फोटो : कमल कुमावत

उदयपुर। झीलों की नगरी उदयपुर में भक्ति और उत्साह का अद्भुत संगम देखने को मिला, जब सोमवार को जलझूलनी एकादशी के अवसर पर पारंपरिक डोल यात्राएं निकाली गईं। नगर के विभिन्न हिस्सों से शुरू होकर यह यात्राएं ऐतिहासिक आयड़ क्षेत्र स्थित गंगू कुंड पर पहुंचीं, जहां भगवान का जलविहार संपन्न हुआ।
सुबह से ही मंदिरों और घाटों पर भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। रंग-बिरंगे वस्त्रों और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनों के बीच जब सजी-धजी नौकाओं में भगवान की प्रतिमाएं गंगू कुंड में उतारी गईं तो वातावरण “हर-हर महादेव” और “जयकारा” के नारों से गूंज उठा। भक्तों ने फूलों और दीपों से भगवान का स्वागत किया।

डोल यात्रा की खास बात रही अखाड़ों का प्रदर्शन। युवा और बुजुर्गों ने परंपरा को जीवंत रखते हुए कुश्ती के दांव-पेंच आजमाए। महिलाओं ने भी उत्साह के साथ इसमें भाग लिया, जिससे माहौल और भी रोचक हो गया। अखाड़े में हुए प्रदर्शनों ने ग्रामीण खेलों और पारंपरिक मेलों की याद ताजा कर दी।
गंगू कुंड के चारों ओर हजारों की संख्या में भक्त एकत्रित थे। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक, हर कोई इस धार्मिक उत्सव का हिस्सा बनने के लिए उत्साहित दिखा। लोगों ने कुंड के घाटों पर दीप जलाए और जल में पुष्प अर्पित किए।

धार्मिक और सामाजिक महत्व
जलझूलनी एकादशी को उदयपुर में धार्मिक आस्था और सामाजिक एकता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु जलविहार करते हैं और भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। साथ ही यह आयोजन समाज में सामूहिकता, भाईचारे और संस्कृति को जीवित रखने का भी संदेश देता है।
प्रशासन और सुरक्षा इंतजाम

भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने विशेष सुरक्षा व्यवस्था की थी। पुलिस और स्वयंसेवक लगातार मोर्चे पर डटे रहे, जिससे श्रद्धालुओं को किसी तरह की असुविधा न हो।
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