
उदयपुर। वे देख नहीं सकते, लेकिन उन्होंने पूरी दुनिया को भक्ति का दर्शन करा दिया। वे रंग नहीं पहचानते, लेकिन उनके सुरों ने मन के भावों को रंगीन बना दिया।
समिधा दृष्टि-दिव्यांग मिशन, उदयपुर द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय तीन दिवसीय शतरंज प्रतियोगिता के दूसरे दिन जब “महाकवि सूरदास भजन संध्या” में दृष्टिबाधित बालकों ने अपने सुर और श्रद्धा से मंच को सजाया, तो सारा माहौल भावविभोर हो गया।
उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं, आत्मविश्वास से भरे स्वर… और हृदय से निकली श्रद्धा की तरंगें। जब भावेश देसाई के नेतृत्व में दृष्टिबाधित बच्चों ने सूरदास की पंक्तियों को जीवंत किया, तो मंच पर नहीं, श्रोताओं के भीतर दीप जल उठे। यह संध्या सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं थी — यह आत्मा की आंखों से देखी गई भक्ति की झलक थी।
शतरंज की बिसात पर सपनों का संघर्ष
इससे पहले दिनभर चली शतरंज प्रतियोगिता में भी दृष्टिबाधित बालकों ने साबित किया कि उनकी निगाहें भले ही किताबों की पंक्तियों को न पढ़ पाएं, लेकिन उनकी दृष्टि सपनों को पढ़ने में सक्षम है।
अजमेर के जुगल किशोर और धनपाल मीणा ने सेमीफाइनल मुकाबलों में जीत हासिल कर फाइनल के लिए स्थान पक्का किया।
शहर के बच्चों और आमजनों ने जब इन खिलाड़ियों को ब्रेल बोर्ड पर चाल चलते देखा, तो आश्चर्य, गर्व और श्रद्धा तीनों भाव उनके चेहरों पर साफ झलकने लगे। कहीं मौन, कहीं तालियां और कहीं आंखों से बहते आंसू — यह दृश्य किसी साधारण प्रतियोगिता का नहीं था, यह संघर्ष और संकल्प का उत्सव था।
समापन समारोह में आएंगे जनप्रतिनिधि, होंगे साक्षी एक प्रेरक पल के
डॉ. चंद्रगुप्त सिंह चौहान ने बताया कि शुक्रवार को होने वाले समापन समारोह में देश और प्रदेश के कई प्रतिष्ठित जनप्रतिनिधि दृष्टिबाधित बालकों के हौसले को नमन करने आएंगे।
उनमें शामिल होंगे:
- चित्तौड़गढ़ सांसद सी. पी. जोशी
- भीलवाड़ा सांसद दामोदर अग्रवाल
- राज्यसभा सांसद चुन्नीलाल गरासिया
- मरुधरा ग्रामीण बैंक के चेयरमैन मुकेश भारती
- कलेक्टर नमित मेहता
- एसपी योगेश गोयल
- उप जिला प्रमुख पुष्कर तेली
- भाजपा जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड़
इस आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि दृष्टिबाधा कोई अभिशाप नहीं, बल्कि ईश्वर की विशेष योजना है — जहां आंखें नहीं देखतीं, वहां आत्मा गहराई से महसूस करती है।
यह सिर्फ आयोजन नहीं, एक संदेश था
उदयपुर ने इस आयोजन के माध्यम से देश को एक बार फिर याद दिलाया कि असली दृष्टि आंखों से नहीं, हृदय से देखी जाती है। इन बच्चों ने शतरंज की बिसात पर चालें चलीं, सुरों में श्रद्धा घोली, और समाज को एक नई दिशा दी।
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