फोटो : कमल कुमावत

उदयपुर। उदयपुर की राजनीति इन दिनों भाजपा कार्यालय में केंद्रित हो चुकी है। जिलाध्यक्ष पद को लेकर उठापटक चरम पर है। मंगलवार को पार्टी कार्यालय में नामांकन प्रक्रिया के दौरान ऐसा माहौल था, मानो सत्ता के गलियारे में हर दावेदार अपने लिए रास्ता तलाश रहा हो। समर्थक और प्रस्तावक जुटाने की होड़ ने राजनीतिक दृश्य को और दिलचस्प बना दिया।
जिलाध्यक्ष पद की दौड़ में महिला मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष अलका मूंदड़ा का नाम प्रमुख दावेदारों में शामिल था। लेकिन उन्होंने खुद नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए उपस्थित नहीं होकर राजनीतिक समीकरणों को नया मोड़ दे दिया। पार्टी सूत्रों के अनुसार, उनके नामांकन के अस्वीकार होने की संभावना है, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि उनके नाम पर “ऊपर से मुहर” लग सकती है। यह स्थिति मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के समय लिए गए फैसलों की याद दिला रही है, जब शीर्ष नेतृत्व के निर्णयों ने खेल बदल दिया था।

पंजाब के राज्यपाल और उदयपुर के दिग्गज नेता गुलाबचंद कटारिया की सहमति के बिना किसी नाम का चयन लगभग असंभव माना जा रहा है। पार्टी में कटारिया का प्रभाव इस कदर है कि यदि उनकी पसंद के खिलाफ कोई निर्णय लिया गया, तो पार्टी में फूट पड़ने की आशंका है। कटारिया समर्थक अतुल चंडालिया और डॉ. किरण जैन इस रेस में मजबूत माने जा रहे हैं।
वहीं, रामकृपा शर्मा को विधायक ताराचंद जैन का करीबी माना जा रहा है। हालांकि, उनके सामने लोक अभियोजक पद का सवाल है, जिसे छोड़ने की स्थिति में ही वे जिलाध्यक्ष बन सकते हैं।

जिलाध्यक्ष के लिए अन्य नामों में ब्राह्मण और राजपूत समाज से भी प्रमुख दावेदार हैं—खूबीलाल पालीवाल, गजपाल सिंह राठौड़, तख्त सिंह शक्तावत और करण सिंह शक्तावत। पार्टी में जातीय समीकरण भी बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है।
महिलाओं के लिए उम्र में छूट का प्रावधान भी चर्चा में है,। साठ साल वाले उम्र के बैरियर को कई जगह नजरअंदाज किया गया है। इससे यह साफ है कि नियमों से अधिक प्राथमिकता राजनीतिक रणनीति को दी जा रही है।
उदयपुर की राजनीति में भाजपा के आंतरिक संघर्ष का असर पार्टी की एकता पर पड़ सकता है। अगर शीर्ष नेतृत्व ने कटारिया की सहमति के बिना किसी और को चुना, तो बिखराव की स्थिति पैदा हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उदयपुर कांग्रेस में मोहनलाल सुखाड़िया के बाद जो वर्चस्व गायब हुआ, वही भाजपा में कटारिया के बिना हो सकता है।
जिलाध्यक्ष के नाम की घोषणा बुधवार को होने की संभावना है। यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी नेतृत्व गुटीय दबाव, जातीय समीकरण, और महिला नेतृत्व की संभावनाओं को कैसे साधता है। क्या यह भाजपा के लिए नई शुरुआत होगी, या अंदरूनी खींचतान पार्टी की संरचना को कमजोर करेगी? जवाब भविष्य के गर्भ में है।
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