उदयपुर। उदयपुर की शांत वादियों में 19 अप्रैल की सुबह जब सूरज अपनी किरणें बिखेर रहा था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि एक फोटोग्राफर की लाश, अपने ही कैमरे की यादों से दूर, मिर्ची और हथौड़ी की दरिंदगी में लिपटी मिलेगी।
यह कोई आम कत्ल नहीं था, ये क्रूरता की इंतेहा थी।
एक कर्ज़, जो मौत की किस्तों में चुकाया गया
शंकर डांगी, उम्र 34, पेशे से फोटोग्राफर—कभी शादियों की रौनक, कभी बच्चों की मुस्कान और कभी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत तस्वीरें अपने कैमरे में कैद करता था। मगर उसकी खुद की ज़िंदगी एक ऐसी तस्वीर में बदल गई, जो खून और बारूद की फ्रेम में थी।
उसने मांगीलाल उर्फ़ जगदीश डांगी और मदनलाल, दोनों को 5-5 लाख रुपए उधार दिए थे। शर्तें सख्त थीं, ब्याज की दरें सूदखोर जैसी और वसूली का अंदाज़ दबंगों जैसा। जब किस्तें नहीं आईं, तो धमकियों की बौछार शुरू हुई। “पैसे दे दो वरना अंजाम बुरा होगा…” – यही शब्द शंकर के लहजे में डर पैदा करते थे।
मगर उस दिन डर नहीं, बदले का बीज अंकुरित हो चुका था।
साजिश का स्केच
18 अप्रैल की शाम, दो दोस्त बाइक पर निकले कैलाशपुरी। वहां कोई दर्शन नहीं, सिर्फ मौत की पटकथा लिखी गई।
पहले एकलिंग जी मंदिर में पहुंचे—शायद आखिरी बार भगवान को गवाह बनाने। फिर शहर की ओर बढ़े। एक हार्डवेयर की दुकान से खरीदी लोहे की भारी हथौड़ी और बाइंडिंग वायर। मिर्च पाउडर, नमकीन और शराब—सब एक कत्ल की किट में शामिल था।
यह सिर्फ एक हत्या नहीं, ये ‘मेंटली डिजाइन किया गया मर्डर’ था। प्लान ऐसा कि लाश भी चीखे, सबूत भी घबराएं।
आखिरी पार्टी – मौत की मेज़बानी
शंकर को फोन किया गया—“भाई, पार्टी है उदयसागर पाल पर, आ जा।”
शंकर पहुंचा। भरोसे का धोखा उसका पहला कातिल था।
मदनलाल ने पीछे से बाइंडिंग वायर शंकर के गले में डाल दिया, खींचा… तब तक खींचा जब तक सांसें उखड़ न गईं। मांगीलाल ने हथौड़ी से सिर को बार-बार कुचला, जैसे पुराना हिसाब बराबर कर रहा हो।
जब शरीर निढाल हो गया, तो ब्लेड निकाली गई—हाथों और सीने पर कई जगह कट लगाए गए। फिर उन घावों में मिर्ची भर दी गई। एक इंसान को मारने के बाद उसकी लाश को तड़पाने की क्रूरता… शायद पशु भी शरमा जाएं।
लाश, लहू और लहरें
19 अप्रैल की सुबह पुलिस को एक लाश मिली। जगह थी उदयसागर पाल। वहां ना कैमरा था, ना वो मुस्कुराहटें जो शंकर ने सालों से दूसरों के चेहरों पर देखी थीं। वहां थी तो सिर्फ एक लाश—जलील, ज़ख़्मी और ज़ुल्म की कहानी कहती हुई।
एफएसएल टीम आई, डॉग स्क्वॉड आया, मगर सबसे बड़ा सुराग बना… मिर्च पाउडर।
सुरागों की सुई और पुलिस की बुनाई
एसपी योगेश गोयल और एडिशनल एसपी उमेश ओझा ने केस अपने हाथ में लिया।
50 हार्डवेयर की दुकानों और 100 किराना स्टोर्स की खाक छानी।
70 से ज़्यादा सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई।
शंकर की कॉल डिटेल खंगाली गई—और तार जुड़ गए।
48 घंटे बाद, मांगीलाल और मदनलाल को पकड़ लिया गया।
पूछताछ में जुर्म कबूल किया—बिना अफसोस, बिना पश्चाताप।
मोर्चरी के बाहर मचा मातम
शंकर की लाश अब उदयपुर के MB हॉस्पिटल की मोर्चरी में थी। बाहर ग्रामीण जमा थे—नारे लग रहे थे, मुआवजे की मांग थी और न्याय की पुकार।
मगर क्या मुआवजा उस दरिंदगी का हो सकता है, जिसमें इंसान के घावों में मिर्ची भरी गई हो?
एक कैमरा खामोश हो गया
शंकर की लेंस ने हजारों लम्हों को कैद किया था, लेकिन उसका आखिरी लम्हा सिर्फ स्याह था। एक फोटोग्राफर, जो तस्वीरें बुनता था, खुद एक खौफनाक तस्वीर बन गया।
जुर्म खत्म नहीं हुए, मगर एक कहानी और दर्ज हो गई—उदयपुर की ज़मीन पर, खून के छींटों में।
“और कहीं ना कहीं, एक और कर्ज़… अभी बाकी है…”
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