राजस्थान में इमरजेंसी : पेंशन और पॉलिटिक्स का खेल?

जयपुर। राजस्थान विधानसभा में ‘लोकतंत्र सेनानी सम्मान विधेयक’ पारित होने के बाद एक बार फिर इमरजेंसी की राजनीति गरमा गई है। इस विधेयक के तहत आपातकाल के दौरान जेल गए लोकतंत्र सेनानियों को मिलने वाली पेंशन और अन्य सुविधाओं को कानूनी सुरक्षा दी गई है। अब कोई भी सरकार इसे सिर्फ एक प्रशासनिक आदेश से खत्म नहीं कर सकेगी। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या यह विधेयक लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए लाया गया है, या फिर इसके पीछे सियासी समीकरण साधने का मकसद है?

इमरजेंसी और पेंशन की राजनीति

1975 की इमरजेंसी भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे विवादास्पद दौर रही है। उस दौरान हजारों नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया था। जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो इन ‘लोकतंत्र सेनानियों’ को पेंशन और सुविधाएं देने की शुरुआत हुई। बाद में, बीजेपी सरकारों ने इसे जारी रखा, जबकि कांग्रेस ने इसे लेकर कभी स्पष्ट रुख नहीं अपनाया।

राजस्थान में भी पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान लोकतंत्र सेनानियों को दी जाने वाली पेंशन पर सवाल उठे थे। अब जब बीजेपी सरकार सत्ता में आई, तो उसने इसे कानूनी जामा पहनाकर स्थायी बना दिया। यानी अब कोई भी सरकार इस फैसले को बदल नहीं सकेगी।

क्या पेंशन सिर्फ सुविधा है, या राजनीतिक इनाम?

लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन देना कितना तर्कसंगत है? यह सवाल लंबे समय से उठता रहा है। कांग्रेस का एक धड़ा इसे “पुराने राजनीतिक संघर्ष का राजनीतिक दोहन” मानता है, तो बीजेपी इसे “तानाशाही के खिलाफ लड़ने वालों का सम्मान” बताती है।

अगर सरकारी सुविधाओं की बात करें, तो सवाल उठता है कि क्या सिर्फ आपातकाल के दौरान जेल जाने वाले ही लोकतंत्र के रक्षक हैं? इमरजेंसी के विरोध में लड़ने वाले कई नेता बाद में सत्ता का हिस्सा बन गए, मंत्री बने, सांसद-विधायक बने। ऐसे में पेंशन का औचित्य भी बहस का विषय बना हुआ है।

चुनावी रणनीति या सच्ची मान्यता?

बीजेपी ने हमेशा इमरजेंसी को एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाया है और इसे कांग्रेस के तानाशाही रवैये का प्रतीक बताया है। इस विधेयक के जरिए बीजेपी ने अपने कोर वोट बैंक को साधने का प्रयास किया है। लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान कर वह इमरजेंसी को लेकर अपनी राजनीतिक विरासत को और मजबूत करने की कोशिश कर रही है।

कांग्रेस की चुप्पी और भविष्य की राजनीति

इस विधेयक पर कांग्रेस ने अभी तक कोई आक्रामक रुख नहीं अपनाया है, लेकिन क्या वह इसे पलटने की हिम्मत दिखाएगी? अगर कांग्रेस सत्ता में आती है, तो क्या वह इस कानून को चुनौती देगी? या फिर वह भी इसे जारी रखेगी ताकि राजनीतिक नुकसान से बचा जा सके?

इमरजेंसी की पेंशन सिर्फ आर्थिक मदद का विषय नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक प्रतीक भी है। यह विधेयक राजस्थान की राजनीति में एक नया मोड़ लेकर आया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा सिर्फ कानून बनकर रहेगा या फिर आने वाले चुनावों में इसे एक बड़े सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा।

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