
उदयपुर। उदयपुर में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के शहर जिलाध्यक्ष पद को लेकर चल रही खींचतान ने पार्टी के भीतर नई हलचल पैदा कर दी है। इस बार चर्चा के केंद्र में एक महिला नेता, अलका मूंदड़ा, का नाम तेजी से उभरकर सामने आया है। संगठन में महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने की रणनीति के तहत मूंदड़ा के नाम पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है, लेकिन इस निर्णय के संभावित प्रभावों ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है।
अलका मूंदड़ा, जो पूर्व में महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष रह चुकी हैं, अपने कार्यकाल के दौरान कई बड़े आयोजनों में सक्रिय भूमिका निभा चुकी हैं। मूंदड़ा के जिलाध्यक्ष बनने की संभावनाओं ने गुलाबचंद कटारिया, मौजूदा विधायक ताराचंद जैन और वर्तमान जिलाध्यक्ष रवींद्र श्रीमाली जैसे वरिष्ठ नेताओं की स्थिति को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। अगर मूंदड़ा को यह पद मिलता है, तो यह सत्ताधारी खेमे के भीतर खींचतान को और गहरा कर सकता है।
इससे पहले कई अन्य नाम भी चर्चा में थे, जिनमें रामकृपा शर्मा, अतुल चंडालिया, तख्तसिंह और सिद्धार्थ शर्मा जैसे नेता शामिल हैं। इनमें से कई दावेदार या तो मौजूदा विधायकों के करीबी माने जाते हैं या राज्यपाल और संगठन के प्रभावशाली नेताओं से जुड़े हुए हैं। हालांकि, इन सभी को फिलहाल दौड़ में पीछे माना जा रहा है।
गौरतलब है कि उदयपुर की राजनीति में गुलाबचंद कटारिया का दबदबा है, और उनका समर्थन किसी भी उम्मीदवार की राह आसान बना सकता है। लेकिन अलका मूंदड़ा के नाम पर बढ़ते समर्थन ने कटारिया खेमे की चिंता बढ़ा दी है। यदि मूंदड़ा जिलाध्यक्ष बनती हैं, तो यह कटारिया के प्रभाव को सीधी चुनौती के रूप में देखा जाएगा।
अलका मूंदड़ा का जिलाध्यक्ष बनना, पार्टी में महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम होगा, लेकिन इसके साथ ही संगठन में संभावित बिखराव का खतरा भी मंडरा रहा है। मूंदड़ा से पहले स्वर्गीय किरण माहेश्वरी जैसे लोकप्रिय नेताओं को भी कटारिया के प्रभाव के कारण उदयपुर में अपनी सियासी जमीन छोड़नी पड़ी थी। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी वरिष्ठ नेताओं की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाने का जोखिम उठाती है या संतुलन बनाने का प्रयास करती है।
जिलाध्यक्ष पद के लिए 28 जनवरी को होने वाली बैठक और 29 जनवरी को नाम के फाइनल होने का इंतजार अब हर किसी को है। यह फैसला न केवल उदयपुर बीजेपी के संगठनात्मक ढांचे को प्रभावित करेगा, बल्कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में पार्टी की रणनीति पर भी इसका असर पड़ सकता है।
अब देखना यह है कि बीजेपी नेतृत्व इस सियासी दांव को कैसे खेलता है—महिला सशक्तिकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाकर, या पार्टी के भीतर संतुलन कायम रखने के लिए कोई नया रास्ता निकालकर।
About Author
You may also like
-
जब आंखों ने नहीं, आत्मा ने गाया : सूरदास भजन संध्या में दृष्टिबाधित बालकों ने रच दिया अलौकिक संसार
-
उदयपुर में वही फिल्टर तकनीक, फिर भी नहीं मिल रहा ऑस्ट्रेलिया जैसा पानी?
-
भारत के युवाओं ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई है, हमारी युवा शक्ति गतिशीलता, नवाचार और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है : प्रधानमंत्री
-
उदयपुर में पर्यावरण दिवस पर संगोष्ठी : प्लास्टिक फ्री अभियान और सतत विकास पर जोर
-
भाजपा की राजघरानों से सियासी नज़दीकी : लक्ष्यराज सिंह से संगठन मंत्री चंद्रशेखर की मुलाक़ात के राजनीतिक मायने