नई दिल्ली/इस्लामाबाद। 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए एक भयावह आतंकी हमले के बाद भारत ने एक के बाद एक कई सख्त कदम उठाए हैं। इनमें सबसे कठोर कदम रहा—सिंधु जल संधि का निलंबन, जिसने पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है। भारत ने इस्लामाबाद पर आतंकवाद को शह देने का आरोप लगाते हुए सिंधु नदी पर बनी 60 साल पुरानी संधि को “अस्थायी रूप से निलंबित” कर दिया है। यह लेख गहराई से बताएगा कि यह कदम कितना अहम है, इसके प्रभाव क्या होंगे और इस पूरे घटनाक्रम में भारत-पाक संबंधों की दिशा क्या हो सकती है।
पहलगाम हमला: एक कायराना हरकत
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगाम में बंदूकधारियों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी। इस भीषण हमले में 26 नागरिक मारे गए, जिनमें एक नेपाली नागरिक को छोड़कर सभी भारतीय थे। यह हमला बीते दो दशकों में नागरिकों पर सबसे घातक आतंकी हमला बन गया।
इस हमले ने भारत को झकझोर दिया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA), गृह मंत्रालय, और सशस्त्र बलों ने उच्च स्तरीय बैठकों का आयोजन किया और पाकिस्तान पर इस हमले की साजिश रचने का आरोप लगाया।
भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया
सिंधु जल संधि निलंबित
भारत ने 23 अप्रैल की शाम सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को निलंबित करने का ऐलान किया।
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता से बनी इस संधि के तहत भारत ने 3 नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) का उपयोग भारत को और 3 नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का पानी पाकिस्तान को देने पर सहमति दी थी।
ह संधि तीन युद्धों (1965, 1971, 1999) और अनेक संघर्षों के बावजूद कायम रही थी।
राजनयिकों पर कार्रवाई
भारत ने इस्लामाबाद में अपने उच्चायोग के रक्षा सलाहकारों को पर्सोना नॉन ग्रेटा घोषित किया।
नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी प्रभारी को तलब किया गया और कड़ा विरोध दर्ज कराया गया।
पाकिस्तान सरकार का एक्स (Twitter) अकाउंट ब्लॉक
भारत सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पाकिस्तान सरकार के आधिकारिक अकाउंट को ब्लॉक कर दिया।
सिंधु जल संधि : एक परिचय
इतिहास और पृष्ठभूमि
वर्ष 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच यह संधि हुई थी।
इस संधि को विश्व बैंक का समर्थन प्राप्त था, जिसने दोनों देशों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर एक दीर्घकालिक समाधान का प्रयास किया।
संधि की संरचना
भारत को: रावी, ब्यास, सतलुज
पाकिस्तान को: सिंधु, झेलम, चिनाब
भारत इन नदियों पर “नॉन-कंजम्पटिव” उपयोग (जैसे सिंचाई, बिजली उत्पादन, नौवहन) कर सकता है लेकिन पानी नहीं रोक सकता।
क्यों महत्वपूर्ण है सिंधु जल संधि का निलंबन?
