
उदयपुर। बीजेपी में इन दिनों दो ही बातें चर्चा में हैं—या तो किसी नेता का जन्मदिन मन रहा है, या फिर जमीन के कारोबार से जुड़ी विवादित गतिविधियों की फुसफुसाहट तेज़ है। पार्टी का ग्राउंड वर्कर पूछ रहा है—आखिर सच्चाई क्या है? क्योंकि उदयपुर के सवीना में सरकारी जमीन पर कब्जे, और उन पर हुई बड़ी कार्रवाई ने पार्टी के अंदरूनी हालात की असल तस्वीर दिखा दी है।
एक तरफ सोशल मीडिया पर बीजेपी नेताओं के भव्य जन्मदिन समारोह की तस्वीरें तैर रही हैं, तो दूसरी तरफ कार्यकर्ताओं में सवाल यह कि— “जब जमीन पर कब्जे हो रहे थे तब कौन लोग सक्रिय थे? और जब यूडीए ने बुलडोजर चलाए, तब पार्टी क्यों चुप है?”
सरकारी जमीन पर बड़े पैमाने पर कब्जे, यूडीए की बड़ी कार्रवाई
उदयपुर विकास प्राधिकरण (यूडीए) ने शुक्रवार को सविना खेड़ा क्षेत्र में सरकारी जमीन पर हुए बड़े पैमाने के अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाकर कार्रवाई की।
कार्रवाई सुबह शुरू हुई और दोपहर तक चलती रही। जगह-जगह बुलडोजर चलते रहे और लगभग पूरा इलाका मिट्टी के ढेरों में तब्दील हो गया।
सवीना–उदयपुर-अहमदाबाद हाईवे के आसपास की यह जमीन लंबे समय से विवादों में थी, क्योंकि यहां सरकारी भूमि पर पक्के निर्माण खड़े कर दिए गए थे।
यूडीए के आयुक्त राहुल जैन के अनुसार कुल 52 निर्माण ध्वस्त किए गए — कोठड़ियां, कमरे, निर्माणाधीन मकान, लगभग 50 से अधिक बाउंड्रीवाल हटाई गई, लगभग दो लाख वर्गफीट सरकारी जमीन कब्जे से मुक्त करवाई गई, इस जमीन की वर्तमान बाजार कीमत लगभग 110 करोड़ रुपये आंकी जा रही है।
सचिव हेमेंद्र नागर ने भी साफ कहा कि—“कोई भी व्यक्ति वहां निवासरत नहीं था, निर्माण केवल कब्जा करने की नीयत से किए गए थे।”
सबसे बड़ा सवाल : आखिर इतनी बड़ी जमीन किसके इशारे पर बंटी…?
कार्रवाई के दौरान लोगों ने बताया कि सरकारी जमीन को अज्ञात लोग ‘अपनी’ बताकर सस्ते दामों पर बेच रहे थे। अब यहां सवाल उठता है— क्या इतनी बड़ी जमीन बिना राजनीतिक शरण, संरक्षण या अंदरूनी नेटवर्क के बेची जा सकती है?
कांग्रेस तो इस मुद्दे पर बोल ही रही है, लेकिन बीजेपी के अपने कार्यकर्ताओं के मन में भी सवाल है— ये ‘अज्ञात लोग’ कौन हैं? क्या पार्टी उन्हें पहचानने की कोशिश करेगी?
या फिर मामला यूं ही दबा दिया जाएगा?
कार्रवाई के बाद पीड़ितों का हंगामा — बीजेपी विधायक के घर पर प्रदर्शन
शाम होते-होते माहौल और गर्म हो गया। अतिक्रमण हटाने से प्रभावित लोग उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन के सेक्टर-13 स्थित घर के बाहर जमा हो गए।
उनका कहना है कि— वे 20–25 साल से वहीं रह रहे थे, उनके पास वोटर आईडी, आधार कार्ड, बिजली-पानी के बिल उसी पते के हैं, बिना नोटिस, बिना सूचना उनके मकान गिरा दिए गए।
महिलाएं भी भारी संख्या में पहुंचीं और विरोध दर्ज कराया। विधायक मौके पर नहीं थे, बाद में पुलिस पहुंची और भीड़ को समझाने की कोशिश की।
अब कार्यकर्ता पूछ रहे हैं — पार्टी की लाइन क्या है?
यह पूरा घटनाक्रम कई बड़े सवाल छोड़ जाता है:
क्या बीजेपी नेता जमीन के कारोबार में शामिल हैं? स्थानीय स्तर पर ऐसी आवाजें उठ रही हैं कि कुछ नेता इस तरह के सौदों में भूमिका निभाते रहे हैं। अगर यह सत्य नहीं है, तो पार्टी सामने आकर सफाई क्यों नहीं दे रही?
पार्टी मौन क्यों है? : इतने बड़े स्तर पर सरकारी जमीन पर कब्जा,
इतनी बड़ी कार्रवाई, लोग बेघर, विधायक के घर पर हंगामा— लेकिन बीजेपी की आधिकारिक प्रतिक्रिया ZERO। यही मौन कार्यकर्ताओं को संशय में डाल रहा है। क्या पार्टी संदेश देना चाहती है कि कब्जे होते रहें?
या फिर पार्टी बताएगी कि ऐसे लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा? जब सत्ता और संगठन दोनों चुप हों, तो जमीनी कार्यकर्ता असमंजस में ही रहते हैं— कि किस लाइन पर चलें? कार्रवाई सही थी या गलत — यह सवाल बाद में, पर सच कौन छिपा रहा है?
यूडीए की कार्रवाई कानून के दायरे में थी या नहीं— यह तो जांच का विषय हो सकता है। लेकिन कार्यकर्ताओं की नजर में असली मुद्दा यह है कि—क्या कब्जों में बीजेपी से जुड़े लोग शामिल थे? क्या इसलिए पार्टी चुप है? क्या जमीन का कारोबार नेताओं की नई ‘लाइफलाइन’ बन चुका है?
अगर पार्टी इस पर स्पष्ट रुख नहीं लेती,तो आने वाले दिनों में यह मुद्दा अंदरूनी राजनीति का विस्फोटक बन सकता है।
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