भाजपा में ‘बर्थडे पॉलिटिक्स’ का नया अध्याय — शहर विधायक ताराचंद जैन के जन्मदिन पर सीएम ने भी उदयपुर आकर मुंह मीठा कराया

फोटो : कमल कुमावत
कार्यकर्ताओं का जोश कटारिया के जन्मदिन से भी ज्यादा दिखा
उदयपुर। भाजपा में नेताओं के जन्मदिन अब सिर्फ शुभकामनाओं का अवसर नहीं रह गए हैं, बल्कि राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन का जरिया बनते जा रहे हैं। हाल ही में राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया के जन्मदिन पर जिस तरह कार्यकर्ताओं ने जोरदार आयोजन किए थे, उसी उत्साह को अब शहर विधायक ताराचंद जैन के जन्मदिन पर और भी बढ़ते हुए देखा गया।

शुक्रवार को पूरे दिन शहर में विधायक जैन के जन्मदिन को लेकर माहौल उत्सव जैसा रहा। कार्यकर्ता सुबह से ही तैयारियों में जुटे थे। एमबी चिकित्सालय में मानव सेवा समिति द्वारा फल वितरण से लेकर शाम को महाकालेश्वर मंदिर में अभिषेक तक — हर आयोजन में भीड़ और जोश स्पष्ट झलकता रहा।

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भी उदयपुर प्रवास के दौरान विधायक जैन को उपरणा ओढ़ाकर सम्मानित किया। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल और बढ़ गया, और पार्टी में यह संदेश गया कि शहर विधायक का राजनीतिक कद लगातार मजबूत हो रहा है।
राजनीतिक हलकों में चर्चा यह रही कि जैन के जन्मदिन पर दिखा उत्साह, हाल ही में राज्यपाल कटारिया के जन्मदिन से भी ज्यादा था। इसे भाजपा के अंदर नए नेताओं की सक्रियता और स्थानीय नेतृत्व में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।


सेवा से संदेश, शक्ति से संकेत
विधायक जैन ने अपने जन्मदिन को सामाजिक सेवा से जोड़ा — रक्तदान शिविर, फल वितरण, और धार्मिक अनुष्ठान के जरिए उन्होंने अपने समर्थकों को एक सकारात्मक और संयमित राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की। वहीं कार्यकर्ताओं की मौजूदगी और सजावटों से यह साफ था कि यह सिर्फ जन्मदिन नहीं, बल्कि राजनीतिक उत्सव भी था।
भाजपा में नया ट्रेंड
पिछले कुछ महीनों में भाजपा नेताओं के जन्मदिन आयोजनों का यह सिलसिला — चाहे वह कटारिया हों, जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह या अब ताराचंद जैन — यह दर्शाता है कि पार्टी कार्यकर्ता अब नेताओं के प्रति वफादारी और नज़दीकी दिखाने के नए प्रतीक के रूप में बर्थडे समारोहों का उपयोग कर रहे हैं।


भविष्य के संकेत
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह ट्रेंड आने वाले नगर निगम और विधानसभा चुनावों के लिए तैयार होती टीमों और गुटों की झलक भी है।
उदयपुर भाजपा में यह ऊर्जा जहाँ एक तरफ संगठन के जीवंत होने का संकेत है, वहीं दूसरी तरफ यह सवाल भी उठाती है कि क्या पार्टी के भीतर शक्ति प्रदर्शन की यह संस्कृति अब परंपरा बनती जा रही है?

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