उदयपुर। राजस्थान की धरती पर एक दशक से चल रहा एक शांत लेकिन गहरा सामाजिक परिवर्तन अब आकार लेने लगा है। यह परिवर्तन सरकार द्वारा नहीं, बल्कि निजी क्षेत्र की एक बड़ी औद्योगिक इकाई – हिंदुस्तान ज़िंक – द्वारा संचालित है, जो दुनिया की सबसे बड़ी एकीकृत ज़िंक उत्पादक कंपनी है। वर्ष 2016 से अब तक हिंदुस्तान ज़िंक ने राजस्थान में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के तहत ₹1,750 करोड़ से अधिक का निवेश कर केवल CSR लक्ष्य पूरे नहीं किए, बल्कि समाज के उन क्षेत्रों में पहुंच बनाई है जिन्हें दशकों तक उपेक्षित रखा गया था।
इस निवेश के सामाजिक प्रभावों को मात्र आँकड़ों में सीमित कर देखना इस बदलाव की गहराई का अपमान होगा। यह उस सोच का परिणाम है जिसमें उद्योगों की ज़िम्मेदारी केवल उत्पादन, मुनाफा और शेयरधारकों के प्रति नहीं, बल्कि समाज के प्रति भी परिभाषित होती है। 2,300 से अधिक गांवों में चल रही परियोजनाएं और 23 लाख से अधिक लाभार्थियों की उपस्थिति यह दर्शाती है कि हिंदुस्तान ज़िंक की भूमिका अब सिर्फ खनन और उत्पादन की नहीं रही, बल्कि सामाजिक भागीदारी और उत्तरदायित्व की हो गई है।
सबसे पहले बात करें शिक्षा और बाल संरक्षण की। कंपनी ने 2,500 से अधिक आंगनवाड़ियों को ‘नंद घर’ में रूपांतरित किया है। ये केंद्र केवल पोषण और स्वास्थ्य तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यहाँ डिजिटल शिक्षा और महिलाओं के कौशल विकास की सुविधाएं भी दी जाती हैं। राजस्थान जैसे राज्य में, जहाँ महिला साक्षरता दर अब भी राष्ट्रीय औसत से नीचे है, ऐसे केंद्र सामाजिक असमानता को चुनौती दे रहे हैं। वहीं शिक्षा संबल और ऊँची उड़ान जैसी परियोजनाएं सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे 35,000 से अधिक छात्रों की शैक्षिक यात्रा को सशक्त बना रही हैं।
कंपनी की सबसे उल्लेखनीय पहल ‘जीवन तरंग’ है, जो दिव्यांग व्यक्तियों के कौशल विकास और सामाजिक समावेशन की दिशा में काम करती है। अब तक 2,600 से अधिक दिव्यांगजन मुख्यधारा से जोड़े जा चुके हैं। यह पहल भारतीय समाज में गहराई तक जमीं ‘शारीरिक अक्षमता = बोझ’ जैसी सोच को बदलने का प्रयास है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में हिंदुस्तान ज़िंक ने कई अभिनव प्रयास किए हैं। कोविड महामारी के दौरान मोबाइल ऑन्कोलॉजी वैन, फील्ड हॉस्पिटल और ऑक्सीजन संयंत्र की स्थापना, एक निजी कंपनी द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य में की गई तत्काल और व्यावहारिक भागीदारी का उदाहरण है। कंपनी ने ‘हेल्थ ऑन व्हील्स’ कार्यक्रम के ज़रिए दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाईं। इसके अतिरिक्त उदयपुर में 60 एमएलडी का सीवेज उपचार संयंत्र और 50 गांवों में सुरक्षित पेयजल प्रणाली की स्थापना ने ग्रामीण स्वच्छता को नई परिभाषा दी है।
एक और बड़ा हस्तक्षेप कृषि क्षेत्र में देखने को मिलता है। कंपनी के ‘समाधान कार्यक्रम’ के तहत 35,000 से अधिक किसान परिवारों को कृषि-आधारित आजीविका सहायता मिली है। इससे स्पष्ट है कि CSR अब महज़ दान या छवि सुधार का ज़रिया नहीं रहा, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने का औज़ार बन गया है। इससे किसानों की आत्मनिर्भरता बढ़ी है, और एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन) के ज़रिए लगभग ₹5 करोड़ का वार्षिक कारोबार दर्ज होना इस बात का प्रमाण है।
