उदयपुर। जब किसी चेहरे पर मेकअप होता है, तो हर चीज़ चमकदार और आकर्षक लगती है। लेकिन जैसे ही बारिश की बूंदें गिरती हैं, वो सारा मेकअप बह जाता है और असली चेहरा सामने आ जाता है। यही हाल गुरुवार को आयड़ नदी का हुआ। जो नदी कुछ ही दिनों पहले एक बेहतरीन सीनरी का हिस्सा थी, अब एक बिखरी हुई निर्माण परियोजना का जीता जागता उदाहरण बन गई है। नदी के पैंदे में लगाए गए पत्थर तो भले ही जगह पर टिके रह गए हों, पर उनका चारों ओर का आधार, यानी मिट्टी, बह चुकी है। कुल मिलाकर आयड़ के विकास के दावों का मलबा अब बारिश में बह चुका है।
बात यहीं खत्म नहीं होती। उदयपुर के पूर्व विधायक गुलाबचंद कटारिया, मौजूदा विधायक ताराचंद जैन और मेयर गोविंद सिंह टांक ने बड़ी शान से आयड़ के सौंदर्यीकरण के वादे किए थे, लेकिन अब जनता का पैसा ऐसे बहता दिख रहा है जैसे बरसाती पानी की धार। और मज़े की बात तो यह है कि इन वादों की नाकामी पर दोनों प्रमुख राजनीतिक दल, जो तब भी सत्ता में थे और अब भी हैं, किसी प्रकार की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं।
क्या ये वही नेता नहीं थे जो मंचों से बड़ी-बड़ी घोषणाएं करते थे कि आयड़ का कायाकल्प हो रहा है? फिर अब जब उनके ‘कायाकल्प’ का मलबा बिखरा पड़ा है, तो ये लोग क्यों खामोश हैं? झील संरक्षण समिति के अनिल मेहता ने सही कहा कि कोर्ट में भी प्रशासन ने कभी ये रिपोर्ट पेश नहीं की कि यह काम गलत तरीके से हो रहा है। शायद उन्हें पता था कि अगर इस बात का पर्दाफाश हो गया, तो उनका दिखावटी विकास भी ध्वस्त हो जाएगा।
यहां सिर्फ बारिश दोषी नहीं है। असल दोषी वो ‘नेतृत्व’ है जो इन तमाम नाकामियों को देख कर भी अपनी कुर्सी पर इत्मीनान से बैठा है। क्या आयड़ के बर्बाद होने के लिए जवाबदेही की बारी नहीं आई? पूर्व कलेक्टर ताराचंद मीना, जिन्होंने कांग्रेस के टिकट पर उदयपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, क्या अब इस मामले पर चुप्पी साध लेंगे? जब वो कलेक्टर थे, तब क्यों नहीं आयड़ की सुरक्षा के पुख्ता कदम उठाए गए?
सवाल तो विधायक ताराचंद जैन और मेयर गोविंद सिंह टांक से भी है। आखिर उस गारंटी का क्या हुआ जो उन्होंने दी थी कि आयड़ में सौंदर्यीकरण स्थायी रहेगा? उनकी ‘सौंदर्य’ परियोजना 100-100 किलो की पट्टियों और झूठे आत्मविश्वास के साथ पानी में बह गई, और आज जवाबदेही का पानी पीने के लिए कोई भी सामने नहीं आ रहा है।
जब बारिश ने आयड़ का नकली सौंदर्य धो डाला, तो असली जिम्मेदार भी सामने आने चाहिए। लेकिन जैसा अकसर होता है, यहाँ भी जवाबों की बजाय केवल खामोशी है।
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