उदयपुर में कांग्रेस की समीक्षा बैठक : नगर निकाय चुनावों से पहले सियासी रणनीति या जनहित की आवाज़?

 

 

आप पढ़ रहे हैं हबीब की रिपोर्ट

राजस्थान में लंबे समय से टल रहे नगर निकाय चुनाव, बिगड़ती कानून व्यवस्था और स्मार्ट मीटर योजना में कथित अवैध वसूली जैसे गंभीर मुद्दों को लेकर 23 जुलाई को उदयपुर में कांग्रेस पार्टी ने एक अहम बैठक की। यह बैठक न केवल आगामी निकाय चुनावों को लेकर कांग्रेस की संगठनात्मक तैयारी का संकेत देती है, बल्कि भाजपा सरकार पर जनविरोधी नीतियों के आरोपों की एक संगठित झलक भी पेश करती है।

राजस्थान में नगर निकाय चुनावों को लेकर अनिश्चितता बरकरार है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा सरकार राजनीतिक लाभ के लिए चुनावों को जानबूझकर टाल रही है। इस संदर्भ में उदयपुर शहर जिला कांग्रेस कमेटी की बैठक, राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के निर्देश पर, जिला अध्यक्ष फतह सिंह राठौड़ की अध्यक्षता में आयोजित की गई। मुख्य अतिथि के रूप में बामनवास विधायक इंदिरा मीणा और विशिष्ट अतिथि के रूप में शहर विधानसभा प्रभारी डिंपल राठौड़ मौजूद रहीं।

राजनीतिक संकेत : चुनावी रणभेरी का आग़ाज़
बैठक का केंद्रीय मुद्दा नगर निकाय चुनावों में हो रही देरी था। कांग्रेस नेताओं ने सरकार पर सीधे आरोप लगाए कि यह लोकतांत्रिक व्यवस्था की उपेक्षा है।
इंदिरा मीणा ने स्पष्ट शब्दों में कहा : “सरकार जानबूझकर चुनाव टाल रही है। अगर आवश्यकता पड़ी तो कांग्रेस सड़कों पर उतरेगी।”

यह बयान आगामी चुनावों से पहले कांग्रेस के आक्रामक तेवर का संकेत है। इस बयान से यह साफ है कि कांग्रेस अब “नरम विपक्ष” की छवि से बाहर निकल कर आंदोलनकारी रणनीति की ओर बढ़ रही है।

कानून व्यवस्था पर हमला : विपक्ष की धारदार भाषा

राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर कांग्रेस के स्वर बेहद तल्ख थे। इंदिरा मीणा ने बैठक में कहा : “राज्य में अपराधियों में भय नहीं है। बलात्कार, डकैती, लूट जैसी घटनाएं आम हो गई हैं। बजरी और भू-माफिया का खुला आतंक है।”

यह टिप्पणी भाजपा की प्रशासनिक कार्यशैली पर सीधा हमला है। विशेष रूप से “बजरी माफिया” और “भू-माफिया” जैसे शब्द स्थानीय संदर्भ में अत्यंत संवेदनशील हैं, जिनसे आम जनता प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती रही है।

यहां कांग्रेस न केवल अपराध को मुद्दा बना रही है, बल्कि यह भी संकेत दे रही है कि भाजपा की ‘सख्त शासन’ की छवि अब गहराते अव्यवस्था के कारण धुंधली पड़ चुकी है।

 

 

स्मार्ट मीटर योजना पर अवैध वसूली का आरोप

बैठक में स्मार्ट मीटर योजना को लेकर भी कांग्रेस ने गंभीर आरोप लगाए।
दलील यह दी गई कि : “स्मार्ट मीटर के नाम पर उपभोक्ताओं से अवैध वसूली की जा रही है, और जनता बिजली जैसी बुनियादी सुविधा को लेकर भी त्रस्त है।”

