हरिद्वार… जहां गंगा की धारा आत्मा को शांति देती है, जहां मंदिरों की घंटियां श्रद्धा का संगीत रचती हैं — उसी हरिद्वार ने रविवार की सुबह एक ऐसी सिसकी सुनी जो कभी नहीं भुलाई जा सकेगी।
मनसा देवी मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ अचानक उस चीख में बदल गई, जब एक अफवाह ने भीड़ को पागल बना दिया। सीढ़ियों पर “करंट” फैलने की अफवाह ने जो भगदड़ मचाई, उसमें 6 श्रद्धालु हमेशा के लिए खामोश हो गए। 29 से अधिक लोग ज़िंदगी और मौत के बीच झूलते हुए अस्पतालों में हैं।
जब श्रद्धा मौत का सबब बन जाए
मनसा देवी मंदिर, जो आस्था का प्रतीक है, आज उसी आस्था ने कुछ परिवारों के लिए मातम बनकर दस्तक दी। एक मां जो सुबह अपने बेटे को आरती दिखाने लाई थी, अस्पताल की बेंच पर उसकी मृत देह को निहारती रही। एक बुज़ुर्ग दंपति, जो वर्षों बाद उत्तराखंड दर्शन के लिए आए थे, अब केवल एक का नाम रजिस्टर में दर्ज है, दूसरा सिर्फ यादों में है।
यह केवल एक हादसा नहीं, यह सवाल है — क्यों हमारी व्यवस्थाएं भीड़ के सामने लाचार हो जाती हैं?
गढ़वाल कमिश्नर विनय शंकर पांडे ने बयान दिया कि “भारी भीड़ हादसे की वजह बनी।” पुलिस का कहना है कि सीढ़ियों पर करंट फैलने की अफवाह से भगदड़ मची।
यहां सवाल ये है कि ऐसी पवित्र जगहों पर, खासकर सावन और रविवार जैसे अवसरों पर जब भीड़ अनुमान से कहीं ज़्यादा होती है, तो क्या प्रशासन केवल ‘संभावना’ के भरोसे बैठा रहता है?
हम कब सीखेंगे?
यह पहली बार नहीं है जब श्रद्धा भीड़ में घुटने लगी हो।
2013 में रत्नागिरी के मंदिर में 18 लोगों की मौत,
2016 में कोरबा में 12 लोगों की जान गई,
और अब 2025 में हरिद्वार के मंदिर में फिर वही कहानी।
यह घटना केवल अफवाह की उपज नहीं है, यह हमारे तंत्र की अनदेखी और असंवेदनशीलता का आईना है।
समाज की भूमिका भी कम दोषी नहीं
आज के इस सूचना युग में, एक अफवाह इतनी तेजी से फैलती है कि सच्चाई के पास खड़े होने का भी वक्त नहीं मिलता। यह एक चेतावनी है — श्रद्धा के स्थानों पर संयम, अनुशासन और सूचना की पारदर्शिता उतनी ही ज़रूरी है जितनी आस्था।
यह हादसा केवल मरने वालों की गिनती नहीं है, यह उस व्यवस्था पर करारा तमाचा है जो हर बार हादसे के बाद ही जागती है। यह उस समाज के लिए आईना है जो अफवाहों पर आंख मूंदकर दौड़ पड़ता है।
मनसा देवी मंदिर की भगदड़ में मरे लोगों की आत्मा की शांति के लिए देश प्रार्थना कर रहा है, लेकिन अब समय है कि हम प्रार्थना से आगे बढ़ें — योजना, सतर्कता और जवाबदेही की ओर।
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