घाट बचाओ – संस्कृति बचाओ : झीलों की स्वच्छता और आस्था के केंद्र खतरे में

उदयपुर। झीलों के किनारे स्थित घाट केवल जल स्रोतों का हिस्सा नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत हैं, जिन्हें अपसंस्कृति और अतिक्रमण से बचाना जरूरी है। रविवार को आयोजित झील संवाद में यह मुद्दा जोरदार तरीके से उठाया गया।

झील संरक्षण समिति के डॉ. अनिल मेहता ने कहा कि घाटों पर मौजूद मंदिर जल स्रोतों के प्रति श्रद्धा, पर्यावरण सम्मान और जल संरक्षण की जीवंत अभिव्यक्ति हैं। मंदिर और घाटों के समन्वय ने सदियों तक झीलों की स्वच्छता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन आज घाट संस्कृति को सुनियोजित तरीके से खत्म किया जा रहा है। उन्होंने हर घाट पर सांध्यकालीन आरती शुरू करने का आह्वान किया, ताकि ये पर्यावरण और आस्था के केंद्र बन सकें।

झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने चेताया कि होटल व्यवसायियों को दी जा रही खुली छूट से पिछोला झील का अस्तित्व संकट में है। उन्होंने आशंका जताई कि जल्द ही सभी घाट होटल-रेस्टोरेंट के कब्जे में आ सकते हैं और आमजन की पहुंच खत्म हो जाएगी।

गांधी मानव कल्याण सोसायटी के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि आज कई घाट गंदगी, नशाखोरी, अश्लीलता और शोरगुल से प्रभावित हैं, जो युवा पीढ़ी के लिए खतरनाक है। उन्होंने पिछोला को धार्मिक पर्यटन क्षेत्र घोषित करने की मांग की।

वरिष्ठ नागरिक और समाजसेवियों ने जोर देकर कहा कि पर्यटन विकास के नाम पर हो रहे अतिक्रमण को रोकने और घाटों के मूल स्वरूप को बहाल करने के लिए व्यापक जन आंदोलन की जरूरत है।

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