
उदयपुर। गीतांजली यूनिवर्सिटी में गीतांजली सिनेप्स-2025 का आयोजन धूमधाम से किया गया। मेडिकल, पैरामेडिकल, फार्मेसी, डेंटल, फिजियोथेरेपी और नर्सिंग कॉलेज के विद्यार्थियों ने पूरे उत्साह के साथ भाग लिया। शानदार स्टेज, बॉलीवुड सेलिब्रिटी की मौजूदगी और ग्लैमर से भरे आयोजनों के बीच असली सवाल कहीं पीछे छूट गए—क्या यह सब सिर्फ दिखावे के लिए किया जा रहा है, या विद्यार्थियों के वास्तविक मुद्दों पर भी कोई ध्यान दिया जाएगा?
अनुपम खेर की प्रेरणा या एक नया प्रचार मंच?
प्रख्यात अभिनेता अनुपम खेर ने इस फेस्ट में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई और विद्यार्थियों को जीवन के संघर्षों और असफलताओं से सीखने की प्रेरणा दी। उनके शब्दों में गहराई तो थी, लेकिन यह भी सच्चाई है कि जिन छात्रों को लाखों की फीस भरने और प्रशासन की बेरुखी से जूझना पड़ रहा है, उनके लिए ये बातें कितनी उपयोगी होंगी? जब क्लासरूम और हॉस्टल की समस्याओं का समाधान नहीं होता, जब फीस बढ़ोतरी के खिलाफ उठी हर आवाज़ को दबा दिया जाता है, तब “असफलता एक घटना है, व्यक्ति नहीं” जैसी बातें खोखली लगने लगती हैं।
भारी-भरकम फीस और मैनेजमेंट का अड़ियल रवैया
गीतांजली यूनिवर्सिटी की गगनचुंबी फीस हमेशा से विद्यार्थियों के लिए चिंता का विषय रही है। मेडिकल क्षेत्र के छात्रों को लाखों की फीस भरनी पड़ती है, ऊपर से हर साल बढ़ाई जाने वाली अतिरिक्त फीस का दबाव अलग। एक तरफ प्रशासन लाखों रुपये महंगे इवेंट्स पर खर्च करता है, बॉलीवुड सितारों को बुलाया जाता है, और दूसरी तरफ छात्रों की मूलभूत सुविधाओं की मांगों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। क्या यह विश्वविद्यालय सिर्फ ग्लैमर और चकाचौंध का केंद्र बनकर रह गया है, जहां असली शिक्षा की बजाय सिर्फ ब्रांडिंग पर ध्यान दिया जाता है?
छात्रों की शिकायतों पर मैनेजमेंट का रवैया हमेशा से कठोर रहा है। फीस से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा करना तो दूर, विरोध करने वाले छात्रों को अनुशासनात्मक कार्रवाई की धमकियां दी जाती हैं। क्लासरूम की सुविधाएं बेहतर करने, हॉस्टल की दुर्दशा सुधारने, और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की बजाय, फोकस सिर्फ बड़े-बड़े इवेंट्स पर होता है।
फेस्ट या ब्रांडिंग अभियान?
फेस्ट में भले ही विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक और खेलकूद प्रतियोगिताओं में भाग लिया हो, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह आयोजन वास्तव में छात्रों के लिए किया गया था, या विश्वविद्यालय की ब्रांडिंग और मैनेजमेंट की आत्ममुग्धता का हिस्सा था? 28 फरवरी को होने वाला सुनिधि चौहान का धमाकेदार कॉन्सर्ट भले ही विद्यार्थियों के लिए मनोरंजन का जरिया बनेगा, लेकिन यह सवाल फिर भी रहेगा—क्या इस तामझाम में उन छात्रों की आवाज़ भी सुनी जाएगी, जो बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं?
गीतांजली सिनेप्स-2025 अपनी भव्यता और स्टारडम के कारण जरूर सुर्खियों में रहा, लेकिन विद्यार्थियों की असली समस्याओं पर इस कार्यक्रम का कोई असर नहीं दिखा। एक ओर बढ़ती फीस, दूसरी ओर मैनेजमेंट की मनमानी और छात्रों की समस्याओं को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति—क्या यही एक शिक्षण संस्थान की असली पहचान होनी चाहिए? सवाल बहुत हैं, लेकिन शायद जवाब अगले साल भी नहीं मिलेगा।
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