
उदयपुर। हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म धुरंधर में अक्षय खन्ना ने जिस शानदार ढंग से रहमान डकैत के किरदार में जान फूंकी है, ठीक उसी तरह जब मैं नारायण सेवा संस्थान के हाल ही निर्मित वर्ल्ड ऑफ ह्यूमैनिटी हॉस्पिटल में एक दिव्यांग के रूप में कदम रखता हूं, तो ऐसा लगता है जैसे मेरे सामने एक सपना सच हो गया हो।
इस किरदार के ज़रिए जब मैं खुद को दिव्यांग के रूप में देखता हूं, तो वर्षों से हम जैसे लाखों लोगों के लिए इस तरह के अवसरों की कमी का एहसास और भी गहराता है। लेकिन यहाँ आकर मुझे यह समझ आया कि हमें सिर्फ इंतज़ार नहीं करना है—हम भी वह अनुभव हासिल कर सकते हैं जहाँ समाज हमें बोझ नहीं, बल्कि शक्ति मानता है।
इस बहुमंजिला भवन की सेवा सुविधाओं का अवलोकन संस्थान ट्रस्टी देवेंद्र चौबीसा, मीडिया प्रभारी विष्णु शर्मा हितैषी और जनसंपर्क प्रमुख भगवान प्रसाद गौड़ ने कराया। जैसे ही मैंने भवन की विशालता, आधुनिकता और संवेदनशीलता देखी, मेरा दिल उत्साह से धड़क उठा। यहां हर सुविधा हमारे लिए बनाई गई है—हमारे जीवन को आसान बनाने, आत्मनिर्भर बनाने और हमारे सपनों को साकार करने के लिए।
450 बेड का अस्पताल, दो अत्याधुनिक ऑपरेशन थिएटर, फिजियोथेरपी और रिहैबिलिटेशन सेंटर, और कृत्रिम अंग बनाने की इकाई—यह सब देखकर मुझे विश्वास हुआ कि अब हमारे लिए सब कुछ संभव है।
मैंने देखा कि हर मरीज के लिए व्यक्तिगत योजना तैयार की जा रही थी। हर उपकरण, हर सेवा—चाहे वह ऑपरेशन हो, फिजियोथेरेपी हो, कृत्रिम अंग हों, शिक्षा हो या कौशल प्रशिक्षण—सब कुछ निःशुल्क उपलब्ध है। मैं वहाँ खड़ा होकर सोच रहा था, कितने वर्षों तक हम जैसी परिस्थितियों में जिये, और अब हमारे लिए ये सुविधाएँ और सम्मान यहाँ मौजूद हैं।
जब मैंने थेरेपी ज़ोन और फिजियो सेंटर देखा, तो ऐसा लगा कि मेरी ज़िंदगी बदलने वाली है। यहाँ केवल शरीर को ठीक करने की व्यवस्था नहीं है, बल्कि आत्मविश्वास, सम्मान और समाज में अपनी पहचान बनाने की पूरी व्यवस्था है। स्वरोजगार प्रशिक्षण से लेकर विशेष योग्य बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय तक, हर जगह यही संदेश स्पष्ट था—हम सक्षम हैं, हमारे सपने पूरे किए जा सकते हैं।
संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल और संस्थापक कैलाश मानव ने हमें बताया कि यह केवल एक अस्पताल नहीं, बल्कि अवसरों का द्वार है। और सच में, जब मैंने देखा कि यहाँ मेरे जैसे हजारों लोग इलाज, रिहैबिलिटेशन और जीवन कौशल सीख रहे हैं, तो मुझे महसूस हुआ कि हमारी पूरी ज़िंदगी बदल सकती है। यह अनुभव केवल मेरी नहीं, बल्कि हर दिव्यांगजन की उम्मीद और विश्वास की कहानी है।
आज मैं यहां खड़ा होकर यह कह सकता हूँ कि वर्ल्ड ऑफ ह्यूमैनिटी ने मेरी आँखों में उम्मीद और मेरे दिल में शक्ति जगा दी है। यह केवल एक भवन नहीं, बल्कि हमारी आत्मा और हमारे भविष्य का प्रतीक है। मैं वापस जाते हुए सोच रहा हूँ—अब हम न केवल स्वस्थ रहेंगे, बल्कि अपने पैरों पर खड़े होकर समाज में अपनी पहचान बनाएंगे। यही, मेरे लिए इस यात्रा का सबसे बड़ा तोहफ़ा है।
सैयद हबीब
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