी बताते हैं कि कृत्रिम पैर लगने के बाद उन्होंने फिर से नौकरी शुरू की, खेती-बाड़ी का काम संभाला और कई युवा फिर से कॉलेज जाने लगे। यह बदलाव तकनीकी से ज़्यादा सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर बड़ा प्रभाव छोड़ता है।
अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर संस्थान का संदेश—मानवता की सबसे सुंदर राह
अंतरराष्ट्रीय प्रोस्थेटिक्स और ऑर्थोटिक्स दिवस पर नारायण सेवा संस्थान का संदेश स्पष्ट और सार्थक है— “किसी को चलने की राह देना सिर्फ तकनीक नहीं, मानवता का सबसे सुंदर रूप है।”
यह संदेश केवल स्लोगन भर नहीं बल्कि संस्था की कार्यप्रणाली का दर्शन है।
आज जब दुनिया तकनीक की ओर तेजी से बढ़ रही है, ऐसे में पुनर्वास और संवेदनशीलता का यह संगम समाज को याद दिलाता है कि मानवता की असली पहचान दूसरों की मदद में है—खासकर उन लोगों की, जिनकी दुनिया अचानक रुक गई हो और जिनके कदमों ने आगे बढ़ना बंद कर दिया हो।
अंतर्राष्ट्रीय प्रोस्थेटिक्स और ऑर्थोटिक्स दिवस तकनीक की उपलब्धियों का उत्सव होने के साथ-साथ उन मानवीय प्रयासों का भी सम्मान है, जो अंग-विहीन लोगों के लिए जीवन की नई शुरुआत का कारण बनते हैं।
उदयपुर का नारायण सेवा संस्थान इस दिशा में एक प्रेरक उदाहरण है—जहाँ हजारों लोगों को न केवल कृत्रिम हाथ-पैर मिले, बल्कि आत्मविश्वास, सम्मान और एक नए भविष्य की रोशनी भी मिली।
तकनीक, संवेदना और सेवा भावना के इस अद्भुत संयोजन ने संस्था को दिव्यांग पुनर्वास के क्षेत्र में एक मिशाल बना दिया है।
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