बीजेपी में हटेगी उम्र की सीमा : वरिष्ठों की वापसी और निकाय चुनावों का नया समीकरण

उदयपुर/जयपुर।

राजनीति में उम्र का सवाल हमेशा संवेदनशील रहा है। एक ओर युवाओं को आगे बढ़ाने की मांग रहती है, तो दूसरी ओर अनुभव और परंपरा की अहमियत को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लंबे समय तक ‘युवा नेतृत्व’ को प्राथमिकता देने की नीति अपनाई, लेकिन जयपुर नगर निगम (हेरिटेज) उपचुनाव में हुई एक हार ने पार्टी को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

अब भाजपा नया समीकरण गढ़ रही है, जिसके तहत 50 पार कार्यकर्ताओं को दोबारा सक्रिय राजनीति में लाने की योजना बनाई जा रही है। आगामी निकाय चुनावों में यह रणनीति निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

आडवाणी युग से मोदी-शाह मॉडल तक: उम्र की राजनीति का सफर

भाजपा की राजनीति में उम्र का मुद्दा कोई नया नहीं है।

लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को उम्र के आधार पर सक्रिय राजनीति से विदाई देना भाजपा की रणनीति का हिस्सा था। पार्टी ने साफ संकेत दिया कि 75 पार नेता केवल ‘मार्गदर्शक मंडल’ का हिस्सा होंगे।

नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में संगठन ने युवाओं को आगे बढ़ाया। नतीजा यह हुआ कि 50+ उम्र वाले कई नेता धीरे-धीरे जिम्मेदारियों से हटते गए।

इस नीति ने भाजपा को ताजगी और नया नेतृत्व दिया, लेकिन संगठन के भीतर वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की नाराज़गी भी बढ़ी। राजस्थान जैसे राज्यों में, जहां लंबे समय से भाजपा का मजबूत कैडर है, वहां यह असंतुलन और गहरा असर दिखाने लगा।

जयपुर की हार : एक छोटे चुनाव से बड़ा सबक

जयपुर हेरिटेज नगर निगम में हुए उपचुनाव में भाजपा को एक वार्ड की हार का सामना करना पड़ा। पहली नज़र में यह एक साधारण हार लग सकती है, लेकिन इसके राजनीतिक निहितार्थ गहरे हैं।

चुनाव से पहले वायरल हुई शहर कार्यकारिणी की सूची में लगभग सभी जगह युवाओं को तवज्जो दी गई थी।

वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया।

नाराज़ वरिष्ठों ने गुपचुप बैठकों का दौर शुरू किया।

परिणामस्वरूप यह संदेश गया कि भाजपा के भीतर अनुभव बनाम युवा जोश का टकराव सामने आ रहा है। यही नाराज़गी उपचुनाव के नतीजे में परिलक्षित हुई।

41-59 का नया फॉर्मूला: अनुभव और ऊर्जा का संतुलन

भाजपा आलाकमान ने हालात को भांपते हुए नया फॉर्मूला तैयार किया है।

41% टिकट: 50+ उम्र वाले अनुभवी कार्यकर्ताओं को।

59% टिकट: युवा और नए चेहरों को।

महिला प्रतिनिधित्व: इस बार महिला प्रत्याशियों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी।

यह रणनीति साफ दिखाती है कि भाजपा अब ‘वन-साइडेड’ युवा राजनीति से हटकर संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है।

वरिष्ठों की वापसी: क्यों जरूरी?

संगठन का मजबूत आधार – राजस्थान जैसे राज्यों में भाजपा का बड़ा कैडर 1980-90 के दशक से जुड़ा हुआ है। ये कार्यकर्ता बूथ स्तर तक मजबूत पकड़ रखते हैं।

चुनावी अनुभव – वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक चुनाव देखे हैं। उनका अनुभव चुनाव प्रबंधन में अहम होता है।

वोटरों से जुड़ाव – स्थानीय समाज और वर्गों में वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की अपनी विश्वसनीयता होती है।

असंतोष पर काबू – वरिष्ठों की उपेक्षा से भीतरखाने असंतोष पनप रहा था। उनकी वापसी से यह असंतोष कम किया जा सकेगा।

