
उदयपुर। झीलों की रानी, झीलों की नगरी… और जब हरियाली अमावस हो तो जैसे उदयपुर खुद कोई रंग-बिरंगा सपना बन जाता है। गुरुवार की सुबह जैसे ही धूप ने हल्की मुस्कान दी, वैसे ही सहेलियों की बाड़ी से लेकर फतहसागर की लहरों तक हरियाली अमावस का मेला सज-धजकर तैयार हो गया। दूर-दराज़ से आए गाँवों के लोग हों या शहर की गलियों से निकली सजी-धजी बालिकाएं — सब इस मेले की छांव में समा गए।
सहेली रोड से लेकर फील्ड क्लब के गेट तक की सड़कें इस बार बाजार बन गईं। करीब 650 दुकानों ने जैसे इस सड़क को सजो लिया — कोई चूड़ी बेच रहा, कोई मिट्टी के खिलौने, कहीं से गुब्बारों की आवाज़ आ रही तो कहीं बच्चों की खिलखिलाहट। रबड़ी के ऊपर मालपुए की परत और पकौड़ियों से निकलती भाप ने तो जैसे मौसम को और स्वाद भरा बना दिया।
पैदल चले मेले के मुसाफिर
इस बार ट्रैफिक को लेकर पुलिस और प्रशासन ने बड़ी सुलझी योजना बनाई। 7 मुख्य रास्तों और करीब 15 छोटे रस्तों से एंट्री बंद कर दी गई — ताकि मेले की भीड़ में कोई वाहन खलल ना डाले। नतीजा ये कि लोग करीब 1.5 किलोमीटर पैदल चलकर मेले तक पहुंचे, लेकिन शिकायत किसी की ज़बान पर नहीं — क्योंकि हर कदम पर था संगीत, रंग और हँसी का कारवां।
लड़कियों के ग्रुप और ठेठ उत्सव का रंग
फतहसागर की छांव में, सहेली रोड की मुस्कराहटों में, एक चीज़ सबसे ख़ास रही — लड़कियों के ग्रुप, जो एक-से कपड़े पहनकर, सिर पर फूलों की चूड़ियाँ सजाकर और हाथ में मेंहदी रचाकर मेले में आईं। हर स्टॉल पर ठहरती थीं, तस्वीरें खिंचवाती थीं और स्वाद चखती थीं।
चेतक सर्कल से लेकर फतहपुरा चौकी तक — सिर्फ पैदल ही चलो जी!
चेतक सर्कल पर जल संसाधन विभाग के पास और फतहपुरा पुलिस चौकी के पास वाहनों की आवाजाही पर पूरी तरह रोक थी। लेकिन जब बात मेले की हो तो भला कौन वाहन में बैठकर चलना चाहता है! लोग पैदल चले, और हर मोड़ पर कोई नया रंग, कोई नया पकवान, कोई नई याद बनती चली गई।
और जब बिछड़े बच्चे अपनों से मिले…
भीड़ में कभी-कभी मुस्कराहटें खो जाती हैं। इस मेले में 45 बच्चे अपने परिजनों से बिछड़ गए थे, लेकिन नगर निगम, पुलिस और होमगार्ड्स की टीमों ने इस पूरे आयोजन को संवेदनशीलता और सतर्कता से संभाला। एक अलग टीम गठित की गई जिसने सभी बिछड़े बच्चों को ढूंढकर फिर से उनकी माँ की गोद, पिता की ऊँगली और दादी की मुस्कान से मिला दिया।
सादी वर्दी वाले रक्षक और मेले के भीतर की सुरक्षा
सिर्फ वर्दी में नहीं, इस बार सादी वेशभूषा में जवानों को भी मेले में तैनात किया गया। ताकि कोई शरारती तत्व उत्सव की इस शुद्धता में खलल न डाले। और हुआ भी ऐसा ही — मेले की सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह चाक-चौबंद रही।










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