
भारत सरकार ने दूरसंचार सुरक्षा को मजबूत करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। मार्च 2026 से बाजार में आने वाले हर नए स्मार्टफोन में संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल होगा—और उसे हटाया भी नहीं जा सकेगा। सरकार का दावा है कि यह कदम साइबर क्राइम रोकने, नकली फ़ोन की पहचान करने और गुम मोबाइल खोजने की दिशा में एक “टेक्नोलॉजिकल ब्रेकथ्रू” है। लेकिन विपक्ष इसे एक “सरकारी जासूस” के तौर पर प्रस्तुत कर रहा है।
यानी व्यवस्था कहती है— यह आपकी सुरक्षा के लिए है। और विपक्ष कहता है—“सुरक्षा की आड़ में आपकी निजता की घेराबंदी है।” दोनों की बात में दम भी है, और तंज भी।
सरकार की दलील—डिजिटल सुरक्षा का राष्ट्रीय कवच
डीओटी (DoT) के अनुसार-संचार साथी IMEI की प्रामाणिकता जांचने में मदद करेगा।
गुम या चोरी हुए फोन को तुरंत ब्लॉक/ट्रेस किया जा सकेगा। नकली हैंडसेट के बाजार पर नकेल कसेगी। स्पैम कॉल, फ्रॉड, डिजिटल ठगी के मामलों में बड़ी राहत मिलेगी।
सरकार के आंकड़ों के अनुसार : 37 लाख चोरी/गुम मोबाइल ब्लॉक, 22.7 लाख डिवाइस खोजे गए, 50 लाख+ डाउनलोड।
कुल मिलाकर सरकार का संदेश साफ है—“ये ऐप नहीं, आपकी डिजिटल ढाल है।”
विपक्ष का तर्क—’निजता के अधिकार पर डिजिटल घेरा’
कांग्रेस और कई विपक्षी नेताओं ने इसे असंवैधानिक बताते हुए कहा यह ऐप हटाया नहीं जा सकता—यानी फोन में सरकार का स्थायी डेरा। IMEI, लोकेशन, कॉल पैटर्न जैसी संवेदनशील जानकारियों पर संभावित निगरानी। निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 का हिस्सा है—इस पर सीधा अतिक्रमण।
प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे “मोबाइल का बिग बॉस संस्करण” बताया—जहां फोन आपका है, पर नजर किसी और की।
तहसीन पूनावाला ने लिखा—“सुरक्षा की ओट में निगरानी की परत।” विपक्ष की भाषा में चिंता है, और आरोपों में तीखापन भी।
टेक कंपनियों की दुविधा—एपल का संभावित विरोध
इतिहास बताता है-TRAI के स्पैम-रिपोर्टिंग ऐप पर पहले भी Apple ने आपत्ति जताई थी, क्योंकि ऐप कॉल लॉग और SMS की अनुमति मांगता था।
अब संचार साथी की अनिवार्यता—कंपनियों के लिए स्वतंत्र OS नीति पर सीधा दबाव होगी।
सरकार की लाइन— सुरक्षा पहले : कंपनियों की लाइन— यूजर की प्राइवेसी और ब्रांड पॉलिसी पहले सिम बाइंडिंग और IMEI की चुनौती—सरकार का तर्क मजबूतद्ध
भारत में नकली IMEI, एक IMEI कई डिवाइस पर चोरी के फोन का री-सेल डिजिटल गिरफ्तारी ठगी पुलिस ऑफिसर बनकर किए जाने वाले फ्रॉड इन मुद्दों पर संचार साथी सीधे CEIR से जुड़कर समाधान देता है। तकनीकी नजर से—यह कदम गलत नहीं।
यानी सुरक्षा की ग़लतियां नहीं, खामोशी से बढ़ती ठगी ही सबसे बड़ा डर है।
राजनीतिक व्यंग्य—मोबाइल की नई त्रिमूर्ति: सरकार, ऐप और आम आदमी
आज राजनीति में ये ऐप एक नया मुद्दा बन गया है सरकार कहती है— “सुरक्षित रहो।”
विपक्ष कहता है— “सज़ग रहो।” जनता कहती है— “पहले समझाओ, फिर इंस्टॉल कराओ।”
मोबाइल में जगह कम है, डेटा की चिंता ज्यादा है, और ऐप की बहस उससे भी ज्यादा तेज़ है। व्यंग्य यही है—जिस देश में कॉल ड्रॉप की समस्या 20 साल नहीं सुधरी,
वह अब मोबाइल सुरक्षा को लेकर अचानक ‘अति-सजग’ है।
सकारात्मक पहलू—यदि ऐप भरोसे के साथ चले
चोरी हुआ मोबाइल मिनटों में ब्लॉक। नकली फोन की पहचान। साइबर फ्रॉड में कमी। डिजिटल पहचान सुरक्षित। ग्रामीण और बुजुर्ग उपयोगकर्ताओं के लिए आसान सुरक्षा टूल।
अगर डेटा प्राइवेसी साफ-साफ सुनिश्चित कर दी जाए, तो यह ऐप ‘डिजिटल आधार कार्ड की तरह संक्रमणकारी बदलाव’ साबित हो सकता है।
विश्वास की कमी ने तकनीक को विवाद में बदल दिया
संचार साथी एक तकनीकी समाधान है, लेकिन उसका राजनीतिक परिणाम बहुत बड़ा है। यदि सरकार : डेटा सुरक्षा की गारंटी सार्वजनिक करे, स्वतंत्र ऑडिट कराए,
ऐप को पारदर्शी बनाए, तो यह विवाद स्वतः शांत हो सकता है।
क्योंकि आज की राजनीति में समस्या तकनीक नहीं, तकनीक पर भरोसे की कमी है।
संचार साथी की असली परीक्षा यही है—यह सुरक्षा का साथी साबित होगा, या निगरानी का संदेह?
About Author
You may also like
-
हिंदुस्तान जिंक की ICMM पार्टनरशिप : भारत के क्रिटिकल मिनरल्स लीडरशिप को ग्लोबल मंच पर मजबूती
-
कारा हंटर: वह डीपफेक वीडियो जिसने लगभग खत्म कर दी उनकी राजनीतिक पहचान
-
कर्नाटक में ब्रेकफास्ट पॉलिटिक्स : सियासी गर्माहट के बीच डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने सीएम सिद्धारमैया को नाश्ते पर बुलाया
-
रुबैया सईद किडनैपिंग केस : 35 साल बाद सीबीआई ने फ़रार आरोपी शफ़ात अहमद शंगलू को दबोचा
-
इंडोनेशिया और श्रीलंका में भीषण बाढ़ का कहर : कुल 1,000 से अधिक लोगों की मौत, लाखों बेघर