1. धराली में तबाही – ताज़ा घटनाक्रम
5 अगस्त 2025 की सुबह उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में चारधाम यात्रा मार्ग पर स्थित धराली गाँव में एक भयावह प्राकृतिक आपदा ने जनजीवन को हिला कर रख दिया। गंगोत्री धाम से मात्र 20 किलोमीटर पहले बसे इस गाँव में अचानक बादल फटने से खीर गंगा गदेरे (गहरी खाई/नाला) में भीषण बाढ़ आ गई।
तेज़ पानी के साथ मिट्टी, चट्टानें और मलबा बहकर आए, जिसने रास्ते में आने वाले घर, दुकानें और होटल तक को बहा दिया।
उत्तरकाशी के जिलाधिकारी प्रशांत आर्य ने घटनास्थल रवाना होने से पहले चार मौतों की पुष्टि की, जबकि एनडीआरएफ़ के डीआईजी मोहसेन शाहेदी ने बताया कि 40-50 घर बह चुके हैं और 50 से अधिक लोग लापता हैं। इनमें सेना के नौ जवान भी शामिल हैं, जो उस समय इलाके में तैनात थे।
वर्तमान में सेना, एसडीआरएफ़, एनडीआरएफ़ और ज़िला प्रशासन की टीमें राहत व बचाव कार्य में जुटी हैं। लेकिन पहाड़ी इलाकों में तेज़ बहाव और लगातार बारिश से बचाव अभियान में बाधाएं आ रही हैं।
2. चश्मदीदों की नज़र से तबाही
धराली के निवासी गौरव राणा, जो घटना के समय गाँव के बाहर थे, बताते हैं—
“अचानक तेज़ गर्जना हुई, जैसे पहाड़ टूट रहा हो। कुछ ही मिनटों में पानी और मलबे की लहरें गदेरे से निकलकर सड़कों और घरों में घुस गईं। लोग भागने लगे, लेकिन कई परिवार बह गए।”
चारधाम यात्रा पर आए एक श्रद्धालु ने बताया कि सुबह का मौसम सामान्य था, लेकिन दोपहर के आसपास आसमान काला हो गया। फिर मूसलधार बारिश शुरू हुई और कुछ ही देर में पानी का सैलाब गाँव में घुस आया।
स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि इस बार पानी के साथ आए पत्थर और लकड़ियों का मलबा इतना भारी था कि पक्के मकान भी टिक नहीं पाए।
3. बादल फटना – वैज्ञानिक समझ
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, एक घंटे में 10 सेंटीमीटर या उससे अधिक बारिश यदि किसी छोटे क्षेत्र (1-10 किलोमीटर के दायरे) में हो, तो इसे Cloudburst यानी बादल फटना कहते हैं।
हालांकि, केवल बारिश की मात्रा ही तबाही का कारण नहीं होती—
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यदि पास में कोई नदी, झील या नाला पहले से भरा हो और अचानक भारी बारिश हो जाए, तो पानी तुरंत उफान मारता है।
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पहाड़ी ढलानों के कारण बादल ऊँचाई पर चढ़ते हुए ठंडे होकर अचानक फटते हैं और सारा पानी अल्प समय में गिर जाता है।
क्यों पहाड़ों में ज़्यादा खतरा?
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यहाँ की ढलानें बादलों को ऊपर उठने और संघनित होने के लिए आदर्श माहौल देती हैं।
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भूगोल और वनस्पति में बदलाव (जैसे वनों की कटाई, सड़क निर्माण) पानी के बहाव को और तेज़ बना देते हैं।
4. उत्तराखंड में पिछले बड़े हादसे
उत्तराखंड का इतिहास इस तरह की घटनाओं से भरा है—
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2013 केदारनाथ आपदा – भारी बारिश और बादल फटने से मंदाकिनी नदी में बाढ़ आई, हजारों की मौत।
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2016 पौड़ी गढ़वाल – बादल फटने से 30 से अधिक लोगों की मौत।
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2021 चमोली – ग्लेशियर टूटने से आई बाढ़, जिसमें हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बह गए और 200 से अधिक लोग मारे गए।
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2022 रुद्रप्रयाग – बादल फटने से चारधाम मार्ग बाधित, कई पुल और सड़कें बह गईं।
धराली की घटना इसी कड़ी का नया और खतरनाक अध्याय है।
5. पूर्वानुमान की चुनौती
मौसम विभाग का कहना है कि बादल फटने की घटनाएं छोटे पैमाने पर और बहुत कम समय में होती हैं।
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रडार बड़े क्षेत्र के लिए भारी बारिश का अनुमान लगा सकता है, लेकिन सटीक स्थान और समय बताना मुश्किल है।
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ऐसे पूर्वानुमान के लिए घने रडार नेटवर्क और हाई-रेज़ोल्यूशन मॉडल की जरूरत होती है।
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पर्वतीय क्षेत्रों में भौगोलिक रुकावटें भी रडार कवरेज को प्रभावित करती हैं।
6. जलवायु परिवर्तन और बढ़ता खतरा
विशेषज्ञों के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग के कारण वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ रही है, जिससे अचानक और तीव्र बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं।
साथ ही—
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पहाड़ों में अंधाधुंध सड़क चौड़ीकरण और कंक्रीट निर्माण
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वनों की कटाई
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पर्यटन का दबाव
इन सब कारणों से पानी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है और तबाही का असर कई गुना बढ़ जाता है।
7. नीतिगत और आपदा प्रबंधन के सबक
धराली हादसा यह बताता है कि—
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पहाड़ी क्षेत्रों में अर्ली वार्निंग सिस्टम को मजबूत करना होगा।
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संवेदनशील इलाकों में स्थायी निर्माण पर सख्त नियम लागू करने होंगे।
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चारधाम यात्रा जैसे बड़े आयोजनों में आपदा प्रबंधन अभ्यास और एवैक्यूएशन प्लान अनिवार्य करना होगा।
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स्थानीय समुदायों को आपदा प्रतिक्रिया प्रशिक्षण देना ज़रूरी है।
8. निष्कर्ष – चेतावनी और जिम्मेदारी
धराली का हादसा सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानव हस्तक्षेप और लापरवाही के संयुक्त प्रभाव का परिणाम है।
बादल फटना अपने आप में प्राकृतिक घटना है, लेकिन जब यह उन क्षेत्रों में होता है जहाँ अतिक्रमण, कमजोर निर्माण और खराब प्रबंधन है, तो इसकी मार कई गुना बढ़ जाती है।
अगर हम अभी से—
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जलवायु अनुकूल नीतियां,
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तकनीकी निवेश,
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और स्थानीय स्तर पर तैयारी
नहीं अपनाते, तो भविष्य में उत्तरकाशी, केदारनाथ, चमोली जैसे हादसे और भी बड़े पैमाने पर देखने को मिल सकते हैं।
स्रोत-बीबीसी
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