
उदयपुर। पत्रकारिता बिना तस्वीर के अधूरी है। जैसे चीनी बगैर खीर या नमक बिना तरकारी बेस्वाद लगते हैं, वैसे ही बिना फोटो खबरों की चमक फीकी पड़ जाती है। फोटो केवल दृश्य नहीं, बल्कि समय की गवाही होते हैं। इसी कारण फोटोग्राफर्स और फोटो जर्नलिस्ट को पत्रकारिता का अभिन्न अंग माना गया है।
कार्टून और फोटो जर्नलिज़्म का रिश्ता
पत्रकारिता में कार्टूनिस्ट का भी अहम स्थान रहा है। आर.के. लक्ष्मण जैसे महान कार्टूनिस्ट ने आम आदमी की पीड़ा और राजनीति के व्यंग्य को रेखाओं में जीवंत कर दिया। मगर अफसोस, मेवाड़ की पत्रकारिता इस क्षेत्र में पिछड़ी रही। यहां कोई ऐसा कार्टूनिस्ट नहीं हुआ जिसने उल्लेखनीय छाप छोड़ी हो।
इसके विपरीत, फोटोग्राफी में मेवाड़ का योगदान शानदार रहा है। यहां के फोटोग्राफर्स ने अपने कैमरे से इतिहास और समाज को उसी जीवंतता से दर्ज किया, जैसे कोई लेखक अपनी कलम से करता है।
ब्लैक एंड वाइट दौर की फोटोग्राफी
चार दशक पहले जब अखबार ब्लैक एंड वाइट छपते थे, तब भी फोटोग्राफी का महत्व उतना ही था। बड़े अखबारों में स्थायी फोटोग्राफर नहीं होते थे, इसलिए स्थानीय प्रोफेशनल्स ही अखबारों को तस्वीरें उपलब्ध कराते थे।
रामा स्टूडियो का नाम उस दौर में सबसे आगे आता है। राधेश्याम जी, जिन्हें प्यार से डैडी कहा जाता था, और उनके अनुज ओम जी को कभी किसी से बताना नहीं पड़ता था कि किस मौके पर कौन-सा एंगल चुनना है। उनकी फोटोग्राफी पत्रकारिता का प्राण बनी।
कैमरे से बोलती तस्वीरें
मेवाड़ के विक्रमादित्य सिंह वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के पर्याय माने जाते हैं। उनके कैमरे ने कठिन और दुर्लभ परिस्थितियों को इस तरह कैद किया कि तस्वीरें खुद बोल उठती थीं।
इसी तरह दिवंगत जयकांत शर्मा, कैलाश टांक, राजेंद्र हिलेरिया, प्रमोद सोनी, अख्तर खान, ऋषभ जैन, और ताराचंद गवारिया की फोटोग्राफी पर पूरा क्षेत्र गर्व करता है। उनकी तस्वीरें केवल घटनाओं का रिकॉर्ड नहीं, बल्कि समाज का आईना हैं।
फोटोग्राफर्स का काम सिर्फ कैमरे का बटन दबाना नहीं, बल्कि समाज की नब्ज़ को पकड़कर उसे तस्वीर में अमर करना है। मेवाड़ इस मायने में समृद्ध है कि यहां ऐसे फोटोग्राफर्स हुए, जिनकी तस्वीरें वक्त की गवाही देती हैं और पत्रकारिता को अर्थपूर्ण बनाती हैं।
विश्व फोटोग्राफर्स डे पर यह कहना गलत न होगा कि—
“जहां शब्दों की सीमा होती है, वहां तस्वीरें बोल उठती हैं।”
इतिहास
• फोटोग्राफी की पहली स्थायी तस्वीर 1826 में जोसेफ नाइसफोर नाइप्स ने बनाई।
• इसके बाद लुई डैगेर ने 1837 में डैगेरोटाइप (Daguerreotype) प्रक्रिया विकसित की।
• इसमें चाँदी-चढ़ी तांबे की प्लेट और पारे की भाप से स्थायी छवि प्राप्त होती थी।
• यह तकनीक फोटोग्राफी की पहली व्यावसायिक प्रक्रिया मानी गई।
• 19 अगस्त 1839 को फ्रांस सरकार ने इसे जनता के लिए नि:शुल्क उपलब्ध कराया।
• इसी घटना की स्मृति में प्रतिवर्ष 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है।
About Author
You may also like
-
स्मार्ट सिटी में सिरफिरे का स्मार्ट हमला ! सूरजपोल की दीवार पर बेखौफ रगड़े, सुरक्षा के इंतज़ाम फेल
-
हिन्दुस्तान जिंक में धूमधाम से मनाया गया स्वतंत्रता दिवस
-
उदयपुर में झमाझम : मदार बड़ा तालाब की चादर तेज, फतहसागर में आवक शुरू
-
नारायण सेवा संस्थान के सभी परिसरों में फहराया गया तिरंगा
-
उदयपुर में रेलवे स्टेशन एलिवेटेड रोड निर्माण से बढ़ी परेशानी, इंसानों और गाड़ियों की सेहत पर असर…कलेक्टर ने कहा-जल्दी ही व्यवस्था सुधरेगी