फोटो जर्नलिस्ट : कमल कुमावत

उदयपुर। शहर जब दीपावली की रौनक में सराबोर है, तब उदयपुर के सबसे बड़े मीरा गर्ल्स कॉलेज का अंधेरे में डूबा होना बालिका शिक्षा की वास्तविकता पर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। कलेक्ट्री, कोर्ट, नगर निगम, थाने और प्रमुख इमारतें रोशनी में जगमगा रही हैं, लेकिन ये उजाला बालिका शिक्षा के उन धुंधलकों तक नहीं पहुंच पा रहा है, जहां हजारों छात्राओं के भविष्य पर परत दर परत सवाल उठते हैं।
जर्नल ऑफ ग्लोबल रिसोर्स में प्रकाशित मीरा गर्ल्स कॉलेज की ही शिवानी स्वर्णकार और संध्या पठानिया के रिसर्च पेपर के मुताबिक उदयपुर के विभिन्न ब्लॉकों में साक्षरता की असमानता का एक और पहलू चिंताजनक है। जिले की ग्यारह तहसीलों में महिलाओं की साक्षरता दर बहुत कम है। जैसे, लसाडिया तहसील में महिला साक्षरता दर 30 प्रतिशत से भी कम है, जबकि खेरवाड़ा और गिर्वा जैसे कुछ क्षेत्र ही 50 प्रतिशत से अधिक की साक्षरता दर तक पहुंच पाए हैं। बालिका शिक्षा के क्षेत्र में इतनी बड़ी असमानता केवल सरकारी आंकड़ों में ही नहीं, बल्कि समाज में भी गहरे विभाजन की ओर इशारा करती है।

सामाजिक असमानताओं का काला सच
उदयपुर के सामाजिक समूहों में, विशेष रूप से अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग की साक्षरता दर चौंकाने वाली है। कोटड़ा और लसाडिया जैसे क्षेत्रों में ये दर 50 प्रतिशत से भी कम है, जो बालिका शिक्षा की वर्तमान स्थिति पर सीधा प्रहार है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारी योजनाएं जैसे ‘आपणी लाडो’ और ‘लाडो प्रोत्साहन योजना’ केवल कागजों में ही सीमित रह गई हैं, क्योंकि जमीनी स्तर पर इनके प्रभाव का न होना बालिका शिक्षा की अनदेखी को दर्शाता है।
बालिका शिक्षा के लिए प्रयास तो हैं, लेकिन निष्प्रभावी

1916 में स्थापित राजस्थान महिला विद्यालय जैसी संस्थाएं और सरकारी योजनाएं जैसे गार्गी पुरस्कार एवं बालिका प्रोत्साहन पुरस्कार, भले ही बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई हैं, लेकिन ये असमानताओं की गहरी खाई को पाटने में सक्षम नहीं दिखाई देतीं। भारत में स्कूल न जाने वाली लड़कियों की संख्या का सबसे अधिक होना इस व्यवस्था की खामियों की तरफ स्पष्ट इशारा करता है।
बालिका शिक्षा की राह में रुकावटें और उपेक्षा
पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा, कम विवाह योग्य आयु जैसी सामाजिक बाधाएं और महिला छात्रावासों की कमी जैसी व्यवस्थागत कमजोरियां बालिका शिक्षा के प्रति उपेक्षा को उजागर करती हैं। बालिकाओं के प्रति शिक्षकों का उपेक्षित रवैया और शिक्षा के प्रति समाज में जागरूकता का अभाव, बालिका शिक्षा के अधूरे सपने को अंधेरे में धकेलते हैं।
कॉमेंट: इस दीपावली के अवसर पर, जब हर घर और इमारतें रौशनी से जगमगा रही हैं, तो मीरा गर्ल्स कॉलेज का अंधेरा केवल एक इमारत का नहीं, बल्कि बालिका शिक्षा के प्रति प्रशासन और समाज के संवेदनहीन रवैये का प्रतीक है।
About Author
You may also like
-
उदयपुर शहर भाजपा कार्यकारिणी—कटारिया गुट ने खुद दूरी बनाई या नेतृत्व ने उनकी अनदेखी की?
-
विश्व फोटोग्राफी दिवस 2025 : क्या आपको मालूम है 2025 का World Press Photo of the Year कौनसा है?
-
राजस्थान की मणिका विश्वकर्मा बनीं मिस यूनिवर्स इंडिया, अब थाईलैंड में करेंगी भारत का प्रतिनिधित्व
-
विश्व फोटोग्राफर्स डे पर वरिष्ठ पत्रकार संजय गौतम की कलम से विशेष…तस्वीरों में दर्ज होती है पत्रकारिता की असलियत
-
स्मार्ट सिटी में सिरफिरे का स्मार्ट हमला ! सूरजपोल की दीवार पर बेखौफ रगड़े, सुरक्षा के इंतज़ाम फेल