पाकिस्तान की कृषि पर संकट
सिंधु नदी प्रणाली पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
पंजाब और सिंध प्रांत में सिंचाई के लिए 90% पानी इसी से आता है।
निलंबन से फसल चक्र, सिंचाई प्रणाली, और खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
जल विद्युत परियोजनाओं पर असर
पाकिस्तान की कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स इन्हीं नदियों पर निर्भर हैं।
अगर भारत पानी रोकता है तो इनकी क्षमता अप्रत्याशित रूप से घट सकती है।
वैश्विक प्रभाव और भारत की छवि
भारत ने यह संदेश दिया है कि वह अब सिर्फ़ कूटनीतिक बयानबाजी तक सीमित नहीं रहेगा।
यह कदम आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस पॉलिसी को दर्शाता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड बैंक की भूमिका
सिंधु जल संधि में वर्ल्ड बैंक गारंटर है। इसका निलंबन अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय बन सकता है।
अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन यूएन और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक इसकी गंभीरता पर मंथन कर रहे हैं।
चीन की स्थिति
चीन की प्रतिक्रिया पर विशेष नजर रहेगी, क्योंकि वह पाकिस्तान का रणनीतिक सहयोगी है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) सिंधु बेसिन से होकर ही गुजरता है।
पाकिस्तान में हलचल
एनएससी की आपात बैठक
पाकिस्तान ने 25 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (NSC) की आपात बैठक बुलाई है।
बैठक में आर्मी चीफ, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, और विदेश मंत्री मौजूद रहेंगे।
विदेश मंत्री इशाक डार ने एक्स पर इसकी जानकारी दी।
पाक मीडिया की प्रतिक्रिया
पाकिस्तानी मीडिया में “सिंधु जल संधि का निलंबन” को सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है।
कई चैनलों ने इसे “अघोषित जल युद्ध” कहा है।
भारत का संदेश: नई रणनीति, नया भारत
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अब आतंक के समर्थन की कोई कीमत नहीं चुकाई जाएगी।
सिंधु जल संधि जैसी मानवीय संधियों को हथियार बनाना, आतंक के खिलाफ जवाबी रणनीति का हिस्सा बन चुका है।
एक नई शुरुआत या टकराव की तरफ़ बढ़ते कदम?
सिंधु जल संधि का निलंबन केवल एक कूटनीतिक फैसला नहीं, बल्कि एक रणनीतिक हस्तक्षेप है। भारत ने पाकिस्तान को यह बता दिया है कि शांति की आशा अब केवल भ्रामक नहीं रहेगी, उसे ठोस कदमों से साबित करना होगा।
अगर पाकिस्तान आतंकवाद के रास्ते पर चलता रहा, तो भविष्य में और भी कड़े निर्णय देखने को मिल सकते हैं। जल जैसे संसाधनों का हथियार के रूप में प्रयोग, भले ही आखिरी विकल्प हो, पर भारत ने ये दिखा दिया है कि अब हर विकल्प टेबल पर है।
भारत की कार्रवाई: तीन स्तरों पर चोट
- राजनयिक दबाव:
भारत ने नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग को तलब कर विरोध दर्ज कराया। साथ ही पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों को persona non grata घोषित करते हुए देश छोड़ने का आदेश दे दिया गया। - डिजिटल मोर्चा:
भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार के X (पूर्व ट्विटर) अकाउंट को भारत में ब्लॉक कर दिया। यह डिजिटल डिप्लोमेसी का एक शक्तिशाली संदेश था—जिसमें कहा गया कि यदि तुम डिजिटल माध्यमों से नफरत फैलाओगे, तो तुम्हारी आवाज़ को बंद कर दिया जाएगा। - जल-संधि का निलंबन:
लेकिन सबसे चौंकाने वाला कदम रहा—सिंधु जल संधि का सस्पेंशन। भारत ने 1960 की इस संधि को स्थगित करने की घोषणा कर दी। यह संधि भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे को लेकर एक अहम समझौता रही है और अब तक युद्धों और संघर्षों के बावजूद कायम थी।
सिंधु जल संधि: पाकिस्तान की जीवनरेखा पर आघात
भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि की स्थापना 1960 में वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता से हुई थी। इसके तहत भारत ने अपने नियंत्रण वाले सिंधु, झेलम और चिनाब नदी के पानी का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान को उपयोग करने की अनुमति दी। यह संधि दशकों तक एक “जल संबंध” के रूप में मानी जाती रही, भले ही राजनीतिक रिश्ते कितने भी खराब क्यों न हुए हों।
लेकिन अब इस संधि का निलंबन पाकिस्तान के लिए गहरा संकट लेकर आया है। पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि भूमि इस जल पर निर्भर करती है। सिंधु और इसकी सहायक नदियाँ न केवल फसलों के लिए पानी देती हैं, बल्कि हाइड्रोपावर और पीने के पानी का भी मुख्य स्रोत हैं।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: डर, भ्रम और रणनीतिक असमंजस
भारत के तीव्र और ठोस कदमों से पाकिस्तान की हुकूमत सकते में है। उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने खुद सोशल मीडिया पर घोषणा की कि राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (NSC) की बैठक बुलाई गई है। इसका मकसद भारत द्वारा उठाए गए इन कदमों का विश्लेषण करना और रणनीतिक जवाब तय करना है।
पाक मीडिया में छप रहे लेखों और चैनलों की बहसों में चिंता साफ झलक रही है। कई विश्लेषकों का कहना है कि सिंधु जल संधि का निलंबन पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और आंतरिक स्थिरता पर दूरगामी असर डाल सकता है।
क्यों है यह निलंबन पाकिस्तान के लिए गंभीर?
