“फर्ज़ी दूतावास का जाल : ग़ाज़ियाबाद में ‘राजदूत’ की राज़दारी और ‘वेस्टआर्कटिका’ का सच”

आप पढ़ रहे हैं हबीब की रिपोर्ट

ग़ाज़ियाबाद। शहर के कवि नगर इलाके में पुलिस ने जब एक किराए के मकान से डिप्लोमैटिक नंबर प्लेट लगी गाड़ियों, दर्जनों नकली पासपोर्ट और नकदी के साथ एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया, तो किसी को यकीन नहीं हुआ कि यह एक आम अपराधी की गिरफ़्तारी थी। यह गिरफ़्तारी एक ऐसे शख्स की थी जो खुद को काल्पनिक देशों का ‘राजदूत’ बताकर लोगों को न सिर्फ ठग रहा था, बल्कि भारत की धरती पर एक फर्ज़ी दूतावास भी चला रहा था।

ये कहानी है हर्षवर्धन जैन की — एक जालसाज़, जो फैंटेसी की आड़ में फरेब कर रहा था।

एक आम सुबह और असाधारण गिरफ़्तारी

22 जुलाई 2025 की सुबह एसटीएफ़ (विशेष कार्य बल) की नोएडा यूनिट ने ग़ाज़ियाबाद के कवि नगर में एक किराए के मकान पर छापा मारा। मकान के बाहर चार गाड़ियां खड़ी थीं — सभी पर ‘डिप्लोमैटिक’ नंबर प्लेट लगी थीं। पहली ही नज़र में यह किसी विदेशी मिशन का पता लगता था। लेकिन जैसे-जैसे तलाशी शुरू हुई, वैसे-वैसे परतें खुलती गईं।

पुलिस को वहां से मिला :

  • 44 लाख 70 हज़ार रुपये नकद
  • 12 फर्जी पासपोर्ट
  • दो फर्जी पैन कार्ड
  • 34 देशों और कंपनियों की नकली मोहरें
  • दो प्रेस कार्ड
  • कई देशों की विदेशी मुद्रा
  • शेल कंपनियों से जुड़े कागजात
  • 18 अतिरिक्त फर्ज़ी नंबर प्लेटें

यह कोई मामूली ठग नहीं था। यह एक ऐसा व्यक्ति था जिसने फैंटेसी और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दुनिया को अपने फरेब का औज़ार बना लिया था।

कौन है हर्षवर्धन जैन?

हर्षवर्धन जैन ग़ाज़ियाबाद के कवि नगर स्थित केबी-45 का निवासी है। लेकिन उसकी असली पहचान इससे कहीं ज़्यादा पेचीदा और रहस्यमयी है।

पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं कि वह पहले भी विवादों में रह चुका है। वर्ष 2011 में कवि नगर थाने में दर्ज एक मामले में वह गिरफ़्तार हो चुका था। उस समय उसके पास से प्रतिबंधित सैटेलाइट फोन बरामद किया गया था।

हर्षवर्धन ने न केवल तकनीक का गलत इस्तेमाल किया, बल्कि आम लोगों की भावनाओं, बेरोज़गारी और महत्वाकांक्षा को भी अपने अपराध का हथियार बना लिया।

वेस्टआर्कटिका, पॉलविया, लोडोनिया — देश या धोखा?

जिन ‘देशों’ का वह राजदूत बनकर लोगों को प्रभावित कर रहा था, उनमें से एक नाम है — वेस्टआर्कटिका

तो क्या वाकई कोई देश है वेस्टआर्कटिका?

नहीं।
वेस्टआर्कटिका एक माइक्रोनेशन (Micronation) है — एक काल्पनिक देश जिसे वर्ष 2001 में अमेरिका के पूर्व नौसेना अधिकारी ट्रैविस मैकहेनरी ने स्थापित किया था।

इस ‘देश’ की अपनी वेबसाइट है, एक झंडा है, राजचिह्न है, यहां तक कि एक मुद्रा भी है — लेकिन यह सब कुछ प्रतीकात्मक है।

इसका दावा है कि यह अंटार्कटिका के उस हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है जिस पर किसी भी देश का दावा नहीं है। इसकी संरचना पूरी तरह डिजिटल और गैर-सरकारी है। संयुक्त राष्ट्र सहित किसी भी संप्रभु राष्ट्र ने इसे देश के रूप में मान्यता नहीं दी है।

इसके संस्थापक ट्रैविस खुद को “ग्रैंड ड्यूक” कहते हैं और उनकी ‘सरकार’ में प्रधानमंत्री, रॉयल काउंसिल और पीअर्स जैसे प्रतीकात्मक पद मौजूद हैं।

ठीक इसी डिजिटल कल्पना को हर्षवर्धन जैन ने अपनी ठगी का औज़ार बना लिया।

फैंटेसी का फ़रेब कैसे बना?

हर्षवर्धन न केवल खुद को वेस्टआर्कटिका, पॉलविया और लोडोनिया का राजदूत बताता था, बल्कि इसके प्रमाण स्वरूप फर्जी दस्तावेज़, डिप्लोमैटिक गाड़ियां, प्रेस कार्ड, नकली विदेशी पासपोर्ट और सरकारी मुहरें तैयार करता था।

उसका मॉडस ऑपरेंडी क्या था?

