क्या कांग्रेस के एक फैसले ने भाजपा के सबसे दमदार दावेदार को कमजोर कर दिया?

उदयपुर। उदयपुर में कांग्रेस के पार्षद रहे फतहसिंह राठौड़ को कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष बनाकर क्या भाजपा के सबसे दमदार दावेदार को कमजोर कर दिया? यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि भाजपा में सबसे प्रबल दावेदार पारस सिंघवी कांंग्रेस के फतह सिंह राठौड़ को हराकर ही उपमहापौर बने हैं। पार्षद पद पर दोनों के बीच कांटे का मुकाबला हुआ था। पारस सिंघवी उस वक्त भी दमदार प्रत्याशी थे, जिनको राठौड़ ने कड़ी टक्कर दी थी। अब वही फतह सिंह राठौड़ कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष बन गए हैं। उदयपुर देहात जिले में कचरूलाल चौधरी को अध्यक्ष बनाया गया है।

दरअसल लंबे समय बाद पार्टी में स्थायी जिलाध्यक्ष की नियुक्ति हुई है। कांग्रेस में फतह सिंह राठौड़ काे अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने कई संदेश दिए हैं। राहुल गांधी के फार्मूले के तहत ऐसा हो सका है और लंबे समय बाद गैर ब्राह्मण अध्यक्ष बना है। यही पार्टी का संदेश है और आमजन भी यही चाहते हैं। देशभर में चुनावों को जातिगत और धार्मिक ध्रुवीकरण का असर काफी हद तक होता है, लेकिन जनता के बीच रहने वाले लोगों ने अपनी जाति या धर्म के वोटर नहीं होने के बावजूद बड़े अंतर से चुनाव जीते हैं।
उदयपुर शहर में भले ही दावेदार जातिगत आधार पर टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, लेेकिन उदयपुर की जनता ने कभी भी जाति और धर्म के आधार पर वोट नहीं दिए हैं। गुलाबचंद कटारिया 2003 से लगातार उदयपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत रहे हैं। विरोधियों का मानना है कि वे जैन होने के नाते लगातार जीत रहे हैं। सच यह है कि पिछले तीन चुनाव में कटारिया का भारी विरोध होने के बावजूद वे चुनाव जीते। कभी भी कटारिया को शत प्रतिशत जैन समाज के वोट नहीं मिले। उनके जीतने की वजह उनका राजनीतिक कद था। बिना किसी जातिगत समीकरण के मोहनलाल सुखाड़िया उदयपुर से लगातार चुनाव जीतते रहे।
उदयपुर शहर विधानसभा क्षेत्र में जैन, ब्राह्मण और मुस्लिम वोटरों की संख्या ज्यादा है, लेकिन यहां मुस्लिम लीग के प्रत्याशी को चंद वोट ही हासिल हुए थे। कांग्रेस के त्रिलोक पूर्बिया न जैन थे, न ब्राह्मण थे और न मुस्लिम, लेकिन उदयपुर शहर से पार्षद भी चुने गए और विधायक भी। यह चुनाव उन्होंने अपने व्यक्तित्व के आधार पर जीता था। निंबार्क पीठ के महामंडलेश्वर मुरली मनोहर शास्त्री लोकसभा चुनाव में डॉ. गिरिजा व्यास के सामने हार गए।

अब हालही एक चैनल को दिए इंटरव्यू में सहवृत्त पार्षद अजय पोरवाल जैन होने और राजीव सुहालका ओबीसी वर्ग के होने के नाते दावेदारी कर रहे हैं। अन्य दावेदार और उनके समर्थक भी जातिगत समीकरण बनाकर ही चुनाव लड़ने की सोच रहे हैं। सच यह है कि उदयपुर की काबिल जनता जाति और धर्म के आधार पर वोट नहीं करती है।
कांग्रेस ने फतह सिंह राठौड़ को जिलाध्यक्ष बनाकर यही संदेश दिया है कि अब जमीनी कार्यकर्ताओं को ही मौके दिए जाएंगे। अध्यक्ष बनने के बाद राठौड़ ने कांग्रेस के हित में एक सबसे अच्छी बात कही है कि वे उदयपुर नगर निगम में भाजपा बोर्ड के वर्चस्व और परंपरा को तोड़ेंगे। गुटों में बंटी कांग्रेस व नवनियुक्त जिलाध्यक्ष के लिए यह इतना आसान नहीं है। इसके लिए उन्हें जी तोड़ मेहनत करने के साथ गली-गली, मोहल्लों वार्डों की खाक छाननी पड़ेगी। आगे देखना होगा कि राठौड़ को कार्यकर्ताओं व नेताओं का कितना समर्थन मिल पाता है।
अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने फतह सिंह राठौड़ और कचरूलाल चौधरी का स्वागत किया और रैली निकाली। इसमें काफी संख्या में लोग शामिल हुए।

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