स्मार्ट मीटर योजना का उद्देश्य पारदर्शिता और कुशलता है, लेकिन यदि इसके कार्यान्वयन में गड़बड़ी हुई है, तो यह भाजपा के “डिजिटल सुशासन” मॉडल की विफलता के रूप में देखा जाएगा। कांग्रेस इसे चुनावी हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की तैयारी में दिख रही है।

कांग्रेस का आंतरिक समीकरण : संगठनात्मक ताकत पर ज़ोर
डिंपल राठौड़ ने इस अवसर पर कहा कि उदयपुर में कांग्रेस संगठन बूथ स्तर तक मजबूत है और पार्टी आगामी निकाय चुनाव में “अपना बोर्ड” बनाएगी।

अध्यक्ष फतह सिंह राठौड़ ने भी संगठन की कार्यशैली की सराहना करते हुए कहा : “हर कांग्रेस कार्यकर्ता समर्पित भाव से काम कर रहा है… आने वाला समय कांग्रेस के लिए सुनहरा होगा।”

यह संगठनात्मक आत्मविश्वास कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बीते वर्षों में पार्टी को जमीनी स्तर पर कमजोर बताया जाता रहा है। यह बैठक, भीतर से मजबूती और बाहर से आक्रामकता की रणनीति को रेखांकित करती है।

ज्ञापन सौंपा गया : सांकेतिक विरोध या आंदोलन की तैयारी?
बैठक के बाद उदयपुर शहर और देहात जिला कांग्रेस कमेटी ने संयुक्त रूप से अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में चुनाव शीघ्र कराने, कानून व्यवस्था में सुधार और स्मार्ट मीटर वसूली पर रोक की मांग की गई।

यह क्या संकेत करता है?
ज्ञापन देना परंपरागत विरोध का प्रतीक है, लेकिन यदि इन मांगों की अनदेखी हुई, तो कांग्रेस जिस प्रकार “सड़कों पर उतरने” की बात कह रही है, वह सरकार के लिए प्रशासनिक और सियासी चुनौती बन सकती है।

कौन-कौन रहे शामिल : स्थानीय ताकत का प्रदर्शन
बैठक में ताराचंद मीणा (लोकसभा प्रत्याशी), गोपाल कृष्ण शर्मा (महामंत्री, RPCC), त्रिलोक पूर्बिया (पूर्व विधायक), नजमा मेवाफरोश (महिला कांग्रेस अध्यक्ष) सहित लगभग 40 प्रमुख नेता शामिल रहे। यह व्यापक भागीदारी पार्टी के अंदरूनी समन्वय को दर्शाती है।

कांग्रेस की ‘एक तीर, कई निशाने’ रणनीति

इस बैठक के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस ने भाजपा सरकार को घेरने के लिए बहुपरतीय रणनीति अपनाई है : स्थानीय चुनावों में देरी को जनतंत्र के अपमान के रूप में पेश किया जा रहा है।

कानून व्यवस्था और माफिया राज को आमजन की सुरक्षा से जोड़ कर भावनात्मक मुद्दा बनाया जा रहा है। स्मार्ट मीटर योजना को ‘लूट की स्कीम’ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

और सबसे बढ़कर, पार्टी यह संदेश देने में सफल रही है कि वह संगठन के स्तर पर तैयार और एकजुट है।

इस बैठक का संदेश केवल कांग्रेस कार्यकर्ताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भाजपा के लिए एक राजनीतिक चेतावनी भी है कि यदि वह समय रहते चुनावों की घोषणा नहीं करती, कानून व्यवस्था पर नियंत्रण नहीं पाती और बिजली-पानी जैसी बुनियादी समस्याओं को नहीं सुलझाती, तो कांग्रेस उसे सड़कों पर चुनौती देने के लिए तैयार है।

राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि यह बैठक कांग्रेस के ‘बैकफुट’ से ‘फ्रंटफुट’ पर आने की शुरुआत हो सकती है।

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