विश्व वेटलैंड दिवस : आयड नदी बेसिन शोध परिणामों की हुई प्रस्तुति, रिवर सिटी तथा रामसर वेटलैंड सिटी के संदर्भ में शोध परिणाम अत्यंत उपयोगी

उदयपुर। वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, तकनीकीविदों , नागरिकों, विद्यार्थियों की सहभागिता से उदयपुर में हुए जल संसाधन प्रबंधन के बहुआयामी कार्य पूरे विश्व में अनूठे हैं । रिवर सिटी घोषित होने के बाद अब उदयपुर का रामसर वेटलैंड सिटी घोषित होना ऐसे ही समग्र , सहभागी प्रयासों का परिणाम है। उदयपुर ऐसे प्रयास निरंतर जारी रखेगा। यह संकल्प शुक्रवार को विद्या भवन पॉलिटेक्निक सभागार में आयोजित ” आयड नदी बेसिन समग्र जल संसाधन प्रबंधन आंकलन शोध परिणाम” विषयक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में लिया गया।

कार्यशाला का आयोजन विद्या भवन, उदयपुर, कोपेनहेगेन विश्वविद्यालय, जियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ डेनमार्क एंड ग्रीनलैंड , डेनिश हाइड्रोलॉजिकल इंस्टीट्यूट इंडिया (डी एच आई) , डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्ज तथा जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ डेनमार्क तथा ग्रीनलैंड के साझे में किया गया।

कार्यशाला के प्रारंभ में प्राचार्य डॉ. अनिल मेहता ने कहा कि रिवर सिटी तथा रामसर वेटलैंड सिटी की पृष्ठभूमि में ऐसे शोधों की अत्यंत उपयोगिता है। आज विश्व वेटलैंड दिवस है । वेटलैंड दिवस को सम्पूर्ण उदयपुर के रामसर वेटलैंड सिटी बनने को उत्साहपूर्वक मनाना चाहिए।

विद्या भवन के अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र तायलिया ने कहा कि डेनिश इंटरनेशन डेवलपमेंट एजेंसी के सहयोग से क्रियान्वित हुई शोध योजना के परिणाम,आयड नदी बेसिन की जल उपलब्धता तथा जल गुणवत्ता सम्बन्धी समस्त जानकारी विद्या भवन की वेबसाइट पर उपलब्ध होगी।

संस्था के सीईओ राजेंद्र भट्ट ने कहा कि नगरीय व ग्रामीण उदयपुर के सर्वांगीण विकास की दृष्टि से यह शोध लाभकारी सिद्ध होगा। शोध परिणामों को राज्य सरकार से भी साझा किया जाएगा।

डेनमार्क की विशेषज्ञ डॉ अनिता के शर्मा ने कहा कि भारत व डेनमार्क की ग्रीन स्ट्रेटेजिक पार्टनरशि तहत आयड नदी बेसिन अध्ययन के अतिरिक्त गुमानिया नाला विकास पर भी कार्य किया जा रहा है। उदयपुर तथा डेनमार्क के शहर आरहुस के मध्य साझेदारी समझौते के तहत जल तथा जल उपचार पर विविध कार्य संपादित हो रहे है।

डेनिश हाइड्रोजिकल इंस्टीट्यूट के जल विभाग के प्रमुख डॉ श्रेष्ठ तायल तथा डॉ कुलदीप ने आयड नदी बेसिन का माइक शी हाइड्रोलॉजिकल मॉडल प्रस्तुत किया गया। उदयपुर के नदी बेसिन में जल उपलब्धता तथा सूखा, बाढ़, कृषि सिंचाई योजना , जल गुणवत्ता इत्यादि के संदर्भ में यह मॉडल अत्यंत उपयोगी है।

डॉ योगिता दशोरा तथा निधि सहरावत ने कहा कि उदयपुर का यह अध्ययन इसलिए भी अनूठा है कि इसमें स्कूली, कॉलेज विद्यार्थियों, नागरिक संस्थाओं ने भी जल गुणवत्ता, बरसात, भूजल स्तर इत्यादि का स्वयं मापन किया है। उनके आंकड़े ,वैज्ञानिकों के मापक आंकड़े तथा सरकारी तकनीकी संस्थाओं के आंकड़े सभी इस शोध कार्य के अंग है। सिटीजन साइंस का यह अद्वितीय उदाहरण है।

शोध प्रमुख कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के प्रो कर्स्टन ने कहा कि शोध प्रणाली तथा परिणाम पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय है।

कार्यशाला में शिक्षाविद अरुण चतुर्वेदी , विद्या भवन के सचिव गोपाल बंब , समाजसेवी रेवती रमन श्रीमाली, पूर्व मुख्य नगर नियोजक सतीश श्रीमाली,जल संसाधन विभाग के अधीक्षण अभियंता सुनील मेहता,राजेश टेपण, जलदाय विभाग के अधीक्षण अभियंता रविन्द्र चौधरी, अधिशाषी अभियंता अखिलेश शर्मा,ललित नागौरी , होटल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष यशवर्धन राणावत, सी टी ए ई के जल संकाय विभागाध्यक्ष डॉ मंजीत सिंह ,झील प्रेमी तेज शंकर पालीवाल,कुशल रावल,अलर्ट संस्थान के जितेंद्र मेहता , समाज विद निधि जैन, प्राध्यापक जयप्रकाश श्रीमाली ने भी विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर विद्यार्थियों की जल मापन , जांच कार्यशाला भी पृथक से आयोजित हुई जिसमें सरकारी विद्यालयों, निजी स्कूलों तथा महाविद्यालयों के शिक्षक व विद्यार्थी उपस्थित रहे।

डेनिश इंटरनेशनल डेवलपमेंट एजेंसी के सहयोग से ऊपरी बेडच (आयड़ जल ग्रहण ) के समग्र जल संसाधन प्रबंधन पर विगत चार वर्ष में महत्वपूर्ण शोध, अनुसधान एवं क्षेत्र क्रियान्वन के कार्य हुए है। इनमे झीलों में वाटर लेवल सेंसर स्थापित करने, जलस्त्रोतों का गुणवत्ता मापन, नागरिकों एवं विद्याथियों की सहभागिता से वर्षा एवं जलस्तर मापन तथा अत्याधुनिक माइक शी हाईड्रोलॉजिकल मॉडल बनाने जैसे विविध कार्य सम्पादित किये गए हैं। जल संसाधनों के संवर्धन, वैज्ञानिक मॉडलिंग एवं जन सहभागिता आधारित मापन, आंकलन की दृष्टि से परियोजना के परिणाम पूरे राजस्थान के लिए अनुकरणीय है तथा राज्य में विस्तारित किये जा सकते है ।

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