संसद की कार्यवाही अब संस्कृत और उर्दू में भी उपलब्ध, लोकसभा स्पीकर ने की बड़ी घोषणा


नई दिल्ली। भारतीय लोकतंत्र में बहुभाषिकता को और अधिक समृद्ध करते हुए लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने मंगलवार को संसद में घोषणा की कि अब संसद की कार्यवाही छह और भाषाओं—बोडो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संस्कृत और उर्दू में भी उपलब्ध होगी। इससे पहले संसद की कार्यवाही हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा दस अन्य भाषाओं—असमिया, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, तमिल और तेलुगू में ही उपलब्ध थी।
लोकतंत्र में भाषाई समावेशिता को बढ़ावा

लोकसभा स्पीकर ने कहा कि इस नई पहल का उद्देश्य अधिक से अधिक भाषाओं में संसदीय कार्यवाही को उपलब्ध कराना है, जिससे देश के हर नागरिक को अपनी भाषा में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को समझने का अवसर मिले। उन्होंने कहा, “इसी के साथ जो अतिरिक्त 16 भाषाएं हैं, उनमें जैसे-जैसे मानव संसाधन उपलब्ध होगा, रूपांतरण की प्रक्रिया जारी रहेगी। हमारी कोशिश है कि भारत की विविधता को ध्यान में रखते हुए संसद की कार्यवाही अधिक से अधिक भाषाओं में उपलब्ध कराई जाए।”

संस्कृत को संसद की कार्यवाही में शामिल करना एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है, क्योंकि यह भाषा भारत की प्राचीन संस्कृति और ग्रंथों की भाषा रही है। वहीं, उर्दू को भी शामिल करने से उन नागरिकों को लाभ मिलेगा, जो इस भाषा में सहजता महसूस करते हैं। यह कदम भारत की भाषाई समावेशिता और लोकतांत्रिक मूल्यों को और अधिक मज़बूती देगा।

ओम बिरला ने इस निर्णय को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि “दुनिया के अंदर भारत की संसद ही एकमात्र लोकतांत्रिक संस्था है, जो इतनी भाषाओं में रूपांतरण कर रही है।” यह दर्शाता है कि भारतीय लोकतंत्र सिर्फ संख्या के लिहाज से ही बड़ा नहीं है, बल्कि विविधता और समावेशिता के स्तर पर भी अग्रणी है।

लोकसभा स्पीकर ने बताया कि आने वाले समय में संसद की कार्यवाही को अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराने की योजना है। संसदीय कार्य मंत्रालय इस दिशा में काम कर रहा है और आवश्यक संसाधन जुटाए जा रहे हैं। इससे देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले जनप्रतिनिधियों को अपनी भाषा में संसद की कार्यवाही को समझने में सुविधा मिलेगी, जिससे लोकतांत्रिक संवाद और भी प्रभावी होगा।

इस फैसले से स्पष्ट है कि भारतीय लोकतंत्र अपनी विविधता और समावेशिता को और अधिक व्यापक बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। संसद की कार्यवाही को ज्यादा से ज्यादा भाषाओं में उपलब्ध कराने का यह प्रयास देश की जनता को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से सीधे जोड़ने और उनकी भागीदारी बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

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