महिला सशक्तिकरण की दिशा में ‘सखी’ एक प्रमुख पहल है, जिसने 2,150 से अधिक स्वयं सहायता समूहों के ज़रिए 27,000 महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया है। यह पहल महिलाओं को केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता तक सीमित नहीं रखती, बल्कि उन्हें नेतृत्व, निर्णय लेने और सामुदायिक जीवन में भागीदारी का अवसर भी देती है। इससे पारंपरिक पितृसत्तात्मक सामाजिक ढांचे में धीरे-धीरे परिवर्तन हो रहा है।
समाज में व्याप्त गहरे सांस्कृतिक और सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने के लिए ‘उठोरी अभियान’ जैसे कार्यक्रम भी उल्लेखनीय हैं। बाल विवाह, घरेलू हिंसा, मासिक धर्म स्वच्छता जैसे विषयों पर संवाद खोलने की कोशिश राजस्थान जैसे राज्य में एक साहसिक कदम है। यह पहल अब तक 130 गांवों में 2.3 लाख लोगों को संवेदनशील बना चुकी है। यह बदलाव केवल सूचना देने या बैनर लगाने से नहीं आता, बल्कि दीर्घकालिक समुदाय संवाद से आता है, जो हिंदुस्तान ज़िंक ने बखूबी किया है।
युवाओं को ध्यान में रखते हुए ‘जिंक कौशल केंद्र’ स्थापित किए गए हैं, जिनमें अब तक 7,500 से अधिक युवाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें नौकरी के लिए तैयार किया गया है। साथ ही, जिंक फुटबॉल अकादमी के माध्यम से 650 से अधिक खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ने का अवसर दिया गया है। खेल को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक गतिशीलता के साधन के रूप में देखने की यह सोच दूरगामी प्रभाव डालने वाली है।
इन सभी प्रयासों की साझा उपलब्धि यह है कि हिंदुस्तान ज़िंक ने राजस्थान के ग्रामीण, अर्ध-शहरी और वंचित समुदायों के साथ सीधा संवाद और सहयोग स्थापित किया है। यह संवाद ऊपरी CSR रिपोर्टिंग या कॉर्पोरेट छवि निर्माण के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, सहभागिता और आत्मनिर्भरता की दिशा में है।
इस पूरे परिदृश्य का विश्लेषण करने पर यह भी स्पष्ट होता है कि CSR का यह मॉडल महज़ एक ‘अनुपालन’ (compliance) नहीं, बल्कि एक वैचारिक प्रतिबद्धता का हिस्सा है। यह प्रतिबद्धता सामाजिक परिवर्तन को केवल एक लक्ष्य नहीं, बल्कि प्रक्रिया के रूप में देखती है। हिंदुस्तान ज़िंक ने औद्योगिक विकास और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच की दूरी को खत्म करने की दिशा में एक व्यावहारिक मॉडल प्रस्तुत किया है।
वर्तमान समय में जब निजी क्षेत्र की भूमिका को अक्सर केवल मुनाफे और बाजार नियंत्रण के दृष्टिकोण से देखा जाता है, तब हिंदुस्तान ज़िंक जैसे उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि यदि सही दृष्टिकोण, रणनीति और समुदाय सहभागिता को अपनाया जाए तो उद्योग न केवल आर्थिक इंजन बन सकते हैं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन के वाहक भी।
इस दृष्टिकोण से देखें तो राजस्थान की भूमि पर यह निवेश केवल रुपये का नहीं, बल्कि सामाजिक पूंजी का निर्माण है – एक ऐसा निर्माण जो दशकों तक सामाजिक संरचना को भीतर से बदलने की क्षमता रखता है।
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