
मुंबई | हिंदी सिनेमा के सबसे प्यारे चेहरों में से एक, मशहूर अभिनेता गोवर्धन असरानी का सोमवार दोपहर 1 बजे निधन हो गया। 84 वर्षीय असरानी पिछले कुछ दिनों से बीमार थे और मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती थे। उनके मैनेजर बाबू भाई थिबा के मुताबिक उनके फेफड़ों में पानी भर गया था। सोमवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। शाम को सांताक्रूज़ के शांतिनगर श्मशान में परिवार की मौजूदगी में अंतिम संस्कार किया गया।
अपने जीवन में हंसने और हंसाने वाले असरानी, मृत्यु के बाद भी शांति चाहते थे। उन्होंने पत्नी मंजू बंसल से कहा था कि “मेरी मौत के बाद कोई हंगामा मत करना… जब अंतिम संस्कार हो जाए, तब ही खबर देना।” उनकी यही इच्छा पूरी की गई। महज 15-20 लोगों की मौजूदगी में उनका अंतिम संस्कार हुआ। न कोई मीडिया शोर, न कोई भीड़ — बस सादगी और मौन श्रद्धांजलि।
‘शोले’ का वो जेलर… जो अमर हो गया
1975 में आई शोले में असरानी का किरदार छोटा था, पर प्रभाव इतना बड़ा कि आज तक लोग उनके डायलॉग “हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं” पर ठहाके लगाते हैं।
दैनिक भास्कर को दिए गए अपने आखिरी इंटरव्यू में असरानी ने बताया था कि निर्देशक रमेश सिप्पी और लेखक जोड़ी सलीम-जावेद ने उन्हें यह रोल समझाते हुए कहा था कि “यह किरदार मूर्ख है, लेकिन खुद को दुनिया का सबसे समझदार आदमी समझता है।”
असरानी ने इस किरदार के लिए हिटलर की बायोग्राफी पढ़ी, उसके 10-12 पोज़ स्टडी किए और उनमें से 3-4 हावभाव अपनाए। परिणाम — सिनेमा को मिला उसका सबसे यादगार कॉमिक जेलर।
शिक्षक, अभिनेता और मार्गदर्शक असरानी
असरानी सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि कई पीढ़ियों के कलाकारों के गुरु भी रहे। अभिनेता रज़ा मुराद ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “वो हमारे उस्ताद थे। उन्होंने हमें इमैजिनेशन, इमोशनल मेमोरी और सीन की क्लासेस दीं। नमक हराम में हमने साथ काम किया। वो हमेशा मुस्कुराते रहते थे। ऐसे वर्सेटाइल एक्टर्स अब बहुत कम हैं।”
सिनेमा की हर शैली में असरानी का असर
करीब 350 फिल्मों में काम करने वाले असरानी ने हर रंग निभाया —
कॉमेडी में : ‘शोले’, ‘चुपके चुपके’, ‘छोटी सी बात’, ‘भूल भुलैया’
सीरियस रोल्स में : ‘अभिमान’, ‘नमक हराम’, ‘कोशिश’
विलेन के रूप में : ‘हेरा फेरी’, ‘दिल ही तो है’
उनका चेहरा दर्शकों के लिए मुस्कान का पर्याय बन गया था।
फिल्मों में ही नहीं, जीवन में भी हंसी का पात्र नहीं — प्रेरणा का प्रतीक थे
असरानी का जन्म 1 जनवरी 1941 को हुआ था। उन्होंने हंसते-हंसाते हुए जीना ही जीवन का अर्थ बताया था। फिल्मों के साथ-साथ उन्होंने निर्देशन, लेखन और अभिनय शिक्षण में भी योगदान दिया।
‘वो असरानी जेलर’… चार साल की बच्ची ने पहचान लिया था
अपने आखिरी इंटरव्यू में असरानी ने एक किस्सा बताया था — “मैं कोटा के पास शूटिंग कर रहा था, वहां एक 4 साल की बच्ची आई और बोली — ‘वो असरानी जेलर।’ तब लगा कि एक किरदार की असली जीत यही है, जब आने वाली पीढ़ी भी उसे पहचान ले।”
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