उदयपुर। उदयपुर की पहाड़ियों ने जब कटाई की कराह भरी और झीलों ने स्लरी से ऊबासी ली, तब जिला पर्यावरण समिति की बैठक बुलाई गई — वो भी पूरे पर्यावरणीय जोश और सरकारी होश के साथ। जिला कलेक्टर नमित मेहता खुद इस हरित सभा के मुखिया बने और बड़ी सादगी से कह दिया: “उदयपुर को प्रकृति ने बहुत कुछ दिया है, अब बदले में कुछ हम भी दें!”
सुनकर पहाड़ों ने राहत की सांस ली और झीलें सोचने लगीं कि शायद अब वो फिर से अपनी नीली-नीली आंखों से आसमान को निहार सकेंगी।
प्रकृति की अदालत में हाज़िर अफसरशाही
कलक्ट्रेट सभागार में जो कुछ हुआ, उसे एक ‘हरित शपथ’ की तरह समझिए। कलेक्टर मेहता ने आदेश दिया — “पहाड़ों की कटाई नहीं होनी चाहिए!”
मतलब अब पहाड़ काटने वाले पहले अफसरों की नज़रों से कटेंगे। सभी उपखण्ड अधिकारियों को नियमित मॉनिटरिंग का आदेश मिला — अब अगर कोई पहाड़ बोलेगा “हाय मुझे काट दिया गया”, तो अफसर से पहले जनता कहेगी, “ये लीजिए, शिकायत नंबर 101!”
मेनार की झीलें और बहती सीवरेज — कुछ घरों की सीवरेज जब झीलों की गोद में जा पहुंची, तो कलेक्टर साहब बोले: “नाला बनाओ भाई, डीएमएफटी से पैसा लो और साफ-सुथरा बहाव करो!” अब देखना है कि सीवरेज की इस ‘गंगा’ को असली नाले में बदला जा पाता है या झीलें फिर से गुनगुनाएंगी — “ना कोई आए ना कोई जाए, मैं झील हूं, कोई नाला नहीं!”
नो बैग डे = नो बोरिंग डे : बच्चों को वेटलैंड सिटी का महत्व समझाने की बात भी हुई — यानी अब “नो बैग डे” पर बच्चे सिर्फ किताबें नहीं, झीलों की बातें और कछुओं की कहानियां भी घर ले जाएंगे।
स्लरी स्लाइड और प्लास्टिक प्लॉट : कलक्टर साहब को मार्बल स्लरी की नदी और प्लास्टिक के पहाड़ रास नहीं आए। आदेश जारी हुआ — जो भी प्लास्टिक जमा करे, उसका वेट पहले प्रदूषण विभाग करेगा… और फिर एक्शन।
नो व्हीकल जोन : भीतरी शहर को अब सांस लेने की छूट मिलेगी! सप्ताहांत पर ‘नो व्हीकल जोन’ का सपना दिखाया गया। यानी शनिवार-रविवार को गाड़ियां पार्किंग में आराम करेंगी और पर्यावरण टहलने निकलेगा।
बैठक में क्या-क्या हुआ, उसका सार यही निकला :
प्रकृति हमारी मां है, और हम… थोड़े लापरवाह बच्चे। लेकिन अब जब अफसरों ने जिम्मेदारी की टोपी पहन ली है, उम्मीद है कि पर्यावरण की सेहत सुधरेगी।
वरना पहाड़, झील, झाड़ और झील के बगुले — सब मिलकर एक दिन कहेंगे :
“हमें तो आपकी बैठकों से ही डर लगता है साहब… क्योंकि जब आप बैठते हैं, तो हम हिलने लगते हैं!”
अब देखना ये है कि ये “हरी सोच” ज़मीनी हरियाली में कब बदलती है… और पहाड़ अगली बार राहत की सांस कब लेते हैं।
About Author
You may also like
-
एआई प्रक्रियाओं को मजबूत बना सकता है, लेकिन करुणा और आत्मीयता का विकल्प नहीं : डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़
-
पानी की लहरों में डूब गए बचपन : उदयपुर त्रासदी की कहानी
-
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में गेस्ट हाउस एक्सटेंशन ब्लॉक का शिलान्यास
-
बाघदर्रा मगरमच्छ संरक्षण रिजर्व में हरियाली का नया अध्याय : हिन्दुस्तान जिंक व वन विभाग के सहयोग से हरियालो राजस्थान अभियान का एक पेड़ मां के नाम से आगाज
-
उदयपुर पुलिस की बड़ी कार्रवाई : 324 अपराधी चढ़े हवालात, 780 जगहों पर तड़के मची खलबली