उदयपुर में मासूम के साथ माता-पिता की मौत : एक चिट्ठी ने बताया—घर क्यों उजड़ा

उदयपुर। जिले के मसारो की ओवरी गांव में गुरुवार की सुबह कुछ अलग थी। हवा सुस्त थी, आसमान बोझिल था और गलियों पर पसरा सन्नाटा गवाही दे रहा था कि रात किसी घर पर बहुत भारी बीती है। जब गांववालों ने एक मकान का गेट तोड़ा, तो उन्हें यह बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि भीतर उनकी आंखों को इतना बड़ा दर्द देखने को मिलेगा—एक परिवार की तीन टूट चुकी सांसें, तीन खामोश देहें और एक घर, जो हमेशा के लिए उजड़ गया।

फर्श पर पड़ी थी 27 साल की शारदा—जैसे अपनी अधूरी कहानियों को हथेलियों में छुपाए सो गई हो। दूसरे कमरे में 7 साल का हेमू लटका मिला—एक छोटा-सा बच्चा, जिसके झूठ-मूठ के खेल भी अभी पूरे नहीं हुए थे। और उसी कमरे में उसके पिता, 30 वर्षीय जगदीश, जिसने शायद अपनी दुनिया को टूटते देखा और खुद भी उसी अंधेरे में खो गया, जहां से लौटकर कोई नहीं आता।

दीवार पर चिपका एक सुसाइड नोट इस घर की आखिरी आवाज़ था—
“मेरे घरवालों की कोई गलती नहीं… हेमू की मम्मी मेरे से पहले फंदा लगाकर मर गई थी… किसी को परेशान मत करना…”

कुछ पंक्तियाँ… पर भीतर कितनी न जाने कितनी चीखें दबी थीं।
कैसा तूफ़ान था उस आदमी के दिल में, जिसने पहले अपनी पत्नी को फंदे से उतारा, फिर अपने मासूम बेटे को अंतिम बार गोद में लिया और फिर उसे भी मौत के हवाले कर दिया?

एक पिता की वह कौन-सी टूटन होती है, जिसके सामने उसकी दुनिया, उसका बच्चा भी बेबस हो जाता है?

गांव की हवा में मातम घुला है। बूढ़े लोगों की आंखें सवाल करती हैं—“क्या इतना अकेला महसूस कर लिया था उसने कि किसी हाथ ने उसे पकड़ा ही नहीं?”

जगदीश की मां जब घर में दाखिल हुई, तो उसकी दुनिया एक ही पल में खत्म हो गई। बहू का शरीर, पोते का लटकता मासूमपन, और बेटे की निर्जीव देह—कौन-सा दिल है जो इस दर्द को झेल पाएगा? उसकी चीखें अब भी गांव की दीवारों में गूंज रही हैं।

कभी इस घर में हेमू की आवाज़ गूंजती थी—”मम्मी आज मैं स्कूल में पहला आया!”
“पापा, मुझे नई साइकिल कब दिलाओगे?” आज वही घर खामोश है। दीवारें उसी बच्चे का नाम पुकारती लगती हैं, जो कल तक सूरज की तरह चमकता था।

पुलिस जांच कर रही है—क्यों हुआ, कैसे हुआ, किस वजह से हुआ।
पर असली सवाल सवालों से कहीं बड़ा है—आखिर कौन-सा दुख इतना भारी होता है कि एक पूरा परिवार मौत की खाई में उतर जाए?

यह सिर्फ एक खबर नहीं, एक बिखरी हुई जिंदगी है। एक मां की चुपचाप हुई मौत, एक पिता की टूटती हिचकियां और एक मासूम की वह आखिरी सांस, जिसे शायद यह भी नहीं समझ आया कि क्या हो रहा है।

गांव की भाषा में लोग बस यही कह रहे हैं—“यह घर उजड़ गया… अब इस घर की दीवारें भी रोएंगी।”

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