उदयपुर। बीजेपी की दूसरी लिस्ट में उदयपुर शहर विधानसभा से भाजपा के 45 साल पुराने कार्यकर्ता ताराचंद जैन को प्रत्याशी घोषित किया गया। इस नाम ने तमाम दावेदारों और उनके समर्थकों को चौंका दिया। खुद को सबसे प्रबल दावेदार मान रहे पारस सिंघवी ने बगावत का बिगुल बजा दिया। झटका अन्य दावेदारों को भी लगा है। पार्टी के लिहाज से टिकट उस प्रत्याशी को दिया गया जो इमरजेंसी में छह माह जेल में रहा। इसके बाद लगातार पार्टी में विभिन्न पदों पर रहते हुए लगातार काम कर रहा है। लेकिन, भाजपा प्रत्याशी ताराचंद जैन के सामने मौजूदा हालात वही है जो कटारिया के सामने 2003 में थे। बड़ी सादड़ी से उदयपुर लौटने पर कोई भी ब्राह्मण चेहरा उनके साथ नहीं था। ताराचंद जैन के सामने उससे भी बड़ी चुनौती है।
दरअसल बीजेपी की लिस्ट में मेवाड़ से कोई भी ब्राह्मण चेहरा नहीं है। इससे समाज में गुस्सा जाहिर सी बात है। उधर, ताराचंद जैन का टिकट बीस सालों से उदयपुर शहर से विधायक चुने जाने वाले असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया की सिफारिश पर हुआ है। ऐसा पार्टी के तमाम कार्यकर्ताओं का मानना है। अन्य दावेदारों के पीछे छूटने की वजह यह है कि कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद उन्होंने कहीं न कहीं कटारिया को इग्नोर किया और टिकट पाने की चाह में ओवरटेक करते हुए प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी, ओम बिरला जैसे नेताओं की शरण में चले गए। ताराचंद जैन लगातार कटारिया के संपर्क में रहे और अपनी वफादारी को याद दिलाते रहे। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक कटारिया ने ताराचंद जैन की सिफारिश कर अपने एहसानों का बदला चुकाया है।
आखिर कटारिया ने क्यों ताराचंद जैने की सिफारिश की? इस सवाल का जवाब यह है कि ताराचंद जैन पिछले 40 सालों से कटारिया के वफादार के रूप में काम करते रहे हैं। 2010 के बाद जिलाध्यक्ष पद से हटाए जाने के कारण जैन व उनके समर्थकों का कटारिया से विवाद हो गया। दूसरे गुट ने कटारिया के घेरे में एंट्री कर ली। जैन व उनके समर्थकों को अंदर नहीं आने दिया। कुछ साथी जैन गुट से अलग होकर फिर कटारिया के करीब चले गए।
अपने लंबे राजनीतिक जीवन के अनुभव के आधार पर ताराचंद जैन बाहर रहकर भी कटारिया से संपर्क में रहे और खुद को सही साबित करने में लगे रहे। विवाद सुलझा तो कटारिया ने ताराचंद जैन को चार साल पहले पार्षद का टिकट देकर डिप्टी मेयर बनाने का वादा किया। उस वक्त पारस सिंघवी और ताराचंद जैन के विरोधियों ने सियासी समीकरण को उलट दिया। जैन की बजाय पार सिंघवी डिप्टी मेयर चुने गए। ताराचंद जैन को निर्माण समिति अध्यक्ष पर संतोष करना पड़ा। जैन ने कटारिया पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया। जब इस बारे में कटारिया से सवाल पूछे गए तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि ताराचंद जैन पार्टी का 30 साल से टेस्टेड कार्यकर्ता है। बहरहाल ताराचंद जैन ने डिप्टी मेयर नहीं बनने पर जो आंसू पिए थे, उसका हिसाब बराबर कर दिया है।
अब बात करते हैं-ताराचंद जैन की शहर में मौजूद स्थिति के बारे में। किसी भी ब्राह्मण को टिकट नहीं मिलने के कारण ब्राह्मण समाज में पार्टी आलाकमान के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा है। वहीं जैन समाज जो कटारिया के नाम पर एक हुआ करता था, मौजूदा स्थिति में कई गुटों में बंटा हुआ है। शुरू से ही जैन समाज के नेता ताराचंद जैन से नाराज रहे हैं। दूसरी बात पिछले करीब दस बारह सालों से ताराचंद जैन का नाम उतना लोकप्रिय नहीं रहा, जितना अन्य दावेदारों का था। युवाओं में ताराचंद जैन को पहचान बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। साथ ही ताराचंद जैन की जीत की राह में बैरियर बहुत अधिक है। पूरा खेल अब कटारिया पर ही निर्भर करेगा। वे कैसे जैन के पक्ष में माहौल जुटा पाते हैं।
ताराचंद जैन के पक्ष में कुछ खास बाते हैं जो उनको अन्य दावेदारों से अलग करती है। जैन ने लंबे समय तक संगठन का काम किया है इसलिए उनकी पार्टी कार्यकर्ताओं पर अच्छी पकड़ है। नगर निगम के दो बोर्ड में जिलाध्यक्ष रहते हुए ताराचंद जैन ने पार्षद के लिए टिकट वितरण किए थे, वे सभी लोग जैन के पक्ष में काम करेंगे। ताराचंद जैन ने उस वक्त पार्टी का नेतृत्व किया जब कटारिया के शहर में सभी विरोधी थे। इसके बावजूद कटारिया चुनाव जीतकर आए थे।
बहरहाल अभी कांग्रेस ने उदयपुर से अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। लेकिन पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार कांग्रेस ज्यादा आक्रमक दिखाई दे रही है। कांग्रेस में जो नाम अभी तक सामने आए हैं, वो इस बार बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं। उनकी अपनी तैयारी है, लेकिन ताराचंद जैन ने भी टिकट मिलने की उम्मीद के चलते चुनावी रणभूमि का कागजी काम पूरा कर लिया है। उन्होंने आज से ही अपना प्रचार भी शुरू कर दिया है। यह मानकर चलिए कि इस बार उदयपुर में बीजेपी और कांग्रेस के बीच भारत बनाम पाक क्रिकेट मैच की तरह रोमांचक मुकाबला होने वाला है।
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