नागर घाट महादेव मंदिर विवाद : अतिक्रमण, मूर्ति खंडन और पूजा-अर्चना पर रोक से नाराजगी

 

उदयपुर। वार्ड 12 – नागर घाट स्थित प्राचीन महादेव मंदिर को लेकर क्षेत्र में धार्मिक तनाव और जनाक्रोश गहराता जा रहा है। स्थानीय निवासियों का आरोप है कि होटल प्रबंधन ने मंदिर को खंडित कर पूजा-पाठ और दर्शन पर रोक लगा दी है, जिससे न केवल धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं बल्कि यह मामला सार्वजनिक भूमि और ऐतिहासिक धरोहर के अतिक्रमण से भी जुड़ा है।

चांदपोल बाहर, वार्ड नं. 12 के नागर घाट पर स्थित यह महादेव मंदिर वर्षों से क्षेत्रवासियों की आस्था का केंद्र रहा है। मंदिर से सटा नागर घाट स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रयोग में आता है, जबकि पास स्थित प्राचीन बावड़ी का ऐतिहासिक महत्व भी उल्लेखनीय है। बताया जाता है कि अकाल के समय इस बावड़ी से सरकारी विभाग द्वारा जलापूर्ति की जाती रही थी।

स्थानीय लोगों के अनुसार, यह मंदिर पहले सार्वजनिक रास्ते पर स्थित था। पुराने पट्टे के अनुसार सार्वजनिक मार्ग पर स्थित इस मंदिर के पास की भूमि को Cytex Hotels Pvt Ltd (एक अमेरिकी संचालित कंपनी) ने कथित रूप से अवैध रूप से उत्तर दिशा की ओर बढ़ा लिया। परिणामस्वरूप मंदिर निजी भूमि में आ गया और अतिक्रमण की स्थिति बन गई।

9 अप्रैल 2025 को Cytex Hotels ने यह संपत्ति Schloss Udaipur Private Limited (लीला होटल) को बेच दी। किंतु, स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस जमीन के स्वामित्व को लेकर कानूनी स्थिति स्पष्ट नहीं है और इसकी अलग जांच होनी चाहिए।

मूर्ति खंडन और पूजा में बाधा

आरोप है कि 8 जून 2025 को लीला होटल प्रबंधन ने महादेव मंदिर को खंडित कर शिव परिवार की प्राचीन मूर्तियां हटा दीं और स्वयंभू शिवलिंग पर मलबा डालकर मंदिर को जमींदोज कर दिया। इस घटना से क्षेत्रवासियों में गहरी नाराज़गी फैली।
स्थानीय लोगों ने उसी दिन मलबा हटाकर विधिविधान से पुनः पूजा-अर्चना शुरू की, जो 4 जुलाई 2025 की सुबह तक जारी रही।

तारबंदी और टीनशेड से रोका गया प्रवेश

लेकिन, 4 जुलाई 2025 को दिन में होटल प्रबंधन ने मंदिर की बाउंड्रीवाल पर फेंसिंग और टीनशेड लगा दिया, जिससे श्रद्धालुओं का प्रवेश और पूजा-अर्चना पूरी तरह बंद हो गई। इस कार्रवाई से स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश फैल गया है और इसे धार्मिक अधिकारों का हनन बताया जा रहा है।

स्थानीय मांग और अपील

क्षेत्रवासी मांग कर रहे हैं कि— मंदिर मार्ग की बाउंड्रीवाल से तारबंदी और टीनशेड हटाया जाए। मंदिर में निर्बाध पूजा-पाठ और दर्शन की अनुमति दी जाए। स्वामित्व विवाद और अतिक्रमण के मामले की जांच कराई जाए। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मामला सिर्फ धार्मिक भावनाओं का नहीं बल्कि ऐतिहासिक धरोहर और सार्वजनिक अधिकारों के संरक्षण का भी है।

यह मुद्दा अब प्रशासन, नगर निगम और पुरातत्व विभाग की जिम्मेदारी बन गया है कि वे इस विवाद को सुलझाएं और मंदिर की मौजूदा स्थिति को लेकर पारदर्शी कार्रवाई करें। अगर जल्द समाधान नहीं हुआ, तो यह विवाद कानूनी और राजनीतिक स्तर पर और बड़ा रूप ले सकता है।

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