उदयपुर। क्या राजस्थान के विद्यार्थी अब किताबों में पढ़ेंगे कि देश में एक समय ऐसा भी था, जब बोलने पर पाबंदी थी, विरोध करने पर जेल थी और एक मजाक पर गिरफ्तारी हो जाती थी? उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन ने विधानसभा में मांग उठाई है कि आपातकाल के उस भयावह दौर को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी को लोकतंत्र पर पड़े इस काले धब्बे की सच्चाई पता चल सके।
विधायक का तर्क – विद्यार्थियों को जानना चाहिए इतिहास की सच्चाई
शहर विधायक जैन ने सदन में कहा कि आपातकाल के समय देश में मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे। पुलिस सरकार के विरोधियों को बिना किसी कारण गिरफ्तार कर रही थी। उन्होंने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि उस दौर में उन्हें भी जेल भेजा गया था। उन्होंने एक चौंकाने वाला किस्सा साझा करते हुए बताया कि एक बाल स्वयंसेवक भारत मथुरिया को पुलिस ने इतनी बेरहमी से पीटा कि उसकी कान की झिल्ली फट गई और वह हमेशा के लिए सुनने की क्षमता खो बैठा।
लोकतंत्र सेनानियों को मिलना चाहिए सम्मान
विधायक जैन ने विधानसभा में जोर देकर कहा कि पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार ने लोकतंत्र सेनानियों के लिए सम्मान निधि की घोषणा की थी, लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे बंद कर दिया। उन्होंने मांग की कि इसे फिर से बहाल किया जाए। इसके अलावा, लोकतंत्र सेनानियों को टोल टैक्स में छूट दी जाए और उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों की तरह 15 अगस्त और 26 जनवरी के सरकारी कार्यक्रमों में विशेष रूप से आमंत्रित किया जाए।
एक मजाक… और सीधे जेल!
विधायक जैन ने सदन में एक दिलचस्प लेकिन चौंकाने वाला वाकया भी सुनाया। उन्होंने बताया कि आपातकाल के दौरान एक रोडवेज बस के सामने एक भैंस बैठ गई, जो टस से मस नहीं हो रही थी। बस चालक ने मजाक में कह दिया—”इंदिरा गांधी की तरह ठूंठ होकर क्यों बैठी है?” बस, इतना कहना था कि पुलिस आई और उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया!
विधायक जैन ने कहा कि यह सिर्फ एक उदाहरण है कि उस दौर में किस तरह लोगों के अभिव्यक्ति की आजादी को कुचला गया। उन्होंने दोहराया कि विद्यार्थियों को इस अंधेरे समय की सच्चाई से अवगत कराना बेहद जरूरी है, ताकि इतिहास खुद को न दोहरा सके।
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