  1. पहचान निर्माण: वह खुद को विदेशी राजदूत के रूप में पेश करता था।
  2. प्रभावित करना: नामचीन हस्तियों के साथ मॉर्फ की गई तस्वीरें दिखाकर लोगों को भरोसे में लेता था।
  3. झांसा देना: लोगों से कहता कि वह उन्हें विदेश में नौकरी या सम्मान दिला सकता है।
  4. शेल कंपनियां: हवाला लेन-देन के लिए इन कंपनियों का इस्तेमाल करता था।
  5. कूटनीतिक छूट का दावा: गाड़ियों पर डिप्लोमैटिक प्लेट लगाकर पुलिस की जांच से बचने की कोशिश करता।

ठगी का कारोबार और उसके शिकार

अब तक की जांच में पता चला है कि हर्षवर्धन ने विदेश में नौकरी दिलाने, राजनयिक सम्मान दिलवाने, और ग्लोबल नेटवर्किंग के नाम पर कई लोगों से लाखों रुपये की ठगी की।

कुछ मामलों में उसने यह भी दावा किया कि वह संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधित्व करता है, जबकि यह एक सिरे से झूठ था।

एक शख्स ने बताया, “हमें लगा वह कोई बड़ा अफ़सर है। उसने खुद को वेस्टआर्कटिका का डिप्लोमैटिक एंबेसडर बताया। उसके पास विदेशी गाड़ियां थीं, सिले हुए सूट और फोटो एलबम में राष्ट्रपति जैसे दिखने वाले लोग थे। हमने बिना जांच किए 3 लाख रुपये दे दिए विदेश भेजने के लिए।”

कूटनीतिक सुरक्षा की अनदेखी और कानूनी चिंताएं

हर्षवर्धन जैसे लोग न केवल आम लोगों को ठगते हैं, बल्कि उनकी गतिविधियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा बन सकती हैं।

डिप्लोमैटिक प्लेट्स के नाम पर वे बिना रोक-टोक के चल सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति गलत मंशा से इसका इस्तेमाल करता है — जैसे हथियारों की तस्करी, हवाला लेन-देन, या फर्जी पहचान बनाना — तो यह सीधा-सीधा देश की सुरक्षा व्यवस्था में सेंध है।

पुलिस और एजेंसियों की जांच

एसटीएफ़ और साइबर सेल अब निम्न सवालों की तह तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं:

  • क्या हर्षवर्धन के विदेशी संगठनों से कोई संपर्क हैं?
  • क्या वह अकेले काम कर रहा था या उसके पीछे कोई नेटवर्क है?
  • कितने लोगों को उसने ठगा?
  • हवाला और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े कितने लेन-देन हुए?

एसटीएफ़ एसएसपी सुशील घुले का कहना है कि मामले की जांच बहुस्तरीय स्तर पर की जा रही है और अभी बहुत से राज़ सामने आना बाकी हैं।

कानून का शिकंजा

हर्षवर्धन पर अब जिन धाराओं में कार्रवाई की जा रही है, वे बेहद गंभीर हैं:

  • IPC 420 – धोखाधड़ी
  • 468/471 – फर्जी दस्तावेज़ बनाना और इस्तेमाल
  • 120B – आपराधिक साजिश
  • Information Technology Act की धाराएं
  • Emigration Act, Passport Act के तहत मामला
  • संभावित UAPA या FEMA के तहत जांच

यह मामला न केवल साइबर क्राइम है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पहचान और कानून व्यवस्था के साथ धोखाधड़ी का भी संगीन उदाहरण है।

समाज के लिए सबक

यह घटना हमें तीन अहम बातें सिखाती है:

  1. राजनयिक पद, सम्मान या नागरिकता जैसे प्रस्तावों की जांच करें।
  2. ऑनलाइन दिख रही किसी भी अंतरराष्ट्रीय संस्था को आंख मूंदकर मानें।
  3. किसी के पास विदेशी गाड़ी या कार्ड दिखने मात्र से उसका विश्वास करें।

एक फर्ज़ी राजदूत, एक असली चेतावनी

हर्षवर्धन जैन का यह मामला एक साइबर क्राइम, धोखाधड़ी और वैश्विक प्रतीकात्मकता के ज़रिए गढ़े गए फरेब की मिसाल है।

यह बताता है कि इंटरनेट पर कल्पना और वास्तविकता के बीच की रेखा कितनी धुंधली हो सकती है — और जब कोई अपराधी उस धुंधलके का फायदा उठाता है, तो उसका शिकार सिर्फ एक व्यक्ति नहीं होता, बल्कि पूरा समाज होता है।

अब जबकि पुलिस इस गुत्थी को सुलझाने में जुटी है, यह ज़रूरी हो गया है कि समाज, मीडिया, और सुरक्षा एजेंसियां ऐसी प्रवृत्तियों के प्रति जागरूक रहें। क्योंकि अगली बार शायद कोई और हर्षवर्धन ‘राजदूत’ बनकर आपके दरवाज़े पर दस्तक दे।

 

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