मुंबई। हाल ही में, बीजेपी सांसद कंगना रनौत ने बांग्लादेश में हिंदू समुदाय और साधु-संतों के खिलाफ हो रही कथित हिंसा और दुर्दशा पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका यह बयान तब आया, जब बांग्लादेश में इस्कॉन से जुड़े चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ़्तारी के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ने लगा था। कंगना रनौत ने इस मुद्दे को गंभीर रूप से उठाते हुए सवाल किया कि भारत में इस मुद्दे को लेकर कोई जन आंदोलन क्यों नहीं हो रहा और सोशल मीडिया पर इस पर कोई चर्चा क्यों नहीं हो रही। कंगना ने अपने बयान में यह भी कहा कि बांग्लादेश में साधु-संतों के साथ जो अत्याचार हो रहे हैं, वह बेहद चिंताजनक हैं, और इन घटनाओं पर भारत में कोई संवेदनशील प्रतिक्रिया नहीं हो रही।
इस बयान के साथ ही कंगना ने बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस पर भी तीखा हमला किया। उन्होंने कहा, “जब से मोहम्मद यूनुस सत्ता में आए हैं, तब से बांग्लादेश में अशांति और असुरक्षा का माहौल फैल चुका है।” कंगना के अनुसार, इस कठिन समय में भारत को बांग्लादेश के हिंदू समुदाय के साथ खड़ा होना चाहिए और उनकी सुरक्षा की गारंटी लेनी चाहिए। उनका यह बयान बांग्लादेश की सरकार को लेकर भी एक आरोप था, जिसमें उन्होंने देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते हमलों और हिंसा पर सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए।
आलोचना का मुख्य बिंदु
कंगना रनौत का बयान, हालांकि अपने आप में संवेदनशील विषयों को उजागर करता है, लेकिन इसमें कई आलोचनात्मक पहलू भी हैं, जिन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। सबसे पहले, कंगना ने बांग्लादेश में हो रही हिंसा और धर्मनिरपेक्षता की स्थिति को लेकर अपनी चिंता तो व्यक्त की, लेकिन उनके बयान में यह सवाल नहीं उठाया गया कि इस हिंसा के कारण और इसके पीछे की राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिस्थितियाँ क्या हैं। उनका बयान एकतरफा नजरिया पेश करता है, जहां केवल हिंदू समुदाय के अधिकारों की बात की जाती है, लेकिन बांग्लादेश की आंतरिक समस्याओं और राजनीति की जटिलताओं को समझने की कोशिश नहीं की जाती।
कंगना का यह सवाल, “भारत में इस पर कोई आंदोलन क्यों नहीं हो रहा?” एक स्तर पर यह सही हो सकता है कि भारतीय नागरिकों को इस मामले में अधिक संवेदनशील होना चाहिए, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या इस मुद्दे पर केवल एकतरफा प्रतिक्रिया दिखाना ही उचित है? भारत और बांग्लादेश दोनों देशों के बीच कई ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रिश्ते रहे हैं, और दोनों देशों की सरकारों के लिए यह जरूरी है कि वे एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में बिना उचित जानकारी और संवेदनशीलता के दखल न दें।
राजनीतिक एजेंडा या वास्तविक चिंता?
कंगना रनौत का बयान, जो बांग्लादेश सरकार की आलोचना करते हुए हिंदू समुदाय के पक्ष में खड़ा होने का दावा करता है, उसमें कई राजनीतिक एजेंडे की झलक मिलती है। कंगना ने बांग्लादेश की वर्तमान सरकार के खिलाफ बयान देते हुए इसे ‘अशांति फैलाने वाला’ करार दिया। हालांकि, उनका यह बयान बांग्लादेश की सरकार के खिलाफ स्पष्ट विरोध जताता है, लेकिन इसके पीछे कोई ठोस डेटा या तथ्यों का आधार नहीं था। इससे यह भी सवाल उठता है कि क्या कंगना ने राजनीतिक उद्देश्य से यह बयान दिया है या वास्तव में उन्हें बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के हालात पर गहरी चिंता है?
यह ध्यान देने योग्य है कि कंगना ने बांग्लादेश की सरकार की आलोचना की, लेकिन वह पूरी तरह से इस बात पर चुप रहीं कि बांग्लादेश में स्थिति क्यों बिगड़ी है। वहां की आंतरिक राजनीति, सांस्कृतिक दबाव, और अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हिंसा की जड़ें किसी अकेली सरकार या नेता से जुड़ी नहीं हैं, बल्कि यह एक लंबे समय से चली आ रही समस्या है जो धार्मिक कट्टरता, सामाजिक असहमति और राजनीतिक संघर्षों से जुड़ी हुई है।
भारत-बांग्लादेश रिश्तों पर प्रभाव
कंगना का बयान भारत-बांग्लादेश रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि यह एकतरफा दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है और बिना समझे बांग्लादेश की आंतरिक स्थिति में हस्तक्षेप करने का प्रयास करता है। ऐसे बयानों से दोनों देशों के रिश्ते और तनावपूर्ण हो सकते हैं, खासकर जब बांग्लादेश की विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में भारतीय झंडे को जलाए जाने की घटना का उल्लेख किया और इसे ‘अस्वीकार्य’ बताया।
भारत को चाहिए कि वह बांग्लादेश में हो रही घटनाओं पर अपनी चिंता जताए, लेकिन इसे एक जिम्मेदार और संतुलित तरीके से किया जाए। इसके बजाय, कंगना का यह बयान एक संकीर्ण दृष्टिकोण की तरह प्रतीत होता है, जो केवल एक समुदाय के अधिकारों पर बात करता है और दूसरे पहलुओं को नजरअंदाज करता है।
कंगना रनौत का बयान निश्चित रूप से एक गंभीर मुद्दे को उठाता है, लेकिन इसका तरीका और संदर्भ आलोचनात्मक हैं। यह बयान बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप की ओर इशारा करता है, जबकि इसके पीछे कोई ठोस प्रमाण या विश्लेषण नहीं है। ऐसे बयान बांग्लादेश और भारत के बीच रिश्तों में केवल तनाव बढ़ा सकते हैं, और इसे एक राजनीतिक एजेंडा से ज्यादा कुछ नहीं माना जा सकता। इसलिए, इस मुद्दे पर बयान देने से पहले, कंगना को अधिक विवेकपूर्ण और समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता थी।
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