
दुनिया की सबसे रहस्यमयी और चर्चित खुफिया एजेंसी MI-6 यानी Secret Intelligence Service (SIS) के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि एक महिला इसके शीर्ष पद तक पहुँची है। ब्लेस मेत्रेवेली — जिनके बारे में अभी तक दुनिया में ज़्यादा कुछ सार्वजनिक नहीं था — अब इस संस्था की 18वीं प्रमुख बनेंगी।
लेकिन सवाल सिर्फ इतना नहीं है कि वे महिला हैं। सवाल है — क्या उनके आने से MI-6 का चेहरा, उसकी प्राथमिकताएँ, काम करने के तरीके और उसकी वैश्विक भूमिका बदल जाएगी?
🔸 क्यों खास है ये नियुक्ति?
MI-6 को ब्रिटेन की परछाईं कहा जाता है। ये संस्था वह है, जो दुनिया भर से सूचनाएँ जुटाकर ब्रिटिश सरकार को चेतावनी देती है, आतंकवाद को रोकती है, साइबर ख़तरों से जूझती है और रूस, चीन, ईरान जैसे देशों की हर हलचल पर नज़र रखती है।
ब्लेस मेत्रेवेली का इस पद तक पहुँचना कई लिहाज़ से प्रतीकात्मक भी है और व्यावहारिक भी।
वो न सिर्फ MI-6 की पहली महिला प्रमुख हैं, बल्कि तकनीक और नवाचार विभाग की निदेशक (Director Q) के तौर पर भी उन्होंने काम किया है — मतलब उन्हें सिर्फ जासूसी के पारंपरिक तरीके नहीं आते, बल्कि साइबर युद्ध, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डाटा विश्लेषण, और भविष्य की जासूसी चुनौतियों का भी बेहतरीन अनुभव है।
🔸 क्या बदलेगी MI-6 की रणनीति?
मेत्रेवेली के आने के साथ MI-6 के मिशन में तकनीक का दखल और बढ़ेगा।
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान देखा गया कि ड्रोन्स, साइबर हमले और डिजिटल जासूसी कितनी निर्णायक हो सकती है। चीन भी अपने ‘साइबर सेना’ के ज़रिए ब्रिटेन सहित पश्चिमी देशों में सेंध लगाने की कोशिशों में जुटा है।
ऐसे में एक टेक-सेवी ‘सी’ (Chief) का होना MI-6 के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है। मेत्रेवेली के रहते ब्रिटेन की साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित जासूसी और बिग डेटा एनालिटिक्स पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाएगा।
🔸 नारी नेतृत्व: सिर्फ प्रतीक या असली बदलाव?
यह सवाल लाज़िमी है कि क्या ब्लेस मेत्रेवेली की नियुक्ति सिर्फ ‘पहली महिला प्रमुख’ होने तक सीमित है या वे MI-6 की पूरी कार्य-संस्कृति बदलेंगी?
ब्रिटेन की अन्य खुफिया एजेंसी MI-5 में भी वे निदेशक रही हैं। वहाँ उन्होंने आंतरिक आतंकवाद, घरेलू कट्टरवाद और विदेशी एजेंटों की पकड़ के मामले में आक्रामक रवैया अपनाया था। इससे उम्मीद की जा सकती है कि वे MI-6 में भी महिलाओं की हिस्सेदारी, संगठन की पारदर्शिता और कार्यकुशलता को नया आयाम देंगी।
उनकी नियुक्ति ब्रिटेन की ‘Equal Opportunity Policy’ को भी मजबूती देती है।
🔸 क्या पुराने दुश्मनों से बदलेगी MI-6 की रणनीति?
रूस, चीन, ईरान, उत्तर कोरिया — ये चार देश लंबे समय से पश्चिमी खुफिया एजेंसियों की सूची में शीर्ष पर हैं। मेत्रेवेली के वक्त इनसे निपटने के लिए ‘डिजिटल डिप्लोमेसी’, ‘क्लाउड स्पाइंग’, ‘सैटेलाइट ट्रैकिंग’ और ‘साइबर सबोटाज’ जैसे आधुनिक उपकरणों पर ज़ोर रहेगा।
इसी के संकेत उन्होंने दिसंबर 2021 में ‘द टेलीग्राफ’ को दिए थे, जब वे MI-5 में डायरेक्टर ‘M’ के रूप में सक्रिय थीं। उन्होंने स्पष्ट कहा था —
“ख़तरे बदल गए हैं। रूस की आक्रामक गतिविधियाँ और चीन की तकनीकी महत्वाकांक्षाएँ ब्रिटेन के लिए दोहरी चुनौती बन गई हैं।”
🔸 ब्रिटिश विदेश नीति में प्रभाव?
MI-6 की हर गतिविधि का सीधा असर ब्रिटिश विदेश नीति पर होता है। प्रधानमंत्री कीएर स्टार्मर ने इस नियुक्ति को ‘ऐतिहासिक’ कहा — यह दिखाता है कि मेत्रेवेली को विदेश नीति में भी निर्णायक भूमिका मिलेगी।
MI-6 प्रमुख को ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी को रिपोर्ट करना होता है। साथ ही वे ‘जॉइंट इंटेलिजेंस कमेटी’ की बैठक में भी शामिल रहेंगी, जहाँ अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के सबसे गोपनीय फैसले होते हैं।
🔸 चुनौतियाँ क्या होंगी?रूस-यूक्रेन युद्ध की अनिश्चितता चीन का तकनीकी वर्चस्व ईरान की पश्चिम विरोधी नीति उत्तर कोरिया का मिसाइल और न्यूक्लियर टेस्ट मिडिल ईस्ट में लगातार अस्थिरता ब्रिटेन के अंदर साइबर अटैक और विदेशी एजेंटों की सक्रियता
इन सभी में मेत्रेवेली का कौशल, तकनीक की समझ और विदेशी अनुभव काम आएगा।
🔸 क्या इससे भारत को फर्क पड़ेगा?
MI-6 और भारत की रॉ के बीच भी लंबे समय से सहयोग रहा है, खासकर आतंकवाद और साइबर अपराधों के मामलों में। उम्मीद है कि मेत्रेवेली के आने के बाद भारत-ब्रिटेन खुफिया साझेदारी और गहरी होगी।
खासतौर से भारत-चीन सीमा विवाद, पाकिस्तान स्थित आतंकी नेटवर्क, और इंडो-पैसिफिक रणनीति में MI-6 का इनपुट भारत के लिए महत्त्वपूर्ण बन सकता है।
🔍 निष्कर्ष:
ब्लेस मेत्रेवेली का MI-6 प्रमुख बनना महज एक प्रतीकात्मक नियुक्ति नहीं है। यह भविष्य की जासूसी का संकेत है — जहाँ बंदूक और जासूसों की जगह डेटा, AI, साइबर वॉर और तकनीक से जंग लड़ी जाएगी।
दुनिया की सबसे पुरानी खुफिया संस्था अब तकनीक और महिला नेतृत्व के नए युग में प्रवेश कर रही है — और इसके असर सिर्फ ब्रिटेन तक सीमित नहीं रहेंगे।
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