कांग्रेस पर संभावित असर

भाजपा का यह कदम सिर्फ आंतरिक राजनीति तक सीमित नहीं है। यह कांग्रेस की रणनीति को भी प्रभावित करेगा।

कांग्रेस लंबे समय से भाजपा पर ‘वरिष्ठों की उपेक्षा’ का आरोप लगाती रही है।

अगर भाजपा वरिष्ठों को टिकट देना शुरू करती है तो कांग्रेस का यह आरोप कमजोर पड़ जाएगा।

कांग्रेस की राजनीति राजस्थान में अक्सर ‘वरिष्ठ नेताओं बनाम युवा चेहरों’ के संघर्ष से घिरी रही है। भाजपा इस संतुलन से कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना सकती है।

निकाय चुनाव का गणित: जयपुर और राजस्थान का महत्व

दिसंबर 2025 में जयपुर नगर निगम के चुनाव होंगे। इस बार हेरिटेज और ग्रेटर दोनों निगमों का कार्यकाल खत्म हो जाएगा और एकीकृत 150 वार्डों का चुनाव होगा।

जयपुर की हार का मनोवैज्ञानिक असर भाजपा नहीं चाहती कि यह बड़ा चुनाव प्रभावित हो।

राजनीतिक संदेश: नगर निगम चुनाव विधानसभा 2028 के समीकरणों को प्रभावित कर सकते हैं।

सीधे संपर्क वाले चुनाव: निकाय चुनाव में उम्मीदवार का व्यक्तिगत कद और सामाजिक जुड़ाव ज्यादा मायने रखता है। यहां वरिष्ठों का अनुभव निर्णायक हो सकता है।

भाजपा का अंदरूनी समीकरण: युवा बनाम वरिष्ठ

भाजपा में दो धाराएं साफ दिख रही हैं –

युवा धड़ा – जो मोदी-शाह के नेतृत्व में उभरकर आया है। इनके पास संगठन में जोश और आक्रामकता है।

वरिष्ठ धड़ा – जो लंबे समय से कार्य कर रहा है और मानता है कि अनुभव और पुराना नेटवर्क ही चुनाव जिताने में कारगर है।

जयपुर उपचुनाव ने यह साफ कर दिया है कि केवल युवा नेतृत्व पर भरोसा करना जोखिम भरा हो सकता है।

महिला प्रतिनिधित्व: रणनीति की नई कड़ी

भाजपा अब महिला प्रत्याशियों पर भी ज्यादा दांव लगाने की सोच रही है।

महिला मतदाता बड़ी संख्या में निकाय चुनावों में हिस्सा लेती हैं।

महिला प्रत्याशियों को टिकट देना पार्टी की ‘समावेशी’ छवि को मजबूत करेगा।

राजस्थान की राजनीति में महिला नेत्रियों का प्रभाव भी लगातार बढ़ रहा है।

अगर यह प्रयोग सफल हुआ – तो यह मॉडल विधानसभा और लोकसभा चुनावों तक भी लागू हो सकता है।

अन्य राज्यों में विस्तार – मध्यप्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी 41-59 का फॉर्मूला दोहराया जा सकता है।

वरिष्ठ नेताओं की नई भूमिका – यह सिर्फ टिकट तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उन्हें संगठनात्मक जिम्मेदारियां भी मिल सकती हैं।

जयपुर नगर निगम का एक छोटा-सा चुनाव भाजपा के लिए बड़े राजनीतिक सबक लेकर आया है। वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की अनदेखी सिर्फ संगठनात्मक असंतोष नहीं, बल्कि चुनावी हार का कारण भी बन सकती है। इसलिए भाजपा ने 41-59 का फॉर्मूला अपनाकर अनुभव और ऊर्जा का संतुलन साधने की कोशिश की है।

आगामी चुनावों में यह रणनीति कितनी कारगर होगी, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन इतना तय है कि भाजपा अब उम्र की सीमा को कठोर दीवार नहीं बनाएगी। आने वाले समय में वरिष्ठ और युवा मिलकर संगठन को नए चुनावी मुकाम तक ले जाने की कोशिश करेंगे।

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