
उदयपुर। दीपावली के उल्लास और चमक-धमक के बीच एक कड़वा सच भी छिपा है—उदयपुर में डेंगू का कहर, जो लोगों की सेहत के साथ नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को भी उजागर कर रहा है। सवाल यह उठता है कि यदि समय पर फोगिंग की गई होती, तो अस्पतालों में डेंगू के मरीजों की संख्या क्यों बढ़ रही है? यह बात साफ इशारा करती है कि निगम ने शायद केवल औपचारिकता निभाई, परंतु गंभीरता से कोई कदम नहीं उठाया।
ऐसा कैसे संभव है कि जिस शहर के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग के कंधों पर है, वहां इस तरह के वायरस का प्रकोप फैले? जब डेंगू ने नगर निगम के उपसभापति वीरेंद्र बापना तक को अपना शिकार बना लिया, तो फिर आम जनता का क्या हाल होगा! निगम द्वारा किए गए फोगिंग अभियान और उसके परिणामों पर सवाल उठना स्वाभाविक है। क्या इसमें सही रसायनों का प्रयोग हुआ? या फिर वही पुरानी कहानी, पानी या सस्ते पदार्थों का इस्तेमाल कर दी गई फोगिंग, जो असल में सिर्फ दिखावे का हिस्सा है?
यदि हालात वाकई इतने गंभीर हैं, तो स्वास्थ्य विभाग को आगे आकर पारदर्शिता बरतनी चाहिए। क्या विभाग के पास कोई आंकड़ा है कि डेंगू से अब तक कितने लोगों की जान गई है? यदि है, तो वह क्यों छुपाया जा रहा है?
यह सवाल इस दीपावली पर हर नागरिक के दिल में जल रही एक असली रोशनी बन कर उठना चाहिए, ताकि अगले साल हम स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय स्थिति पर रोशनी डाल सकें और नगर निगम जैसी संस्थाओं को जवाबदेह बना सकें।
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