उदयपुर। शारदीय नवरात्रि की नवमी तिथि पर बुधवार को सिटी पैलेस प्रांगण में मेवाड़ की गौरवशाली परंपरा जीवंत हुई। मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य एवं महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन के अध्यक्ष व प्रबंध न्यासी डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने अश्व पूजन की सनातन परंपरा का विधिवत निर्वहन किया।
वेदपाठी ब्राह्मणों के वैदिक मंत्रोच्चार के बीच श्रृंगारित अश्व—राजस्वरूप, नागराज और अश्वराज—का पूजन हुआ। डॉ. मेवाड़ ने परंपरानुसार अश्वों की आरती कर उन्हें आहार, वस्त्र और ज्वारे अर्पित किए।
इस अवसर पर उन्होंने कहा— “सनातन संस्कृति और शास्त्रों में अश्वों का विशेष महत्व है। सूर्यवंशी परंपरा में अश्वों को शुभ और सम्मान का प्रतीक माना गया है। रणभूमि में स्वामीभक्ति और पराक्रम का उदाहरण घोड़े प्रस्तुत करते आए हैं। चेतक जैसे अश्व का शौर्य सदैव मेवाड़ के इतिहास में अमर रहेगा।”
गौरतलब है कि 2 अप्रैल 2025 को हुए गद्दी उत्सव में भी सिटी पैलेस में अश्व पूजन की परंपरा निभाई गई थी।
ऐतिहासिक संदर्भ
महाराणाओं ने राजमहल में अश्वों के लिए कई पायगा (अस्तबल) बनवाए। इनमें महाराणा करण सिंह (1620–1628 ईस्वी) द्वारा निर्मित सातानवारी पायगा विशेष प्रसिद्ध है। “सातानवारी” का अर्थ है सात और नौ खानों वाला अस्तबल। 17वीं सदी के इस ऐतिहासिक अस्तबल में आज भी मारवाड़ी नस्ल के घोड़े दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।
आज़ादी के बाद भी मेवाड़ की इस सूर्यवंशी परंपरा को महाराणा भूपाल सिंह (1930–1955 ईस्वी) ने जीवंत बनाए रखा। आज डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।
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