प्रदूषण पराधीनता से मुक्ति का “हरित” दृष्टिकोण

स्वतंत्रता के उद्देश्य व अभिप्राय को केवल व्यक्तिगत अथवा संस्थागत स्वाधीनता तक ही केंद्रित रख देने तथा प्रकृति सेवा के पुनीत उत्तरदायित्व को भुला देने से पूरा समाज प्रदूषण की पराधीनता से पीड़ित है। इस पराधीनता से मुक्ति में ही शाश्वत स्वतंत्रता, खुशहाली व समृद्धि निहित है। इसके लिए दृष्टिकोण , पर्सपेक्टिव को पर्यावरण केंद्रित करना प्रारंभिक शर्त है।

भारत का मूल पर्यावरण दृष्टिकोण “हरित” है। और, यह हरित विचार अंग्रेजी के ग्रीन का हिंदी अनुवाद नही हैं। पश्चिमी पर्यावरण दर्शन “ग्रीन” पूरे विश्व मे एक आदर्श के रूप में प्रसारित है। लेकिन, यह दर्शन प्रकृति के विविध तत्वों की अधिकतम खपत पर केंद्रित है। पश्चिम की यह ग्रीन अवधारणा पृथ्वी को मात्र एक प्लेनेट मानती है। मिट्टी, हवा, पानी, वनस्पति को जीवन स्रोत के बजाय महज एक संसाधन मानती है। तालाबों, नदियों, पहाड़ों के पर्यावरणीय संरक्षण , प्रदूषण निवारण के पीछे आर्थिक लाभ निहित है। जिसे पश्चिम का यह दर्शन” सर्कुलर इकोनॉमी” कहता है। यह अवधारणा मानव ही श्रेष्ठ है तथा प्रकृति पर उसका ही अधिकार है, के अहम अर्थात “इगो” पर केंद्रित है। इसी प्रकार पश्चिम से आया शब्द” स्टेक होल्डर” अर्थात हित धारक का भी अभिप्राय यही है कि इंसान के हित सर्वोपरि है । और यहीं कारण है कि मानव समाज प्रदूषण , पर्यावरणीय संकट
से पीड़ित है। जलवायु परिवर्तन संकट की वैश्विक विभीषिका से लेकर असहनीय गर्मी, सर्दी, बाढ़ , सूखा और महामारियों की बेड़ियां हमे जकड़े हुए हैं।

प्रदूषण पराधीनता की इन बेड़ियों से मुक्ति के लिए भारत के पर्यावरणीय दर्शन, जीवन शैली , परंपराओं, आचार , विचार , व्यहवार को अपनाना जरूरी है। भारत का पर्यावरणीय दृष्टिकोण प्रकृति के हित धारक होने में नही , वरन प्रकृति के हित कारक बनने पर केंद्रित है। यह सर्कुलर इकोनॉमी नही बल्कि सर्कुलर इकोलॉजी में विश्वास करता हैं ।अर्थात, सम्पूर्ण जैविक चक्र को पुष्ट कर प्रकृति के समस्त जीवों, वनस्पति के पोषण, संरक्षण संवर्धन को सुनिश्चित करना। मानव सर्वोपरि है इस “इगो” केंद्रित संकुचित अहम के स्थान पर भारत का प्रकृति सेवा से पूर्ण दिव्य विचार “इको” केन्द्रित रहा है। भारत का विचार पृथ्वी को माता मानता है तथा उद्घोष करता है माता भूमि: पुत्रोह्म पृथ्वीया:।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पराधीनता मुक्ति के आजादी के जन अभियान में स्वदेशी को एक प्रमुख आधार बनाया। प्रदूषण पराधीनता से मुक्ति के लिए भी पर्यावरण संरक्षण के स्वदेशी दृष्टिकोण को अंगीकार करना बहुत जरूरी है । ” हरित ” ही यह स्वदेशी दृष्टिकोण है। पश्चिम की ग्रीन अवधारणा ग्रीड केंद्रित है जबकि भारत की हरित अवधारणा प्रकृति में हरि अर्थात ईश्वर का दर्शन करती है तथा सेवा , समर्पण, करुणा, संवेदनशीलता के उत्तम मूल्यों के साथ प्रकृति की सेवा के लिए प्रेरित करती है। हरित दृष्टिकोण अर्थात ” होलिस्टिक एक्शन फॉर रीवाइटेलाइजेशन ऑफ इंडिजिनस ट्रेडिशंस” ।भारत की शाश्वत , सर्व हितैषी तथा सहअस्तित्व , सह विकास, सह प्रगति पर्यावरण दर्शन, संस्कृति, परंपराओं, जीवन शैली को पुन:स्थापित करने के समग्र कार्य , प्रयास ही हरित है। यही हमे प्रदूषण की पराधीनता से मुक्ति दिलाएगा।

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