विकसित राजस्थान – 2047 : जनजाति मंत्री बाेले-जल-जंगल और युवाओं को केंद्र में रखकर बने कार्ययोजना, ईमानदारी से हो क्रियान्वयन

उदयपुर। केंद्र सरकार के विकसित भारत मिशन अंतर्गत विकसित राजस्थान-2047 अभियान के तहत जनजाति उपयोजना क्षेत्र का विजन दस्तावेज तैयार करने को लेकर जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग तथा माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में टीएडी क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों और अन्य स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों की कार्यशाला मंगलवार को जनजाति क्षेत्रीय विकास मंत्री बाबूलाल खराड़ी की अध्यक्षता में आयुक्त कार्यालय सभागार में हुई।

कार्यशाला में राज्यसभा सांसद चुन्नीलाल गरासिया, उदयपुर के नवनिर्वाचित सांसद डॉ. मन्नालाल रावत तथा राजसमंद सांसद श्रीमती महिमा कुमारी भी बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद रही। जनप्रतिनिधियों तथा अन्य हितधारकों ने जनजाति अंचल के समेकित विकास पर मंथन करते हुए महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए। उक्त सुझावों को समावेशित करते हुए विजन दस्तावेज तैयार किया जाएगा।

प्रारंभ में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग की आयुक्त प्रज्ञा केवलरमानी ने स्वागत करते हुए कार्यशाला के उद्देश्य की जानकारी दी। कार्यशाला में वीडियो कांफ्रेन्स के माध्यम से जुड़े शासन सचिव डॉ.जोगाराम ने विकसित राजस्थान अभियान की जानकारी देते हुए बताया कि प्रदेश में 14 सेक्टर तय किए गए हैं। इसमें सामाजिक संरक्षण के तहत जनजाति कल्याण को शामिल किया गया है। जनप्रतिनिधियों और हितधारकों के सुझावों के आधार पर 30 जून तक विजन दस्तावेज तैयार कर प्रेषित किया जाएगा।

प्रदेश स्तर पर दस्तावेज तैयार करने के बाद उसे केंद्र सरकार को अग्रेषित करेंगे। आगामी 15 अगस्त को विजन दस्तावेज जारी किया जाना है। उन्होंने सभी जनप्रतिनिधियों और हितधारकों से सुझाव आमंत्रित किए। निदेशक सांख्यिकी सुधीर दवे ने पीपीटी के माध्यम से जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग की विभिन्न योजनाओं की प्रगति से अवगत कराया। संचालन टीआरआई निदेशक अर्चना रांका ने किया। आभार अतिरिक्त आयुक्त प्रथम प्रभा गौतम ने व्यक्त किया। कार्यशाला में उदयपुर जिला प्रमुख ममता कुंवर, उप जिला प्रमुख पुष्कर तेली, गोगुन्दा विधायक प्रताप गमेती, सलूम्बर विधायक अमृतलाल मीणा, वल्लभनगर विधायक उदयलाल डांगी, डूंगरपुर जिला प्रमुख सूर्यादेवी अहारी सहित उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, सिरोही, बारां, प्रतापगढ़ आदि जिलों में जनजाति कल्याण को लेकर कार्यरत स्वयंसेवी संगठनों के पदाधिकारियों ने सुझाव दिए। अतिरिक्त आयुक्त (द्वितीय) अनिल कुमार शर्मा, उपायुक्त टीएडी अंजुम ताहिर सम्मा सहित टीएडी क्षेत्र के जिलों के विभागीय अधिकारीगण भी उपस्थित रहे।

समेकित विकास के लिए समन्वित प्रयास जरूरी : केबिनेट मंत्री
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए केबिनेट मंत्री श्री बाबूलाल खराड़ी ने कहा कि जनजाति अंचल के समेकित विकास के लिए समन्वित प्रयास जरूरी हैं। योजनाएं बहुत हैं, धन की भी कोई कमी नहीं, आवश्यकता है कि क्षेत्र की जरूरत को समझते हुए ईमानदारी से काम कार्य किया जाए। उन्होंने जल-जंगल और युवाओं को केंद्र में रखकर कार्ययोजना बनाने पर जोर दिया।

उन्होंने कहा कि आदिवासी अंचल का सही मायनों में विकास करना है तो स्थानीय संसाधनों के समुचित उपयोग पर बल देना होगा। वन उपज संग्रहण एवं उसने उत्पाद तैयार करना और उन्हें मार्केट देने पर काम होना चाहिए। स्थानीय जलाशयों में स्थानीय आदिवासियों को प्रशिक्षित कर मछली पालन को बढ़ावा दिया जा सकता है। कौशल विकास सिर्फ प्रशिक्षण तक सीमित नहीं रहकर युवाओं को रोजगार से जोड़ने तक हो। युवाओं को लाईब्रेरी, ई-लाईब्रेरी तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग सुविधा में विस्तार की भी दरकार है। राज्यसभा सांसद चुन्नीलाल गरासिया ने शिक्षा पर अधिक जोर देने की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि शिक्षा के अभाव में ही युवा दिग्भ्रमित हो रहा है। राजसमंद सांसद श्रीमती महिमा कुमारी ने भी जनप्रतिनिधियों और अधिकारिकों को ईमानदारी से काम करते हुए योजनाओं का लाभ हर पात्र व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए सामूहिक प्रयासों पर बल दिया।

वन उत्पादों पर शुरू हों स्टार्ट अप-डॉ. रावत

उदयपुर के नवनिर्वाचित सांसद डॉ.मन्नालाल रावत ने अस्मिता, अस्तित्व और विकास में समन्वय पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आदिवासी अंचल की विरासतों और सांस्कृतिक विशिष्टताओं को पहचान दिलाने की जरूरत है। उन्होंने मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक बनाए जाने, उसे नेशनल हाइवे से जोड़ने, बेणेश्वर धाम को विश्व पटल पर स्थापित करने, केसरियाजी, देवसोमनाथ, बेणेश्वर धाम और मानगढ़ धाम को पर्यटन सर्किट रूप में विकसित करने के सुझाव दिए। साथ ही जनजाति अंचल की सांस्कृतिक धरोहर गवरी के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर का संस्थान स्थापित किए जाने की आवश्यकता प्रतिपादित की ।

सांसद डॉ.रावत ने कृषि विज्ञान की तर्ज पर वन विज्ञान पर काम करते हुए वनोपज से आर्थिक उन्नयन के विकल्प तलाश करने, वन उत्पादों पर स्टार्ट अप शुरू किए जाने, उदयपुर में माइनिंग विश्वविद्यालय के लिए पूरजोर प्रयास करने, एक जिला एक उत्पाद की तर्ज पर स्थानीय स्तर पर एक उपखण्ड-एक उत्पाद के आधार पर स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने, बावड़ियों को पुनर्जीवित करने, बड़े जलाशयों को आपस में जोड़ने की योजना तैयार किए जाने, आवासीय विद्यालयों को कौशल विकास केंद्र के रूप में विकसित करने, आदिवासी अंचल में स्टेच्यू ऑफ समरसता की परिकल्पना करते हुए उसे मूर्त रूप दिए जाने, उदयपुर में गो विज्ञान विश्वविद्यालय स्थापित करने आदि के सुझाव दिए।

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