
सैयद हबीब, उदयपुर। उदयपुर बीजेपी में जिलाध्यक्ष की कुर्सी को लेकर न केवल होड़ मची हुई है, बल्कि पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी सियासी हलचल तेज हो गई है। हर तरफ चर्चाएं हैं, और एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ में कार्यकर्ता कमर कस चुके हैं।
कई नाम तेजी से चर्चा में हैं—कुछ मौजूदा पदाधिकारी, कुछ वर्तमान जिलाध्यक्ष के करीबी, तो कुछ विधायक और सांसद के आशीर्वाद के साये में पलने वाले। पर सवाल यह है कि क्या यह केवल नाम का खेल है, या वास्तव में कार्यकर्ताओं की मेहनत का फल? विद्यार्थी परिषद के पूर्व बड़े पदाधिकारियों का नाम सुनकर लगता है जैसे पार्टी में अतीत के लोग फिर से लौटने की तैयारी कर रहे हैं।
महामहिम गुलाबचंद कटारिया के आगमन पर एयरपोर्ट पर नेताओं का जुटना इस बात का सबूत है कि लोग सत्ता के चश्मे से देख रहे हैं। पगड़ी और उपरणा लेकर आए कार्यकर्ता केवल नेता का स्वागत नहीं कर रहे, बल्कि अपनी सियासी ताकत का भी प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि क्या इन सभी प्रयासों का कोई ठोस परिणाम निकलता है, या ये महज दिखावे तक ही सीमित रह जाएंगे।
इस महाकुंभ में असली जंग उन कार्यकर्ताओं की है, जो सच्चे मन से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं। उन्हें यह सवाल उठाना चाहिए-क्या पार्टी की प्राथमिकता वास्तव में उन पर है, जो दिन-रात पार्टी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, या यह केवल नाम और धन के खेल में सिमटकर रह गई है? कार्यकर्ताओं को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि क्या वे केवल मोहरे हैं, या वास्तव में अपनी आवाज़ उठा सकते हैं।
बात यहीं खत्म नहीं होती। यह फैसला आने वाले चुनावों में बीजेपी की दिशा तय कर सकता है। क्या पार्टी नेतृत्व एक सच्चे कार्यकर्ता को मान्यता देगा, या फिर एक और नाम मात्र की राजनीति का शिकार बनेगा? उदयपुर बीजेपी की राजनीति में इस समय जो ऊर्जा है, वह केवल एक नए जिलाध्यक्ष की नियुक्ति तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि कार्यकर्ताओं के भविष्य और पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण सबक बनकर उभर सकती है।
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