
यूट्रेक्ट, नीदरलैंड्स। वेरडेनबर्ग स्क्वायर की उस शांत सुबह ने रविवार को जो मंज़र देखा, वो इतिहास में दर्ज हो गया। वहाँ कोई नारे नहीं थे, कोई भाषण नहीं… सिर्फ़ जूतों की एक कतार थी — 14,000 जोड़ी छोटे-छोटे मासूम जूते, हर जोड़ी उस बच्चे की कहानी कह रही थी, जिसे ग़ाज़ा की जंग निगल गई।
नीदरलैंड की संस्था ‘प्लांट एन ऑलिव ट्री’ ने इस दृश्य को रचते हुए दुनिया को एक मूक संदेश दिया — “क्या हम अब भी चुप रहेंगे?”
हर 10 मिनट में एक और जोड़ी जूते रखी गई। और हर बार लाउडस्पीकर पर किसी मासूम का नाम पुकारा गया — जैसे समय ने खुद चीखना शुरू कर दिया हो। कार्यक्रम के अंत तक पूरा चौक बच्चों के जूतों से भर गया, और साथ ही भर गया लोगों की आंखों में नम आंसुओं से।
संस्था के प्रतिनिधियों का कहना था कि ग़ाज़ा के बच्चे सिर्फ़ बमों से नहीं मरते, वो तो भूख और पानी की कमी से दम तोड़ते हैं। वो न किसी देश की सीमा जानते हैं, न राजनीति के चाल-चेहरे।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अक्टूबर से फरवरी के बीच ग़ाज़ा में 12,300 से ज़्यादा बच्चों की मौत हुई है। यूनिसेफ की रिपोर्ट कहती है कि दो साल से छोटे बच्चों में कुपोषण की दर दो गुनी हो चुकी है, और 23 बच्चों की मौत केवल हाल के सप्ताहों में भूख व निर्जलीकरण से हुई है।
यह कोई प्रदर्शन नहीं था, यह एक मौन मातम था — उन बच्चों के लिए जो कभी स्कूल नहीं जा सके, जो कभी अपने खिलौनों तक नहीं लौट पाए।
हर जोड़ी जूता एक सवाल बनकर खड़ी थी :
“क्या इंसानियत अब भी जीवित है?”
स्रोत : द गार्जियन
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