विश्व मृदा दिवस पर डॉ. अनिल मेहता का संदेश : “मिट्टी से मिलता है आत्मा को पोषण – सेवा, सम्मान और श्रद्धा से करें माप, निगरानी और प्रबंधन”

उदयपुर। “मिट्टी और पानी केवल संसाधन नहीं, बल्कि जीवन के तत्व हैं। इनकी निरंतरता और स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए हमें अपने दृष्टिकोण, व्यवहार और कर्मों में प्रकृति के प्रति सेवा भाव को समाहित करना होगा।” यह विचार पर्यावरणविद् और विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ. अनिल मेहता ने एचसीएम रीपा लोक प्रशासन संस्थान द्वारा आयोजित सहायक अभियंता प्रशिक्षण वर्ग में व्यक्त किए।

बड़ी झील पर आयोजित इस विशेष फील्ड सत्र में डॉ. मेहता ने इस वर्ष की विश्व मृदा दिवस की थीम “केयरिंग फॉर सॉइल: मेजर, मॉनिटर एंड मैनेज” (मिट्टी की देखभाल: माप, निगरानी और प्रबंधन) पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह थीम मिट्टी को केवल एक संसाधन के रूप में प्रस्तुत करती है, जबकि मिट्टी एक जीवित तंत्र है, जिसका सामाजिक, पर्यावरणीय, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है।

डॉ. मेहता ने कहा, “मिट्टी से हमारे मन, मस्तिष्क और आत्मा को पोषण मिलता है। एक इंच मिट्टी बनने में हजारों साल लगते हैं, और 95% भोजन का उत्पादन मिट्टी से ही होता है। लेकिन, मिट्टी के प्रति सेवा और श्रद्धा का भाव न होने के कारण इसे बर्बाद किया जा रहा है। घरों, सड़कों और शहरों में कंक्रीट का आवरण मिट्टी को ढक रहा है, और कीटनाशक व प्लास्टिक जैसे तत्व इसकी जीवन्तता को नष्ट कर रहे हैं।”

उन्होंने अभियंता वर्ग से अपील की कि वे समाज में मिट्टी और पानी के प्रति संवेदनशीलता और सेवा भाव बढ़ाने के लिए कार्य करें। प्रधानमंत्री के “लाइफ स्टाइल फॉर एन्वायरमेंट (LiFE)” अभियान को अपने जीवन और विभागीय कार्यप्रणाली में अपनाने पर जोर दिया। साथ ही, बड़ी झील के पारिस्थितिक महत्व के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता
संस्थान की अतिरिक्त निदेशक रुचि प्रियदर्शी ने कहा, “एक जिम्मेदार नागरिक और तकनीकी अधिकारी के नाते अभियंताओं को पर्यावरण संरक्षण के लिए समग्र और ठोस पहल करनी होगी।”

डॉ. मेहता और प्रियदर्शी ने मिट्टी और पानी की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सेवा, सम्मान और श्रद्धा के महत्व पर बल दिया, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखा जा सके।

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