- कृषि पर निर्भरता:
पाकिस्तान की कृषि अर्थव्यवस्था पूरी तरह सिंधु बेसिन पर आधारित है। गेंहू, चावल, गन्ना जैसी फसलों की सिंचाई का मुख्य स्रोत यही जल है। - ऊर्जा संकट:
सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर बने जलविद्युत संयंत्र पाकिस्तान को ऊर्जा प्रदान करते हैं। जल के रुकने का अर्थ है—बिजली की भारी किल्लत। - आंतरिक अस्थिरता:
जल संकट से जनता में असंतोष पनप सकता है, जो राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता को जन्म दे सकता है।
क्या भारत पूरी तरह संधि समाप्त कर सकता है?
तकनीकी रूप से, भारत केवल ‘संशोधन’ या ‘निलंबन’ की ही घोषणा कर सकता है। संधि को पूरी तरह खत्म करने के लिए विश्व बैंक की मध्यस्थता की आवश्यकता होगी। लेकिन भारत द्वारा इसे “निलंबित” कर देना ही एक ऐतिहासिक और कूटनीतिक झटका है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: संतुलन बनाना मुश्किल
अब यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गूंजने लगा है। अमेरिका, यूके और यूनाइटेड नेशंस जैसे अंतरराष्ट्रीय निकाय भारत की प्रतिक्रिया पर नजर बनाए हुए हैं। लेकिन चूंकि हमला नागरिकों पर हुआ था और भारत ने पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं, इसलिए दुनिया भारत की स्थिति को समझ रही है।
आगे की रणनीति: भारत क्या चाहता है?
भारत अब एक स्पष्ट नीति पर चल रहा है—Zero Tolerance on Terrorism। भारत पाकिस्तान को यह संदेश देना चाहता है कि अब केवल बयानबाजी नहीं, बल्कि नीतिगत और ढांचागत कार्रवाई की जाएगी।
सिंधु जल संधि का निलंबन सिर्फ एक शुरुआत है। भारत आने वाले दिनों में कूटनीतिक, सैन्य और आर्थिक स्तर पर और भी कड़े कदम उठा सकता है।
जनता का समर्थन और राजनीतिक सर्वसम्मति
इस बार भारत की जनता, राजनीतिक दल और मीडिया सभी एक सुर में सरकार के साथ खड़े हैं। विपक्ष तक ने सरकार के कदमों का समर्थन किया है। सोशल मीडिया पर “IndusWaterSuspension” और “JusticeForPahalgam” जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
आतंक का जवाब अब नीति से
पहलगाम हमला केवल एक आतंकी कृत्य नहीं, बल्कि भारत की आत्मा पर हमला था। और इस बार भारत ने सख्ती से, परिपक्वता से और दूरदर्शिता से जवाब दिया है। अब देखना यह है कि पाकिस्तान इस झटके से उबरने के लिए क्या रणनीति अपनाता है।
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