
उदयपुर। झीलों की नगरी, केवल महलों और झीलों के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यहां की वेटलैंड्स पक्षियों का भी स्वर्ग हैं। हर साल हजारों परिंदे यहां आसमान की रंगीन चित्रकारी करते हैं। इन्हीं पंखों की सरसराहट और चहचहाहट के बीच 15 से 18 जनवरी 2026 तक उदयपुर बर्ड फेस्टिवल का आयोजन होगा।
इस बार उत्सव की शान होगा एक विशेष पक्षी—‘ब्लैक नेक्ड स्टोक’—जिसे फेस्टिवल का फ्लैगशिप बर्ड घोषित किया गया है।
ब्लैक नेक्ड स्टोक (Black-necked Stork) भारत की चुनिंदा वेटलैंड्स में पाई जाने वाली एक दुर्लभ और शानदार प्रजाति है। इसकी लंबी टांगें, काला-चमकीला गला और सफेद धड़ इसे पहचानने लायक बनाते हैं। परिंदों के विशेषज्ञ बताते हैं कि यह प्रजाति वेटलैंड इकोसिस्टम की सेहत का संकेतक है। मेनार और आस-पास की झीलों में यह पक्षी समय-समय पर दिखाई देता है। इसलिए इसे फ्लैगशिप बनाने का मकसद है—लोगों का ध्यान wetlands conservation पर केंद्रित करना।
पिछले वर्षों तक उद्घाटन पिछोला झील के किनारे होता था, लेकिन इस बार आयोजन समिति ने विशेष निर्णय लिया है। उद्घाटन स्थल चुना गया है—रामसर साइट मेनार।
मेनार को स्थानीय लोग “Bird Village” भी कहते हैं। यहां की झीलों में हर साल सर्दियों में 150 से ज्यादा प्रजातियां दर्ज की जाती हैं। फ्लेमिंगो, बार-हेडेड गीज़ और पेलिकन जैसे प्रवासी पक्षी यहां का आकर्षण होते हैं। उद्घाटन यहीं करना, पक्षी संरक्षण के संदेश को और गहराई देता है।
चार दिन, अनगिनत अनुभव
फेस्टिवल केवल इवेंट्स का सिलसिला नहीं है, बल्कि यह प्रकृति प्रेमियों और आम जनता को पक्षियों की दुनिया से जोड़ने का मौका है।
15 जनवरी : शुरुआत बर्ड रेस और फोटोग्राफी वर्कशॉप से होगी। इसमें टीमें झीलों और वेटलैंड्स पर जाकर अधिकतम प्रजातियां पहचानने की प्रतिस्पर्धा करेंगी।
16 जनवरी : मेनार में उद्घाटन समारोह। उसी दिन पेंटिंग और नेचर क्विज, फोटो गैलरी, स्टाम्प प्रदर्शनी और फील्ड विजिट।
17 जनवरी : संभाग के छह अलग-अलग रूट्स पर विशेषज्ञों के साथ फील्ड विजिट। यह सबसे रोमांचक हिस्सा होता है, जहां प्रतिभागी दूरबीन लेकर पक्षियों का अवलोकन करते हैं।
18 जनवरी : सुबह नेचर लिटरेरी फेस्टिवल और समापन समारोह। इसमें संरक्षण में योगदान देने वाले लोगों को सम्मानित किया जाएगा।
छह रूट्स, छह यात्राएं
फील्ड विजिट के लिए बनाए गए रूट इस तरह हैं कि प्रतिभागी उदयपुर संभाग की विविध वेटलैंड्स और पक्षियों से रूबरू हो सकें। उदाहरण के लिए—रूंडेड़ा–मेनार–खेरोदा रूट पर जलपक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियाँ मिलती हैं, जबकि चीरवा–नाथद्वारा–घासा–राज्यपास–रिछेड़ रूट पहाड़ी वेटलैंड्स का अनुभव कराता है।
सिर्फ पक्षी नहीं, संस्कृति भी
यह उत्सव केवल पक्षियों का ही नहीं, बल्कि स्थानीय संस्कृति का भी हिस्सा है। मेनार और आस-पास के गांवों में लोग इन पक्षियों को अपना मेहमान मानते हैं। सर्दियों में यहां का दृश्य अलग ही होता है—झीलों में हज़ारों प्रवासी परिंदे, किनारे पर बच्चों की स्कूल यात्राएँ, और फोटो खींचते पर्यटक।
विशेषज्ञों और अधिकारियों की मौजूदगी
फेस्टिवल की तैयारियों की समीक्षा बैठक में मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) एस.आर. यादव, उप वन संरक्षक यादवेंद्र सिंह चूंडावत, संभागीय मुख्य वन संरक्षक सुनील छिंद्री, डीएफओ मुकेश सैनी, सेवानिवृत्त अधिकारी, आईएफएस, आईएएस, पक्षीविद देवेंद्र श्रीमाली और प्रकृति प्रेमियों ने हिस्सा लिया। इससे साफ है कि यह आयोजन केवल पर्यटन या मनोरंजन तक सीमित नहीं, बल्कि नीति, संरक्षण और शिक्षा का मंच भी है।
क्यों अहम है यह उत्सव?
जागरूकता : आम लोगों को पक्षियों और वेटलैंड्स की अहमियत समझाना।
संरक्षण : दुर्लभ प्रजातियों और उनके निवास स्थान पर ध्यान आकर्षित करना।
शोध और शिक्षा : युवाओं और छात्रों को प्रकृति अध्ययन का अवसर देना।
पर्यटन : उदयपुर के इको-टूरिज्म को बढ़ावा देना।
उदयपुर बर्ड फेस्टिवल केवल चार दिन का आयोजन नहीं है, बल्कि यह परिंदों और इंसानों के रिश्ते का उत्सव है। जब ब्लैक नेक्ड स्टोक अपने पंख फैलाकर झील के ऊपर मंडराएगा, तो यह केवल एक दृश्य नहीं होगा, बल्कि एक संदेश होगा—कि प्रकृति की इस धरोहर को संजोकर रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।
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